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कोरोनावायरस के हमले पर कैसे रिएक्ट करता है हमारा शरीर? वैक्सीन की जरूरत क्यों?

कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को बुरी तरह प्रभावित किया है। जनवरी में यह चीन से बाहर फैला और धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। जान बचाने के खातिर हर स्तर पर कोशिशें तेज हो गईं। करीब 11 महीने बाद भी रिकवरी की हर कोशिश को कोरोना ने नई और ताकतवर लहर के साथ जमींदोज किया है। ऐसे में महामारी को रोकने के लिए सिर्फ वैक्सीन से उम्मीदें हैं। पूरी दुनिया में वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार हो रहा है।

जब दुनियाभर में वैज्ञानिक कोरोनावायरस को खत्म करने के लिए वैक्सीन बनाने में जुटे हैं तो यह जानना तो बनता है कि इसकी जरूरत क्या है? मेडिकल साइंस को समझना बेहद मुश्किल है। आसान होता तो हर दूसरा आदमी डॉक्टर बन चुका होता। हमने विशेषज्ञों से समझने की कोशिश की कि कोरोनावायरस शरीर पर कैसे हमला करता है? उस पर शरीर का जवाब क्या होता है? वैक्सीन की जरूरत क्यों है? वैक्सीन कैसे बन रहा है? यहां आप 5 प्रश्नों के जवाब के जरिए जानेंगे कि -

  1. कोरोनावायरस के हमले पर शरीर का रिस्पॉन्स क्या होता है?
  2. कोरोनावायरस को खत्म करने के लिए वैक्सीन की जरूरत क्या है?
  3. किस तरह से वैक्सीन बनाए जा रहे हैं?
  4. वैक्सीन के अप्रूवल की प्रोसेस क्या है?
  5. समय कम है तो सरकारों ने क्या प्रक्रिया तय की है?

आइए, इन मुद्दों को समझते हैं…

1. कोरोनावायरस के हमले पर शरीर का रिस्पॉन्स क्या होता है?

  • हमारे शरीर में गजब का सिस्टम है। वायरस हमला करता है तो हमारा शरीर यह पहचान लेता है कि कोई बाहरी वायरस सक्रिय हुआ है। एक इम्यून सेल जिसे एंटीजन प्रेजेंटिंग सेल (APC) कहते हैं, वह सबसे पहले वायरस को घेरता है। यह वायरल प्रोटीन बनाता है, जिसे एंटीजन कहते हैं। यह एंटीजन शरीर के इम्यून सिस्टम को सक्रिय करता है और उसे बताता है कि किसी वायरस ने हमला किया है और इससे निपटने की जरूरत है।
  • इम्यून सिस्टम में सबसे पहले किलर T सेल्स सक्रिय होते हैं। यह एंटीजन को पहचान कर B सेल्स को सक्रिय करते हैं। यह T और B सेल्स हमारे शरीर के अंदर वायरस जैसे हमलावरों से लड़ने के लिए फ्रंटलाइन वॉरियर्स होते हैं। जैसे ही इन्हें पता चलता है कि वायरस ने हमला किया है, यह अपनी संख्या बढ़ाते हैं।
  • हमले और इम्यून सिस्टम के सक्रिय होकर वायरस पर हावी होने तक का पीरियड बीमारी का होता है। इस दौरान बुखार, खांसी, गले में जकड़न, सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। अगर मरीज को डाइबिटीज, दिल की बीमारी या कोई अन्य क्रॉनिक बीमारी है तो इम्यून रिस्पॉन्स के सक्रिय होने से पहले ही वायरस अपनी संख्या बढ़ा चुका होता है। अगर सही इलाज न मिलें तो मरीज की मौत भी हो सकती है।

यह तो हो गई वायरस से लड़ने के लिए शरीर की अपनी प्रक्रिया। अब सवाल उठता है कि-

2. वायरस से लड़ने में वैक्सीन की जरूरत क्यों है?

