Skip to main content

परदे के पीछे: खुश है जमाना आज पहली तारीख है

कुछ लोग घर की दीवार पर लगे कैलेंडर का पृष्ठ महीने की पहली तारीख को बदलते हैं, तो कुछ महीने के आखिरी दिन बदलते हैं। इस साधारण बात से मनुष्य का नजरिया समझा जा सकता है। भविष्य के लिए अपने आपको तैयार करने वाले एक दिन पूर्व ही कैलेंडर का पृष्ठ बदल देते हैं। कुछ संकट आने पर उससे रू-ब-रू होना चाहते हैं। वर्तमान के युवा मोबाइल से ही समय पढ़ते और चौकन्ने रहते हैं। आधुनिक कैलेंडर से तो वार्तालाप भी कर सकते हैं, बर्तज राही मासूम रजा के कि ‘मैं समय हूं (महाभारत)। मोबाइल से घर बैठे विश्व भ्रमण कर सकेंगे? मोबाइल नामकरण भी कबीर की उलटबासी जैसा है कि स्थिरता में गति विद्यमान है।

याद आती हैं, निदा फाजली की पंक्तियां ‘मैं रोया परदेस में भीगा मां का प्यार, दिल ने दिल से बात की बिन चिट्‌ठी बिन तार।’ वर्तमान में युवा सारे समय मोबाइल से चिपके हैं यह रोग भी बन सकता है। एलेक्सा से इकतरफा इश्क भी हो सकता है। रोमांस की परिभाषा बदल सकती है। जर्जर होती विवाह संस्था पर यह अप्रत्याशित आक्रमण हो सकता है। कैलेंडर ने लंबी यात्रा की है। जबलपुर से प्रकाशित लाला राम स्वरूप कैलेंडर में तिथि मिति, विवरण भी होता है। प्रदोष व्रत रखने वाली महिलाओं को सहायता मिलती है। वर्तमान में भगोड़ा घोषित शराब व्यापारी भी युवतियों के फोटोग्राफ वाला कैलेंडर प्रकाशित करता रहा, जिसकी काला बाजारी भी होती थी। ज्ञातव्य है कि दादा फाल्के ने भी कैलेंडर डिजाइन किए हैं।

एक दौर में मुलगांवकर ने कैलेंडर के लिए पेंटिंग की थी, जिसमें पुरुष पात्र नारी से अधिक कोमल रूप में प्रस्तुत थे। क्या मुलगांकर ने पूर्व अनुमान लगा लिया था इस खोज का कि हर पुरुष में एक स्त्री और स्त्री में पुरुष मौजूद होता है। यह तो जावेद अख्तर ही जानें कि फिल्म ‘मि.इंडिया’ में एक पात्र को कैलेंडर क्यों कहा? संभवत: वह पात्र बच्चों के भूखे रहने का हिसाब-किताब रखता था। यह मनुष्य की जिंदादिली का प्रमाण है कि फाके को फाकेमस्ती में बदल दिया। इस पर फिल्मी गीत भी रचे गए है,ं जैसे ‘आज पहली तारीख है कि खुश है जमाना’ और ‘चुप हो जा मुन्ने कि यह अमीरों के सोने की घड़ी है और तुझको रोने को सारी उम्र पड़ी है।’ बहरहाल पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूर्व की यात्रा में एक दिन का अंतर आता है।

फिल्म ‘अराउंड द वर्ल्ड इन 80 डेज’ में नायक को लगता है कि उसे यात्रा में एक दिन अधिक लगा, जबकि वह समय पर पहुंचा था। मनुष्य शरीर में एक घड़ी होती है ‌‌‌‌‌‌‌‌व पूर्व-पश्चिम यात्रा में दिन की गिनती कठिन हो जाती है। भारत में दिन है, तो अमेरिका में रात होती है। समय व स्थान बोध ने काल्पनिक कथाओं व फिल्मों को जन्म दिया है। पुन: निदा फाजली का स्मरण कि जो लोग अधिक यात्रा करते हैं, वे एक दिन घर लौटेंगे व घर अपनी जगह से कहीं और जा चुका होगा। धर्मवीर भारती ने लिखा है, भटकेगा बे बात कहीं लौटोगे अपनी हर यात्रा के बाद यहीं। लोकप्रिय उपन्यास अलकेमिस्ट भी इसी आशय को प्रस्तुत करता है।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
जयप्रकाश चौकसे, फिल्म समीक्षक


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2Bp82zd

Comments

Popular posts from this blog

कोरोनावायरस के हमले पर कैसे रिएक्ट करता है हमारा शरीर? वैक्सीन की जरूरत क्यों?

कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को बुरी तरह प्रभावित किया है। जनवरी में यह चीन से बाहर फैला और धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। जान बचाने के खातिर हर स्तर पर कोशिशें तेज हो गईं। करीब 11 महीने बाद भी रिकवरी की हर कोशिश को कोरोना ने नई और ताकतवर लहर के साथ जमींदोज किया है। ऐसे में महामारी को रोकने के लिए सिर्फ वैक्सीन से उम्मीदें हैं। पूरी दुनिया में वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार हो रहा है। जब दुनियाभर में वैज्ञानिक कोरोनावायरस को खत्म करने के लिए वैक्सीन बनाने में जुटे हैं तो यह जानना तो बनता है कि इसकी जरूरत क्या है? मेडिकल साइंस को समझना बेहद मुश्किल है। आसान होता तो हर दूसरा आदमी डॉक्टर बन चुका होता। हमने विशेषज्ञों से समझने की कोशिश की कि कोरोनावायरस शरीर पर कैसे हमला करता है? उस पर शरीर का जवाब क्या होता है? वैक्सीन की जरूरत क्यों है? वैक्सीन कैसे बन रहा है? यहां आप 5 प्रश्नों के जवाब के जरिए जानेंगे कि - कोरोनावायरस के हमले पर शरीर का रिस्पॉन्स क्या होता है? कोरोनावायरस को खत्म करने के लिए वैक्सीन की जरूरत क्या है? किस तरह से वैक्सीन बनाए जा रहे हैं? वैक्सीन के ...

आज विधायक पद की शपथ लेंगी दीदी:6 भाइयों की इकलौती बहन हैं ममता, जानलेवा हमला हुआ, पीटा गया; अब मोदी को 2024 में हराने के लिए नई रणनीति बनाई

from DB ओरिजिनल | दैनिक भास्कर https://ift.tt/2YpkYAQ

इंसानों की जगह ले रही हैं मशीनें; सारे फैसले खुद लेती हैं

चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस का कोई कांस्टेबल नहीं दिख रहा था। चालान कटने का डर भी नहीं था। शर्माजी ने स्टॉपलाइन की परवाह नहीं की और कार को आगे बढ़ा दिया। पर वहां क्लोज सर्किट कैमरा (CCTV) लगा था और उसने शर्माजी की हरकत को कैमरे में कैद कर लिया। दो दिन बाद जब चालान घर पहुंचा तो शर्माजी ने माथा पकड़ लिया। उन्हें अब भी समझ नहीं आ रहा था कि जब कोई कॉन्स्टेबल चौराहे पर था ही नहीं, तो यह चालान कैसे बन गया? शर्माजी की तरह सोचने वाले एक-दो नहीं बल्कि लाखों में हैं। उन्हें पता ही नहीं कि यह सब किस तरह होता है? और तो और, यहां ले-देकर मामला भी नहीं निपटा सकते। इस मामले में हुआ यह कि CCTV से आए फुटेज के आधार पर मशीन पहले तो गाड़ी का नंबर दर्ज करती है। फिर उससे कार के मालिक का पता निकालकर उसे चालान भेजती है। किसी तरह की कोई शंका न रहे, इसलिए वह फोटो भी साथ भेजती है जो कानून तोड़े जाने का सबूत बनता है। यह सब होता है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI की वजह से। यहां एक मशीन वही काम करती है, जिसकी उसे ट्रेनिंग दी जाती है। यदि कोई दूसरा काम करना हो तो उसके लिए दूसरी मशीन बनाने की जरूरत पड़ती है। मशीन को किस...