![](https://i9.dainikbhaskar.com/thumbnails/680x588/web2images/www.bhaskar.com/2020/08/01/_1596224776.jpg)
स्व र्गीय प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने उन्हें 15वीं सदी के महान गुजराती कवि नरसी मेहता का गीत ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए’ गाते हुए सुना तो बोले, ‘आप संगीत की मल्लिका हैं, आपके सामने मैं एक मामूली प्रधानमंत्री हूं।’
जब किसी की तारीफ खुद प्रधानमंत्री करें, तो क्या आप सोच सकते हैं कि उस व्यक्ति को कभी आर्थिक संकट झेलना पड़ेगा? लेकिन उन्होंने यह संकट झेला। यही कारण था कि 1979 में तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के कार्यकारी अधिकारी पीवीआरके प्रसाद को दो अरजेंट टेलीग्राम मैसेज मिले।
एक कांची कामकोटि पीठम् के परमाचार्य श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती का और दूसरा पुट्टपर्थी के भगवान श्री सत्य साई बाबा का, जिनमें लिखा था, ‘प्रिय श्री प्रसाद, नेक दंपति, हमारी संगीत की मल्लिका एमएस सुब्बुलक्ष्मी और उनके पति सदाशिवम गंभीर आर्थिक संकट में हैं और उन्हें तुरंत मदद की जरूरत है। कृपया जल्द से जल्द इस संकट से निकलने में उनकी मदद करने के लिए तुरंत कोई योजना बनाएं...’
एमएस (उन्हें इस नाम से जाना जाता था) ने अपने सभी म्यूजिक एलबम के अधिकार चैरिटी में दे दिए थे। प्रसाद जब दंपति से मिलने पहुंचे तो वे उन एमएस को अपने सामने कॉटन की सादी साड़ी में खड़ा देख आंसू नहीं रोक पाए, जो कभी दुनियाभर में रेड कार्पेट पर चली थीं। उन्होंने ‘बालाजी पंचरत्नमाला’ नाम के म्यूजिक एल्बम का प्रस्ताव रखा, जो दुनियाभर में बिक्री के पुराने रिकॉर्ड तोड़ते हुए बहुत मशहूर हुआ। लेकिन प्रसाद को संगीत की मल्लिका को पैसे लेने के लिए बहुत मनाना पड़ा क्योंकि उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनके और ईश्वर के लिए गायन के बीच कोई नहीं आ सकता।
मैं ‘बालाजी पंचरत्नमाला’ के पांचों एलपी रिकॉर्ड्स के गीतों को सुनते हुए बड़ा हुआ हूं और मुझे ज्यादातर गीत अच्छे से याद हैं। मुझे यह घटनाक्रम तब याद आया जब मैंने तेलंगाना के राजन्ना-सिरसिल्ला जिले के 52 वर्षीय शिक्षक हनुमानथला रघु के बारे में सुना जिनकी कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन के बाद नौकरी चली गई। वे प्राइवेट स्कूल में शिक्षक थे लेकिन रुद्रांगी जिला परिषद हाई स्कूल में बतौर अतिथि शिक्षक अंग्रेजी और बायोलॉजी भी पढ़ाते थे, जिसे उनका कोई छात्र कभी नहीं भूल सकता। शिक्षण के अलावा वे जरूरतमंद व गरीब छात्रों की मदद करते थे।
प्राइवेट स्कूल की नौकरी जाने पर उनकी मुश्किल बढ़ गई। उनका एक बेटा भी है जिसने बीएड की पढ़ाई की है लेकिन वह भी गल्फ देशों में कुछ पैसा कमाने के प्रयासों में असफल होने के बाद से बेरोजगार है। जब हनुमानथला बुरे दौर से गुजर रहे थे, तब एसएससी के 1997-98 बैच के उनके छात्रों ने वाट्सएप पर साथ आकर उनकी मदद का फैसला लिया। एक शिक्षक इससे ज्यादा और क्या चाहेगा कि उसके छात्र मिलकर उसकी मदद करें, जब वह मुश्किल में फंसा हो?
छात्रों ने अपने उस शिक्षक के लिए टिफिन सेंटर शुरू करने के लिए एक शेड बनाया, जिसने 42 वर्ष पहले उनकी मदद की थी। उनके इस काम से भावुक होकर हनुमानथला ने टिफिन सेंटर का नाम ‘गुरुदक्षिणा’ रखा है। शेड लगभग बन चुका है और वे इस रविवार से टिफिन सेंटर चलाकर फिर से नए जीवन की शुरुआत करेंगे। उनके छात्रों ने टिफिन सेंटर पर ग्राहक लाने का वादा भी किया है।
फंडा यह है कि अगर आप अपने पेशे के प्रति ईमानदार हैं तो आपको ‘गुरुदक्षिणा’ जरूरी मिलेगी।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/39LaFYK
Comments
Post a Comment