  • सबसे पहले आप यह समझ लीजिए कि वैक्सीन क्या होता है? दरअसल, वैक्सीन किसी वायरस के हमले से पहले ही उससे लड़ने के लिए शरीर को तैयार करता है। अब आप ही सोचिए यदि आपके परिवार के सभी सदस्यों को वैक्सीन लगा होगा तो क्या आपको कोरोना का डर होगा? शायद बिल्कुल नहीं। इसी काम की तो वैक्सीन से उम्मीद की जा रही है।
  • जितने ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगा होगा, उतने ज्यादा लोग वायरस से सुरक्षित रहेंगे। इससे ही हर्ड इम्यूनिटी आएगी, जिसकी बात वैज्ञानिक कर रहे हैं। अब आप कहेंगे कि यह हर्ड इम्यूनिटी क्या बला है? तो आपके लिए यह जानना जरूरी है कि यह एक साइंटिफिक टर्म है, जिसका मतलब है कि ज्यादातर लोगों के शरीर वायरस से लड़ने की स्थिति में आ चुके हैं। इससे होगा यह कि वैक्सीन लगे लोग उन लोगों के लिए सुरक्षा कवच की तरह काम करेंगे, जिनके शरीर इस वायरस से लड़ने को तैयार नहीं है। यह प्रक्रिया एकाएक तो होगी नहीं, धीरे-धीरे होगी। इसी वजह से वायरस के खिलाफ लड़ाई में वैक्सीन का इंतजार किया जा रहा है।
  • दरअसल, कुछ देशों ने महामारी के आने के बाद सोचा कि वैक्सीन की जरूरत नहीं है। ज्यादातर लोगों को कोरोना हो जाएगा तो वैसे ही उनका शरीर उससे लड़ने के लिए एंटीबॉडी विकसित कर लेगा और हर्ड इम्यूनिटी आ जाएगी। मेडिकल जर्नल द लैंसेट ने स्पेन में हुए इसी तरह के प्रयासों पर स्टडी छापी और पाया कि अगर ऐसा किया तो हजारों लोग वायरस से लड़ने में मर चुके होंगे। इसके बाद बताया गया कि वैक्सीन के बिना हर्ड इम्यूनिटी नहीं होगी।

अब यह भी समझ आ गया कि कोरोना से लड़ने में वैक्सीन जरूरी है। लेकिन, यह बनेगा कैसे?

3. कितने तरह के वैक्सीन बन रहे हैं कोरोना से बचाने के लिए?

  • दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने वैक्सीन बनाने के लिए अलग-अलग तरीके निकाले हैं। सबका उद्देश्य है शरीर को वायरस के हमले से पहले लड़ाई के लिए तैयार करना। यानी एंटीजन बनाना, ताकि शरीर उसे पहचान कर लड़ने के काबिल बन सके। इस समय दुनियाभर में छह तरह से वैक्सीन बन रहे हैं-

1. जीवित वायरसः मूल वायरस में जेनेटिक बदलाव किया। उसे कमजोर बनाकर शरीर में भेजा। इससे वह बढ़ नहीं सका और शरीर ने उससे निपटना सीख लिया।
2. इनएक्टिवेटेड वायरसः मूल वायरस को रेडिएशन, केमिकल्स या गर्मी से कमजोर किया। यह भी न तो बढ़ सकता है और न ही बीमार कर सकता है।
3. प्रोटीन सबयूनिटः वायरस एंटीजन के एक हिस्से को लेते हैं। वह कमजोर होता है। मल्टीप्लाई नहीं होता। बीमार नहीं करता। पर शरीर को लड़ना सीखा देता है।
4. वायरस जैसे पार्टिकलः यह खोखले वायरस होते हैं। शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते लेकिन उन्हें कैसे हराना है, यह इम्यून सिस्टम को सीखा देते हैं।
5. DNA-RNA: मैसेंजर RNA (mRNA) या DNA कोड शरीर में जाकर वायरस प्रोटीन बनाते हैं। एंटीजन बनाते हैं, जिसे देखकर इम्यून सिस्टम एंटीबॉडी बनाता है।
6. वायरल वेक्टरः यह भी शरीर में जाकर कोरोनावायरस एंटीजन बनाता है। एडेनोवायरस जैसे वायरस से इम्यून सिस्टम को एक्टिव करते हैं।

