जयपुर में जन्मे इरफान खान ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा नई दिल्ली में प्रशिक्षण लिया और मुंबई में लंबे समय तक संघर्ष किया। उन्होंने उतने रोजे नहीं किए जितने फांके (अभाव के कारण भूखा रहना) किए। मुंबई में संघर्ष करते हुए स्टूडियो दर स्टूडियो भटके। उनका चेहरा-मोहरा पारंपरिक सितारे की तरह नहीं था। उन्हें हम ओमपुरी और नसीरुद्दीन शाह की स्वाभाविक अभिनय की परंपरा का कलाकार मान सकते हैं। इरफान खान को टेलीविजन के लिए चाणक्य, चंद्रकांता और अनुगूंज में कंजूस के दिल के समान छोटी भूमिकाएं करनी पड़ी। दूरदर्शन के लिए ‘लाल घास’ नामक कार्यक्रम में उन्हें दो-चार कदम चलने का अवसर मिला। संघर्ष के समय पैरों से अधिक जख्म हृदय में लगे। उन्हें पहली सफलता फिल्म ‘पानसिंह तोमर’ में मिली। पीकू, तलवार और जज्बा में उन्हें सराहा गया। सनी देओल अभिनीत फिल्म ‘राइट और राॅन्ग’ में अपराधी के खिलाफ यथेष्ट प्रमाण नहीं जुटा पाने की वेदना से उनका शरीर ऐसा दिखा मानो किसी ने पलीता (बम) लगा दिया हो। विशाल भारद्वाज की ‘मकबूल’ में नकारात्मक भूमिका में उन्होंने जबर्दस्त प्रभाव पैदा किया। पंकज कपूर जैसे निष्णात अभिनेता के साथ अभिनय करते हुए शॉट दर शॉट मुकाबला किया, परंतु अपनी हत्या के दृश्य में पंकज कपूर जैसे अभिनेता हमेशा बघनखा धारण किए होते हैं।
बहरहाल, हॉलीवुड में प्रतिभा की पहचान करने के लिए एक दूरबीन है और हॉलीवुड ने इरफान खान को लाइफ ऑफ पाई, द वॉरियर, सलाम बॉम्बे, स्लमडॉग मिलेनियर और अमेजिंग स्पाइडर मैन में अवसर दिए। इरफान ने भारत में जितने रुपए नहीं कमाए, उससे अधिक डॉलर कमाए। इरफान खान की ‘लंच बॉक्स’ में लीक से हटकर बनी प्रेम कथा है। क्या फिल्मकार को इसकी प्रेरणा उस कहावत से मिली कि पुरुष के हृदय का रास्ता उसके पेट से होकर गुजरता है। इरफान खान अभिनीत ‘हिंदी मीडियम’ में पाकिस्तानी कलाकार सबा कमर ने उनकी पत्नी की भूमिका की थी। अपने बच्चे को गरीबों के लिए आरक्षित सीट दिलाने के लिए वे गरीबों की बस्ती में घर लेते हैं। फिल्म में एक संवाद का आशय यह है कि इरफान खान अभिनीत पात्र का दिवाला निकला है और अभी-अभी गरीब हुआ है। वह पुश्तैनी गरीबों के संघर्ष को नहीं समझ सकता। बस्ती में कोई सात पीढ़ियों से गरीब है और कुछ को यह भी याद नहीं कि कितनी सदियों से वे गरीबी झेल रहे हैं। उन्हें भूख ने बड़े प्यार से पाला है। पूंजीवाद का सबसे पुराना और विलक्षण आविष्कार गरीबी है। उन्होंने ऐसा प्रॉडक्ट बनाया है जिसकी कोई एक्सपायरी डेट ही नहीं है। दो वर्ष पश्चात आने वाली आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी दशकों पूर्व की गई थी। कोरोना ने उस मंदी के लिए जमीन बना दी है। दार्शनिक बेन्जामिन फ्रेंकलिन ने सही आकलन किया था कि पूंजीवाद अपने ही पलटकर आए शस्त्र से घायल होगा। अनावश्यक वस्तुओं की खरीदी को बढ़ावा देने के दुष्परिणाम सामने आएंगे।
बहरहाल, इरफान अभिनीत नई फिल्म में उसकी पुत्री इंग्लैंड जाकर पढ़ना चाहती है। दरियागंज दिल्ली का व्यापारी एक करोड़ रुपए कैसे जुटाए। इंग्लैंड में उच्च पढ़ाई क्यों आवश्यक है, का जवाब यह दिया जाता है कि महात्मा गांधी, बाबा साहेब आम्बेडकर और नेहरू जैसे नेता भी इंग्लैंड में पढ़े और अपनी जुबां पर स्वतंत्रता का स्वाद लेकर भारत लौटे। भारतीय शिक्षा, पाठ्यक्रम सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जिन्हें तक्षशिला का राग आलापने मात्र से कुछ नहीं होगा। इरफान खान के अभिनय की विशेषता भाव-भंगिमा की किफायत में देखी जा सकती है। हृदय की आवश्यकता से किंचित भी अधिक कोई मांसपेशी हरकत नहीं करती। अपने अवचेतन और शरीर पर संपूर्ण नियंत्रण से ऐसा कर पाना संभव होता है। इस तरह अभिनय कला साधना बन जाती है। कोई आश्चर्य नहीं एक कलाकार का नाम पॉल मुनि था और हमारे अशोक कुमार भी दादा मुनि कहलाते थे। इरफान खान की मां का निधन कुछ दिन पूर्व ही हुआ। ज्ञातव्य है कि साहिर लुधियानवी और उनकी मां का निधन भी लगभग साथ ही हुआ था। क्या अम्लिकल कोर्ड (नाल) काटे नहीं कटती।
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