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नई दिल्ली से संतोष कुमार.महाराष्ट्र के चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा-शिवसेना के बीच बदले रिश्ते पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह निगाह रखे हुए थे। शाह के करीबी प्रभारी महासचिव भूपेंद्र यादव मुंबई से दिल्ली आ जा रहे थे। शिवसेना के रुख को देखते हुए भाजपा नेतृत्व ने तय किया था कि सत्ता को लेकर शिवसेना को पहले बेनकाब किया जाए। इसी रणनीति के तहत सरकार गठन की आखिरी तारीख से एक दिन पहले तक भाजपा ने शिवसेना को मनाने का संदेश दिया। फिर 8 नवंबर को देंवेद्र फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया था।
भाजपा नेतृत्व को बीते सोमवार रात भनक लगी कि शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस में सहमति बनने जा रही है। तीनों दल न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर बात करने के लिए समय चाह रहे थे। इस बीच राकांपा ने राज्यपाल से और समय मांग लिया। इसके बाद महज तीन घंटे में राष्ट्रपति शासन के लिए राज्यपाल की सिफारिश से लेकर कैबिनेट की बैठक और राष्ट्रपति के दस्तखत तक हो गए। एनसीपी को उम्मीद थी कि राज्यपाल समय नहीं देते हैं तो भी उनके पास रात 8 बजे तक का समय होगा। पर राज्यपाल ने दिन में ही अपनी सिफारिश केंद्र को भेज दी।
इसमें शामिल व्यक्ति के मुताबिक, राज्यपाल को दिन में ही चिट्ठी देकर राष्ट्रपति शासन का मौका देना भी भाजपा-राकांपा की रणनीति का हिस्सा था, वरना राकांपा शाम तक की मोहलत के खत्म होने का इंतजार कर सकती थी। उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शरद पवार की 40 मिनट चली मुलाकात भी सरकार गठन के संकेत दे चुकी थी। मोदी-पवार की मुलाकात के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मोदी से मुलाकात की थी। पूरी पटकथा इसी बैठक में बनी। तय हुआ कि राकांपा की ओर से अजित पवार भाजपा की ओर कदम बढ़ाएंगे, न कि शरद पवार। इसी फॉर्मूले पर काम आगे बढ़ाया गया। भाजपा चाहती थी कि शिवसेना और कांग्रेस दोनों को बेनकाब किया जाए। इसलिए सत्ता के मुहाने पर लाकर शाह ने शह दी और शिवसेना-कांग्रेस मात खा गई।
सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव के वक्त भी राकांपा से भाजपा को गठबंधन का संकेत था, पर बदले में शिवसेना को एनडीए से अलग करने की शर्त रखी गई थी। तब भाजपा ने मना कर दिया था, लेकिन शिवसेना के रुख से परेशान भाजपा को इस बार मौका मिला तो देर नहीं की।
भाजपा की रणनीति के 6 समीकरण
पहला: भाजपा ने यह संदेश दिया कि आखिरी वक्त उसने जनादेश का सम्मान करते हुए शिवसेना को मनाने की कोशिश की और शिवसेना की तरह किसी अन्य विरोधी विचार वाले दलों से समर्थन तक नहीं मांगा।
दूसरा: शिवसेना किस तरह से सत्ता को लेकर बेचैन है कि वह विपरीत विचारधारा के साथ जाने से भी परहेज नहीं कर रही और गठबंधन को मिले जनादेश का अपमान कर रही है।
तीसरा: भाजपा का मानना था कि अगर आने वाले समय में शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस सरकार बना भी लेती है तो शायद ज्यादा दिन नहीं चलेगी। अगर पांच साल भी चल गई तो अगले चुनाव में शिवसेना का राकांपा-कांग्रेस गठबंधन के साथ चुनाव लड़ना असंभव होगा। ऐसे में शिवसेना बुरी तरह से घिर जाएगी।
चौथा: पवार से बातचीत से पहले भाजपा ने अपने संगठन को चुनाव के लिहाज से तैयार होने को कह दिया था। खासतौर से शिवसेना जिन सीटों पर जीती है, वहां और मजबूती से काम करने को कह दिया गया था।
पांचवां: महाराष्ट्र में शिवसेना सरकार बना लेती तो पार्टी ने पूरे राज्य में पोलखोल अभियान और वोटर के साथ धोखा अभियान का खाका भी तैयार कर लिया था।
छठा: शिवसेना के आगे झुकने से भाजपा को अन्य दलों से गठबंधन में भी दबाव का सामना करना पड़ता, लिहाजा पार्टी ने फडणवीस सरकार बनाने के फॉर्मूले को किनारे करते हुए संयमित रुख अपनाया।
पटकथा ऐसी थी कि लगे मानो भाजपा ने कुछ नहीं किया
2014 में शिवसेना जब भाजपा को आंखें दिखा रही थी, तब राकांपा ने अल्पमत सरकार को विधानसभा के फ्लोर पर बचाने का ऐलान किया था। इस बार भी फडणवीस उस दिशा में बढ़ने की सोच रहे थे, लेकिन शाह ने शुरुआत में साफ मना कर दिया था। लेकिन परदे के पीछे ऐसी पटकथा तैयार की गई कि ऐसा लगे मानो भाजपा ने कुछ नहीं किया। राकांपा अपनी वजह से आई और शिवसेना के अड़ियल रुख की वजह से भाजपा को सरकार बनानी पड़ी।
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