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सुलभ इंटरनेशनल वाले डॉ. बिंदेश्वर पाठक के किस्से- ससुर ने कहा था, बेटी का जीवन खराब कर दिया

लाइफस्टाइल डेस्क. आजवर्ल्ड टॉयलेट डे है। दुनिया को शौचालय का महत्व समझाने के लिए वर्ल्ड टॉयलेट ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक जैक सिम 2001 में पहली बार इस दिन को मनाने की शुरुआत की थी। भारत में बिंदेश्वर पाठक 2001 से 'वर्ल्ड टॉयलेट डे' मना रहे हैं। वह सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक हैं। जैक सिम और बिंदेश्वर पाठक के प्रयासों से ही 19 नवंबर2013 में संयुक्त राष्ट्रने वर्ल्ड टॉयलेट डेको मान्यता दी। 2019 में वर्ल्ड टॉयलेट डे की थीम ‘लीविंग टु नो वन बिहाइंड’यानी किसी को पीछे नहीं छोड़ना है, जो टिकाऊ विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखकर बनाई गई है।

भारत में मैला ढोने की प्रथा के खिलाफ अभियान चलाने वाले बिंदेश्वर पाठक देश में स्वच्छता अभियान में अहम भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने दैनिक भास्कर APP के साथसोचने पर मजबूर करने वाले किस्से साझा किए...

  1. बिंदेश्वर पाठक बताते हैं- बचपन में हमारे घर में एक महिला बांस का बना सूप, डगरा और चलनी देने के लिए आती थी। जब वह लौटती,तो दादी जमीन पर पानी छिड़कतीं। मुझे आश्चर्य होता था कि इतने लोग आते हैं लेकिन दादी उन्हीं के लिए ऐसा क्यों करतीं? लोग कहते थे वह महिला अछूत है, इसलिए दादी पानी छिड़कती थी ताकि वह जगह पवित्र हो जाए। मैं कभी-कभी उस महिला को छूकर देखता था कि क्या मेरे शरीर और रंग में कोई परिवर्तन होता है या नहीं? लेकिन कोई बदलाव नहीं पाया। एक बार दादी ने मुझे उनके पैर छूते हुए देख लिया। घर में कोहराम मच गया। सर्दी के दिन थे, दादी ने मुझे पवित्र करने के लिए गाय का गोबर खिलाया और गोमूत्र पिलाया। गंगा जल से स्नान करवाया। उस समय मेरी उम्र 7 साल थी, इसलिए छुआछूत की घटना को अधिक समझ नहीं पाया।

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  2. मैं पढ़ाई पूरी करने के बाद 1968 में बिहार गांधी स्वच्छता समिति में शामिल हुआ। यह समिति गांधीजी के जन्म के 100वीं वर्षगांठ को मनाने के लिए बनी थी। मुझे काम देकर कहा गया, ‘‘सिर पर मैला ढोने की प्रथा अमानवीय है और गांधीजी इसे समाप्त करना चाहते थे। आप इसी पर काम कीजिए, यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।’’मैंने उन्हें अपने बचपन की घटना बताई उन्होंने कहा, हमें इससे मतलब नहीं, आप ब्राह्मण हैं या कोई और। मैं चंपारण में तीन महीने रहा। निर्देश थे कि जिस समुदाय के लिए काम करना चाहते हैं, उसके साथ समय गुजारना चाहिए। लिहाजा मैं मैला ढोने वालों के बीच रहा, उन्हें पढ़ाया-लिखाया भी। एक दिन सुबह-सुबह नई-नवेली दुल्हन के रोने की आवाज सुनाई दी। मौके पर पहुंचा तो देखा, उसके सास-ससुर कह रहे थे किबहू को शहर भेजो और शौचालय साफ करने के काम में लगाओ। लेकिनबहूशहर नहीं जाना चाहती थी। मैंने उसकी सास से कहा, वह नहीं जाना चाहती, आप अपनी जिद छोड़ क्यों नहीं देती। सास ने कहा, मैं एक सवाल करूं, अगर जवाब दे दिया तो मैं मान जाऊंगीं। मैंने कहा, पूछिए। उसने कहा, अगर ये आज शौचालय साफ नहीं करेगी और सब्जी बेचेगी तो इसके हाथ से कौन सब्जियां खरीदेगा। सचमुच, उस दिन मेरा सिर झुक गया, मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था।

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  3. डॉ. पाठक बताते हैं- अपने ही प्रदेश में एक बड़ी मार्मिक घटना भी घटी, जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। एक बार मैंकुछ साथियों के साथ चाय पीने जा रहा था, उस दौरान सांड ने एक बच्चे पर हमला कर दिया। आसपास के लोग और हम सब उसे बचाने के लिए दौड़े। इस दौरान भीड़ में से ही आवाज आई कि यह मैला ढोने वाले समुदाय की बस्ती का बच्चा है। यह सुनते ही लोग पीछेहो गए और बच्चे को छोड़ दिया। हम लोगों ने उसे उठाया और इलाज कराने के लिए दौड़े, लेकिन देर हो गई। हम उस बच्चे को बचा नहीं पाए।

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  4. ‘‘देश को शौच मुक्त करने गांधीजी के सपने को साकार करने के लिए अपनों से भी टकराव हुआ। जब मैं इस अभियान से जुड़ा तो पिता दुखी थे। आसपास के लोग खफा थे। ससुर भी काफी नाराज थे, एक समय ऐसा भी आया कि उन्होंने मुझसे कहा, मैं आपका चेहरा भी नहीं देखना चाहता।मेरी बेटी का जीवन खराब कर दिया। ससुर ने कहा, लोग पूछते हैं दामाद क्या करते हैं, मैं उन्हें क्या बताऊं? ब्राह्मण न होता तो बेटी की शादी कहीं और कर देता। मैंने उनसे कहा, मुझे गांधी जी का सपना पूरा करना है। उस दौर में देश में दो बड़ी समस्याएं थीं। पहला, मैला ढोने की समस्या और दूसरे खुले में शौच करने की समस्या। दशकों तक लोगों के साथ मिल जगह-जगह गंदगी की सफाई की, मैला ढोया और अभियान को कायम रखा। नतीजा रहा कि सुलभ शौचालय के अभियान में दोनों ही समस्याओं को काफी हद तक खत्म करने में कामयाबी मिली।’’

  5. भारत में मैला ढोने की प्रथा के खिलाफ अभियान चलाने वाले बिंदेश्वरपाठक देश में स्वच्छता अभियान में अहम भूमिका निभा रहे हैं। देश में शौचालय निर्माण विषय पर उन्होंने बहुत शोध किया है। डॉ. पाठक ने सबसे पहले 1968 मेंडिस्पोजल कम्पोस्ट शौचालय का आविष्कार किया, जो कम खर्च में घर के आसपास मिलने वाली सामग्री से बनाया जा सकता है। यह आगे चलकर बेहतरीन वैश्विक तकनीकों में से एक माना गया। उनके सुलभ इंटरनेशनल की मदद से देशभर में सुलभ शौचालयों की शृंखला स्थापित की है। डॉ. पाठक को 2003 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।



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      world toilet day 2019 Sulabh International founder Bindeshwar Pathak shares life journey and stories


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