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बहुत से लोग अभी ऐसे होंगे, जिनका मन घर में नहीं लग रहा होगा। तन को रोका जा सकता है, क्योंकि उसको रोकने वाले दूसरे लोग भी हैं। किसी की इच्छा हो भी रही होगी कि बाहर निकलें तो घर के अनुशासित लोग उसे रोक रहे होंगे। लेकिन, मन का क्या करें? यदि तन रुक गया और मन नहीं रुका तो दौड़-दौड़कर थक जाएगा, हमें थका देगा। इस समय इस बात की पूरी संभावना है कि जो लोग घरों में हैं, वे कहीं उदासी से न घिर जाएं। इसलिए यह नई-नई दृष्टि से सोचने का वक्त है।
शायर सूफियान काजी ने बड़ी अच्छी पंक्तियां लिखी हैं- जहां पे लगता है दरवाजे बंद हैं सारे, वहीं से कोई नया रास्ता निकलता है। इन अल्फाज को ठीक से समझें। आज घर तो बंद है, लेकिन जीवन की सुरक्षा का नया रास्ता खुला है। मन इस बंद दरवाजे पर बार-बार दस्तक देगा। इसलिए आज नवरात्रि के आठवें दिन जब अष्टमी मना रहे हों, अपने मन पर काम कीजिए।
मन को अपनी वृत्ति के अनुसार प्रतीक मान लीजिए। दार्शनिकों ने मन के कई रूप बताए हैं। उनके अनुसार किसी का मन दर्पण है, किसी का लायब्रेरी है, किसी का बैंक है। ऐसे ही मन का एक रूप श्वान भी है। जैसे कुत्ते को सिखा सकते हैं तो वह नियंत्रण में आ जाएगा, अन्यथा आवारा होकर सड़क पर घूमेगा। ऐसे ही हाल मन के हैं। खैर, इस समय हमारा विषय यह है कि तन के साथ-साथ मन को भी घर के भीतर रोकिए। इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है, ध्यान यानी मेडिटेशन।
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