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इस समय बस यही सोचें कि देश के लिए क्या कर सकते हैं

भारत को इस समय ऐसे इनोवेशंस (नवाचारों या आविष्कारों) की जरूरत है, जो भले ही अभूतपूर्व न हों, लेकिन ऐसे हों जो पहले से मौजूद, काम में लाए जा सकने वाले इनोवेशंस की जरूरतों को पूरा कर सकें। साथ ही जहां भी, जैसी भी खामी रही हो, उसे दूर करने में सरकार की मदद कर सकें। खोजकर्ताओं का जोर इस बात पर होना चाहिए कि वे अपने उत्पादों को जल्द से जल्द बाजार में लाकर सरकार की मदद को बढ़ा सकें। यह समय एक हफ्ते से लेकर एक महीने भी हो सकता है। ये इनोवेशन जांच, निदान, इलाज, वैक्सीन, वायरस पर नियंत्रण, जनस्वास्थ्य और अन्य श्रेणियों के हो सकते हैं। इसमें जांच और घर में देखभाल के लिए मोबाइल हेल्थ तकनीक, टेस्ट के लिए किट्स और देखभाल करने वालों के लिए सुरक्षा सामग्री, स्टरलाइजेशन से जुड़ी खोज, गंभीर रोगियों की पहचान करने के लिए डिजिटल टूल और जोखिम पहचानने वाले यंत्र, कम कीमत के वेंटिलेटर तथा ऑक्सीजन थैरेपी इकाइयां, गंभीर स्थितियों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आधारित सिस्टम, प्लग एंड प्ले आइसोलेशन यूनिट्स जिनका आकार बदला जा सके और इलाज के लिए टेंट के अलावा बहुत कुछ शामिल हो सकता है। इसलिए कई सरकारी संगठनों ने छात्रों को उनके नए विचारों के साथ आगे आने को कहा है, क्योंकि सैकड़ों में से एक विचार भी पूरी तस्वीर बदलने वाला हो सकता है।

गुजरात सरकार स्टूडेंट स्टार्ट-अप इनोवेशन पॉलिसी लेकर आई है, जिसका नाम ‘इनोवेट व्हाइल यू आइसोलेट’ है। चार दिन में ही सरकार के पास प्रोडक्ट के 88 नए आइडिया आए, जो उन लोगों और स्वास्थ्य कर्मचारियों की मदद कर सकते हैं, जो इस तेजी से फैल रही बीमारी से लड़ रहे हैं। डॉ. प्राची पांडे, ईशा शाह, रुतविक पटेल, शिखा कडकिया आदि एक ऐसा मास्क लेकर आए हैं, जो कोरोना वायरस के संपर्क में आने पर रंग बदलता है। रंग, वायरस के होने का संकेत देता है। यदि किसी की सांस में वायरस वाली ड्रॉपलेट्स जाती हैं, तो मास्क पर एक पट्टी पर रंग दिखाई देगा। इससे संक्रमण को रोका जा सकता है।

भूषण जाधव, रामकु पाटगिर, कृपालसिंह डाभी और नीरज वेणुगोपालन, वडोदरा के इन सभी इंजीनियरिंग छात्रों ने तीन लेयर वाले दस्ताने डिजाइन किए हैं। पहली और आखिरी परत लैटेक्स से बनी है और बीच वाली परत में केमिकल या सैनिटाइजर है। यह दस्ताना हर उस चीज को सैनिटाइज कर देगा, जिसे ये छुएगा। दस्ताने का प्रोटोटाइप तैयार है और टीम एक-दो दिन में इसका परीक्षण करने वाली है। एक बार पैकेट से निकालने के बाद, इस दस्ताने का इस्तेमाल तीन दिनों के लिए किया जा सकता है। धवल त्रिवेदी ने वडोदरा की एक चिकित्सा उपकरण कंपनी के साथ मिलकर एक 3डी प्रिंटेड टूथब्रश डिजाइन किया है, क्योंकि यह साबित हुआ है कि आईसीयू के वे रोगी जो अच्छे से मुंह की साफ-सफाई करते हैं, उनके बचे रहने की ज्यादा संभावना है।

बेंगलुरु स्थित द सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर प्लेटफॉर्म ने कोविड-19 के प्रभाव को रोकने के लिए इनोवेटर्स, स्टार्ट-अप और आंत्रप्रेन्योर्स से नए आइडियाज मांगे थे। इनमें से वेंटिलेटर और डायग्नोस्टिक सेंटर क्षेत्र के 150 में से चार सबमिशन को शॉर्टलिस्ट कर चुके हैं। इस बीच, बेंगलुरु नागरिक निकाय ने चार ड्रोन ऑपरेटर्स को काम पर लगाया है, जो अभी 20 वर्ष के हैं। नील सागर जी. एयरोस्पेस इंजीनियर है, निशांत मुरली सिविल इंजीनियर है, विनय कुमार ऐरोनॉटिकल इंजीनियर है और नागा प्रवीण इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर है। इन्हें बाजार, बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन जैसी जगहों को डिसइंफेक्ट (कीटाणुरहित) करने को कहा गया है। ड्रोन स्टार्ट-अप, अल्फा ड्रोन टेक्नोलॉजी के संस्थापक नील सागर को उसके छह हेक्साकॉप्टर ड्रोन के साथ काम करने के लिए चुना गया है। छह प्रोपेलर वाले ये हेक्साकॉप्टर 15 लीटर कीटाणुनाशक रख सकते हैं और 20 से 25 फीट तक उड़ते हैं और दिन में सात घंटे तक काम करते हैं। रोज सुबह टीम को सिविक अधिकारियों द्वारा एक शेड्यूल दिया जाता है, जिसमें बताया जाता है कि उन्हें कौन से क्षेत्रों को कवर करना है। उनका काम सुबह लगभग 9.30 बजे शुरू होता है और शाम 5.30 बजे से पहले वे पूरे शहर की यात्रा कर अपना काम खत्म कर देते हैं।

फंडा यह है कि कोरोना से लड़ने के लिए स्टार्टअप्स तैयार करने होंगे, क्योंकि यह इस खतरनाक बीमारी से लड़ने में सरकार की मदद करने और यह बात करने का समय है कि हम देश के लिए क्या कर सकते हैं, बजाय इसके कि देश ने हमारे लिए क्या किया है।



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हाल ही में मीनल दखावे भोंसले और इनकी टीम ने 6 हफ्ते के भीतर ही कोरोनावायरस की टेस्टिंग किट तैयार की।


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