इकबाल मैदान, शाम के 5.30 बजे हैं। जुहर की नमाज का वक्त हो गया है, अजान शुरू हो गई है। लोग धीरे-धीरे नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद की तरफ जा रहे हैं। मैदान में बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं। एंट्री गेट पर पुलिस और प्रशासन के कुछ अफसर बैठे हैं। मैदान के बाहर पुलिस के वाहन खड़े हैं। साथ में ठेले-रेहड़ी वाली दुकानें कतार में लगी हुई हैं। स्पेशल टास्क फोर्स के 20-30 जवान और कुछ महिला पुलिसकर्मी मैदान के अंदर शायर इकबाल की याद में बनाए स्तंभ के नीचे बैठे हैं। गुरुवार को इसी इकबाल मैदान पर दो-तीन घंटे के अंदर फ्रांस के राष्ट्रपति के विरोध में हजारों मुसलमान एकत्र हो गए थे, जिससे प्रशासन के हाथ-पैर फूल गए थे, आज वहां सन्नाटा है। शायर इकबाल की यादगार के रूप में खंभे में एक चिड़िया बनी है, जिसे शाहीन या बाज कहते हैं। ये श्रेष्ठता का भी प्रतीक है। यहां पर गुरुवार को जितनी भीड़ मैदान में एकत्र हुई, शायद इतनी तादाद में लोग NRC और CAA के विरोध में भी इकबाल मैदान पर नहीं आए थे। तब भोपाल के इस मैदान को देश का दूसरा शाहीन बाग कहा जा रहा था। वह भी वॉट्सऐप पर भेजे एक मैसेज पर। कोरोना काल चल रहा है, भोपाल में ...
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