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हम न रहेंगे, तुम न रहोगे, फिर भी रहेंगी निशानियां

तीन वर्ष की आयु में ऋषि कपूर ने अपने पिता राज कपूर की फिल्म ‘श्री 420’ के गीतांकन में हिस्सा लिया। गीत की पंक्ति है- ‘हम न रहेंगे, तुम न रहोगे, फिर भी रहेंगी निशानियां..’। कुछ वर्ष पूर्व उनकी आत्मकथा ‘खुल्लम-खुल्ला’ का प्रकाशन हुआ। किताब का नाम ही उसकी विचार शैली का परिचय देता है। उसने कभी कुछ छिपाकर नहीं किया। बहरहाल, खुल्लम-खुल्ला के प्रकाशन से उन्होंने कहा कि किताब का हिंदी अनुवाद श्रीमती ऊषा जयप्रकाश चौकसे से ही कराया जाए। वे मेरी बहन ऋतु नंदा की तीन किताबों का अनुवाद कर चुकी हैं।
सन 2008 में खाकसार, ऋषि कपूर के कक्ष में बैठकर फिल्म से जुड़े लेखकों को हरिकृष्ण प्रेमी जन्मशती समारोह में आने के लिए निमंत्रण दे रहा था। ऋषि कपूर ने कहा कि वे स्वयं इंदौर आएंगे। हरिकृष्ण प्रेमी की लिखी फिल्म में राज कपूर ने अभिनय किया था। उन्होंने समारोह में कहा कि पिता कभी मरता नहीं, वह अपनी संतानों की श्वास में जीवित रहता है। उन्होंने लगभग 30 मिनट भाषण दिया। वह ऋषि कपूर की दूसरी इंदौर यात्रा थी। सन् 1986 में इंदौर के नेहरू स्टेडियम में ‘राम तेरी गंगा मैली’ का रजत जयंती समारोह मनाया गया।

उस उत्सव में वे ‘मैं हूं प्रेम रोगी’ गाते हुए जमकर थिरके। ऋषि कपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ में सोलह वर्षीय किशोर की भूमिका अभिनीत की, जिसके लिए उन्हें अभिनय का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। ‘प्रेमरोग’ और ‘हिना’ में उन्होंने अभिनय किया। हबीब फैजल की ‘दो दुनी चार’ में गणित के शिक्षक की भूमिका अभिनीत की। अपने आदर्श से नहीं डिगने वाला शिक्षक जीवन में पहली बार एक छात्र के अंक बढ़ाने के लिए संकोच के साथ तैयार होता है। हा

लात कुछ ऐसे थे कि उसे मारुति कार खरीदना है। रिश्वत लेने के समय वहां मौजूद उनका भूतपूर्व छात्र उनके चरण छूते हुए कहता है कि उनकी शिक्षा ने ही उसे सफल और समृद्ध व्यक्ति बनाया है। उसी क्षण वे रिश्वत लेने से इनकार कर देते हैं। हबीब फैजल के पिता भोपाल में शिक्षक रहे थे। पिता-पुत्र का रिश्ता भी तीर-कमान की तरह होता है। पिता के कमान की प्रत्यंचा पर तनाव बढ़ते ही पुत्र रूपी तीर जीवन में निशाने पर जा लगता है।
करण जौहर की ‘अग्निपथ’ में ऋषि कपूर जैसे मासूम से दिखने वाले व्यक्ति ने एक कसाई की भूमिका विश्वसनीय ढंग से अभिनीत की। उन्होंने एक फिल्म में दाऊद इब्राहिम प्रेरित भूमिका भी की थी। उनकी व्यक्तिगत सोच ऐसी थी कि किसी भी प्रस्ताव को पहली बार सुनकर मना कर देते थे। बाद में विचार करके स्वीकार करते थे। उनसे कोई काम कराने का कारगर तरीका यह था कि नीतू कपूर के माध्यम से बात पहुंचाई जाए। वे नीतू को कभी ‘ना’ नहीं करते थे।

मुंबई के पाली हिल क्षेत्र में उनके बंगले का नाम ‘कृष्णा-राज’ था, जिसे तोड़कर बाईस माला बहुमंजिले के निर्माण में फिल्म शूटिंग के लिए उपकरण सहित सारी व्यवस्था का भी प्रावधान किया गया था। गोया कि फिल्म निर्माण कार्य चेंबूर से हटाकर पाली हिल लाया जा रहा था। उनकी सोच हमेशा फिल्म केंद्रित रही।
कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने भारी मात्रा में विविध प्रकार के चावल खरीदे और दीपावली के अवसर पर एक-एक किलो के पांच पैकेट मित्रों को भेंट स्वरूप भेजे। वे रिश्तों की अहमियत समझते थे। इंदरराज आनंद ने आग और संगम लिखी थी। उनका विवाह पृथ्वीराज कपूर के रिश्तेदार की कन्या से हुआ था। इंदरराज आनंद का बेटा बिट्‌टू आनंद ऋषि कपूर का बचपन का मित्र था। सितारा बनते ही ऋषि कपूर ने बिट्टू आनंद को फिल्म निर्माण के लिए प्रेरित किया और अपना मेहनताना भी नहीं लिया।

फरीदा जलाल अभिनय छोड़कर अपने पति के साथ बंगलौर रहने चली गई थीं। हिना के निर्माण के समय ऋषि कपूर ने उन्हें वापस बुलाया। हिना से फरीदा जलाल की दूसरी पारी शुरू हुई। फरीदा ने बॉबी में भी काम किया था। ऋषि कपूर को जल्दी गुस्सा आ जाता था, परंतु गुबार निकलते ही वे क्षमा मांग लेते थे। उनका कद सामान्य से कम था, परंतु अभिनय क्षेत्र में वे टिंगू कभी नहीं रहे। ज्ञातव्य है कि ‘आ अब लौट चलें’ उनके द्वारा निर्देशित फिल्म थी।



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