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राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से बाहर निकलने पर देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जरूरी है कि सभी सरकारें, सभी पार्टियां मिलकर एक राष्ट्रीय नवनिर्माण योजना पर सहमत हों। यहां मैं इस योजना के एक हिस्से का प्रस्ताव रख रहा हूं जिसमें एक पंथ दो काज हो जाएंगे। रोजगार सृजन भी होगा और देश को भविष्य की सबसे बड़ी आपदा से बचाने में मदद भी मिलेगी।
देश में बेरोजगारी के आंकड़े नियमित रूप से इकट्ठे करने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनाॅमी के अनुसार कोरोना का कुछ भी असर होने से पहले फरवरी के महीने तक देश में कुल 40.4 करोड़ लोग किसी न किसी तरह के रोजगार में थे। अप्रैल के अंतिम सप्ताह में इनकी संख्या घटकर 28.1 करोड़ हो गई। यानी कि 12 करोड़ रोजगार खत्म हो गए।
लॉकडाउन खुलने के बाद भी शहरों में फैक्ट्री या उद्योग खोलने की बंदिश धीरे-धीरे ही हटेगी। इसके बावजूद मंदी के चलते सभी पुराने रोजगार वापस नहीं आएंगे। उधर, गांवों में अधिकांश जगह पर फसल की कटाई का काम पूरा हो चुका है। फसल की रोपाई से पहले कोई खास काम नहीं है। मानसून के दौरान भवन निर्माण का काम भी बहुत घट जाता है। इसलिए, आने वाले तीन चार महीने देश के गरीबों के लिए आजीविका के संकट का समय है।
इसलिए तत्काल एक ऐसी योजना की आवश्यकता है, जो बेरोजगार हुए लोगों को अगले कुछ महीने के लिए सार्थक रोजगार दे सके। महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) एक बना बनाया ढांचा है, जिससे इस चुनौती का मुकाबला किया जा सकता है। लेकिन, इस योजना का विस्तार कर इसे ग्रामीण से शहरी इलाकों में भी ले जाना होगा, इसके बजट को कई गुना बढ़ाना होगा, इसकी कुछ वर्तमान शर्तों में ढील देनी होगी। इस राष्ट्रीय नवनिर्माण योजना का मुख्य उद्देश्य होगा देश को भविष्य में ऐसे किसी प्रकोप से बचाना।
महामारी के बाद जो इससे बड़ा खतरा मुंह बाएं खड़ा है, वह जलवायु परिवर्तन का है। इस संकट को देश को जलवायु परिवर्तन के महासंकट से बचाने के एक अवसर के रूप में प्रयोग करना चाहिए। जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना करने के लिए दो बड़े काम हैं, जिनके लिए बड़ी संख्या में मजदूरों की जरूरत है। पहला काम है देशभर के जलाशयों, तालाबों, जोहड़, बावड़ी कुंओं को सुधारने का। इसके साथ नहरों को गहरा करने और नदियों की सफाई का काम भी जोड़ा जा सकता है। दूसरा काम है जंगल के संरक्षण, संवर्धन और वृक्षारोपण का।
बारिश का मौसम शुरू होने से पहले इन दोनों कामों को युद्धस्तर पर एक राष्ट्रीय मिशन बनाकर किया जा सकता है। जब मानसून आने पर यह काम रुक जाए, उस वक्त देशभर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की अवस्था सुधारने और देश के हर नागरिक के स्वास्थ्य की जांच के काम और सरकारी स्कूलों में सुधार का काम लिया जा सकता है।
इसके लिए वर्तमान मनरेगा योजना में सुधार करने होंगे। पहला, फिलहाल मनरेगा के तहत प्रत्येक परिवार को एक जॉब कार्ड मिलता है जिसके तहत परिवार को कुल मिलाकर साल में अधिकतम 100 दिन का रोजगार मिल सकता है। इस सीमा को प्रति व्यक्ति 100 दिन कर दिया जाए या फिर परिवार के लिए अधिकतम सीमा को बढ़ाकर 200 दिन कर दिया जाए।
दूसरा, जिन परिवारों के पास जॉब कार्ड नहीं है, उन्हें मौके पर एक अस्थायी कार्ड देने की व्यवस्था की जाए। तीसरा, मनरेगा के तहत पेमेंट केवल बैंक में भेजने के वर्तमान नियम में ढील देकर इन महीनों में नकद या खाद्यान्न के रूप में पेमेंट की व्यवस्था की जाए। चौथा, सीधे दिहाड़ी के हिसाब से पेमेंट किया जाए। पांचवां, कुछ राज्यों में कोरोना के भय से 50 वर्ष से ऊपर के लोगों को मनरेगा में रोजगार देने पर जो पाबंदी लगी है, वह हटाई जाए।
इस राष्ट्रीय मिशन में शहरी इलाकों के लिए भी एक रोजगार गारंटी योजना शुरू करनी होगी। ऐसी योजना का प्रारूप अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री प्रोफेसर अमित बासोले और राजेंद्रन पेश कर चुके हैं। उस प्रस्ताव में कुछ संशोधन कर अगले छह महीने के लिए विशेष योजना चलाई जा सकती है जिसमें हर परिवार को ₹400 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से कम से कम 100 दिन रोजगार दिया जा सकता है।
जाहिर है ऐसे बड़े राष्ट्रीय मिशन के लिए बड़ी धन राशि की आवश्यकता होगी। इस साल सरकार ने मनरेगा के लिए केवल 60 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान रखा था। ग्रामीण इलाकों के लिए इस राशि को बढ़ाकर दो लाख करोड़ रुपए करना होगा। शहरी क्षेत्र के लिए अलग से एक लाख करोड़ रुपए का प्रावधान करना होगा।
देखने में तीन लाख करोड़ रुपए की यह राशि बड़ी लग सकती है, लेकिन अगर केंद्र की तरह राज्य सरकारें भी सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता रोक लेती हैं तो केवल इस एक कदम से 1.2 लाख करोड़ रुपए की बचत होगी। यूं भी जहां चाह, वहां राह। इस वक्त लोगों को दिया गया रोजगार देश को भुखमरी से बचाने और अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने का सबसे प्रभावी कदम होगा।
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)
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