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भास्कर के रेडियो ‘माय एफएम’ की रेडियो जॉकी टीना ने मुझे इस गुरुवार सुबह-सुबह फोन किया। चूंकि वे सुबह 8 से 11 ‘सलाम भोपाल’ प्रोग्राम होस्ट करती हैं और संयोग से उस दिन भोपाल के मशहूर न्यू मार्केट में दुकानें फिर खुल रही थीं, इसलिए वे जानना चाहती थीं कि दुकानों पर ज्यादा ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए मेरे सुझाव क्या हैं।
जब मैंने स्पष्ट रूप से कहा कि फरवरी और मई 2020 के बीच शॉपिंग के तरीके बदल गए हैं और अब कम से कम कुछ समय के लिए कोई भी दुकानों में नहीं जाएगा। तो उन्हें जिज्ञासा हुई कि फिर कमाई कैसे शुरू होगी? फिर हमने कई मुद्दों पर चर्चा शुरू की जिसमें सही ढंग से ई-प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर होम डिलिवरी के जरिए स्थानीय लोगों की जरूरतें पूरा करना भी शामिल था।
वह भी स्थानीय रूप से बने उत्पादों से। इससे खरीदार का भी भरोसा बढ़ेगा। चूंकि उत्पाद उनके घरों के पास ही बनेगा, तो खरीदार को मनोवैज्ञानिक रूप से यह भरोसा रहेगा कि अगर कुछ गड़बड़ होता है, तो वह खुद जाकर उत्पाद वापस कर सकता है। हमने इस पर भी चर्चा की कैसे ज्वेलरी जैसे सामानों की मांग भी पैदा की जा सकती है, जिन्हें आवश्यक वस्तु नहीं माना जाता।
मेरा इंटरव्यू रेडियो पर आने के बाद lovelocalbuylocal (लव लोकल बाय लोकल) नाम के फेसबुक ग्रुप से किसी ने मुझसे संपर्क किया। मई में ही शुरू हुए इस पेज का एकमात्र उद्देश्य इन बदली हुई परिस्थितियों में किसानों की स्थानीय स्तर पर बाजार तलाशने में मदद करना है।
इसकी शुरुआत तब हुई जब केरल के वायनाड में पाइनएप्पल की खेती करने वाले बिबिन वासु यात्रा पर रोक के कारण अपनी 20 ट्रक फसल नहीं भेज पाए। पहले उन्होंने अपनी जान-पहचान के स्थानीय लोगों से संपर्क किया और कृषि विभाग से भी मदद मांगी जो पाइनएप्पल किसानों के लिए ‘पाइनएप्पल चैलेंज’ नाम की एक पहल चला रहा है। लेकिन बिक्री उतनी अच्छी नहीं रही।
तब बिबिन आंत्रप्रेन्योर जीमोल कोरुथ वर्गीस और दिविया थॉमस के संपर्क में आए, जिन्होंने उनकी गैर-पारंपरिक तरीके से मदद की। उन्होंने अपने 6 दोस्तों के साथ पाइनएप्पल डिश बनाते हुए अपना एक वीडियो पोस्ट किया। वीडियो के अंत में बिबिन ने बताया कि कैसे उनके जैसे किसान प्रभावित हैं। यह वीडियो वाट्सएप और फेसबुक पर शेयर किया गया और बिबिन को फोन आने शुरू हो गए।
इस वीडियो पर मिली प्रतिक्रिया देखते हुए ‘लव लोकल बाय लोकल’ पेज बनाया गया। इसे दिविया, जीमोल और उनके 6 दोस्त चला रहे हैं और इसपर नियमित रूप से फसलों और सब्जियां, चावल की कई किस्में, आंवला, आम विक्रेताओं और मुर्गीपालन करने वालों तक की जानकारी पोस्ट की जाती है।
‘बी2सी’ (बिजनेस टू कंज्यूमर) के नए बिजनेस मॉडल के लिए अब काम के नए सिस्टम की जरूरत है। ऐसा सिस्टम जिसमें सही तरीका तलाशने में सभी शामिल हों, खासतौर पर किसान, जिनमें से ज्यादातर के पास इस परिस्थिति में साधनों की कमी है। आखिरी उपभोक्ता तक चीजें पहुंचाने में तकनीक और युवा मदद कर रहे हैं।
इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आने के बाद, कुछ किसानों और विक्रेताओं के पास ढेरों कॉल आ रहे हैं, जबकि कुछ एक या दो किलो तक के ‘छोटे ऑर्डरों’ (खासतौर पर आम और अन्य फलों के) से परेशान भी हो रहे हैं क्योंकि उन्हें ट्रक भरकर या टनों में बिक्री देखने की आदत है।
इस बदलते समय में स्थानीय ग्राहकों को संतुष्ट करना ही हर क्षेत्र में जोखिम कम करने का एकमात्र तरीका है। उदाहरण के लिए ट्रांसपोर्ट, जिसमें राज्यों और देशों में उनकी भौगोलिक स्थिति आदि के अनुसार अलग-अलग प्रतिबंध हैं। दुकानदारों को एक साथ एक मंच पर आना होगा और ग्राहकों का इंतजार करने के बजाय मांग पैदा करनी होगी क्योंकि खाने को छोड़कर ज्यादातर चीजें आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में नहीं आतीं।
फंडा यह है कि अब तक दुकानदारों को कैश काउंटर पर बैठकर ग्राहकों को आते हुए देखने की आदत थी। लेकिन अब उन्हें बाहर निकलकर ग्राहकों तक पहुंचने के लिए ‘वोकल’ होने की जरूरत है।
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