यह तो हो गई वैक्सीन बनने की कहानी और उसके तरीके। वैक्सीन बन भी जाए तो वह सेफ और इफेक्टिव है, यह कैसे पता लगाते हैं।

4. वैक्सीन के अप्रूवल की प्रोसेस क्या है?

यह एक लंबी प्रक्रिया है। लैबोरेटरी से क्लिनिक तक पहुंचने में वैक्सीन कई स्टेज से गुजरती हैः-

1. प्री-क्लिनिकल टेस्टिंगः वैक्सीन का टेस्ट लैब में जानवरों पर होता है। इम्यून रिस्पॉन्स को देखकर तय होता है कि उसका क्या होना चाहिए।
2. फेज-1 सेफ्टी ट्रायल्सः कुछ वॉलेंटियर्स को चुनकर उन्हें वैक्सीन लगाया जाता है। उनके शरीर ने कैसे रिएक्ट किया, इसके आधार पर टेस्ट के नतीजों का एनालिसिस होता है।
3. फेज-2 एक्स्पेंडेड ट्रायल्सः अब वैक्सीन अलग-अलग उम्र के ग्रुप्स को लगाते हैं। इससे वैक्सीन की सेफ्टी और इम्यून सिस्टम को स्टिमुलेट करने की क्षमता देखी जाती है।
4. फेज-3 एफिकेसी ट्रायल्सः यह अंतिम स्टेज के ट्रायल्स हैं। हजारों लोगों को वैक्सीन लगाते हैं। कुछ महीनों की निगरानी होती है। कितने लोगों ने कैसे रिस्पॉन्स दिया, उस पर एफिकेसी तय होती है।
5. अप्रूवल/प्रोडक्शनः फेज-3 के नतीजों के आधार पर हर देश का ड्रग रेगुलेटर सेफ्टी और इफेक्टिवनेस के आधार पर वैक्सीन को अप्रूवल देता है। तब उसका प्रोडक्शन शुरू होता है।

यह तो हो गई औपचारिक प्रक्रिया। इसमें कई साल लग जाते हैं। WHO ने कोरोनावायरस को महामारी घोषित किया है और इस वजह से वैक्सीन की तत्काल जरूरत है। कुछ देशों ने इमरजेंसी या शुरुआती अप्रूवल का तरीका अपनाया है। यानी जो वैक्सीन फेज-1 या फेज-2 में इफेक्टिव दिखे, उन्हें भी अप्रूवल दे दिया। इसके बाद भी कुछ देश फेज-3 के ट्रायल्स के बिना अप्रूवल नहीं देना चाहते।

5. समय कम है तो सरकारों ने क्या प्रक्रिया तय की है?

  • वैक्सीन बनाने में कई साल लग जाते हैं। कोरोना के जितने भी वैक्सीन बने हैं और अप्रूवल के करीब पहुंचे हैं, वह एक रिकॉर्ड है। दुनिया ने इतनी तेजी से इससे पहले कभी वैक्सीन नहीं बनाया। इसके बाद भी महामारी से निपटने के लिए वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के साथ दुनियाभर के ड्रग रेगुलेटर्स ने नियम बदले हैं।
  • कुछ फेज मर्ज कर दिए गए हैं। उदाहरण के लिए, भारत में जायडस कैडिला के वैक्सीन के फेज-1/2 ट्रायल्स कम्बाइंड किए गए। इसी तरह ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका के वैक्सीन-कोवीशील्ड के फेज-2/3 ट्रायल्स साथ में हो रहे हैं।


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