संस्थानों के विध्वंस के दौर में पूना फिल्म संस्थान का पुनरोद्धार हो जाए तो फिल्म विधा का सुर ठीक से लगेगा
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शेखर कपूर को पूना फिल्म संस्थान प्रमुख बनाए जाने की घोषणा हुई। ज्ञातव्य है कि देवआनंद की बहन के पुत्र शेखर कपूर लंदन की एक चार्टर अकाउंट फर्म में उच्च पद पर नियुक्त थे। उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दिया और भारत लौट आए। एरिक सेगल के उपन्यास ‘मैन-वीमन एंड चाइल्ड’ से प्रेरित फिल्म ‘मासूम’ निर्देशित की। नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी अभिनीत इस फिल्म में जुगल हंसराज और उर्मिला मातोंडकर ने बाल भूमिकाएं की थीं।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1961 में पूना फिल्म संस्थान की स्थापना उस स्थान पर की जहां कभी शांताराम का प्रभात स्टूडियो हुआ करता था। इसी संस्थान से प्रशिक्षित हुए नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, शबाना आजमी, जया भादुड़ी इत्यादि कलाकार। कुछ समय पूर्व इस संस्थान का प्रधान उस व्यक्ति को बनाया गया जिसने महाभारत सीरियल में युधिष्ठिर की भूमिका अभिनीत की थी। योग्यता का यह अजीबोगरीब पैमाना है। यह इस तरह है मानो पतंग उड़ाने में प्रवीण व्यक्ति को वायु सेवा का अध्यक्ष बना दिया जाए।
बोनी कपूर ने शेखर कपूर को भव्य बजट की फिल्म ‘मि.इंडिया’ का निर्देशन सौंपा। फिल्म की सफलता के बाद शेखर ने दस्यु फूलन देवी का बॉयोपिक ‘बैंडिट क्वीन’ बनाया। यह फिल्म भी सफल रही । इसके बाद शेखर कपूर ने कुछ फिल्में प्रारंभ कीं परंतु उन्हें 2-3 रील बनाने के बाद छोड़ दिया। इसी तरह बहु सितारा फिल्म ‘जोशीले’ थी।
शेखर कपूर ने ‘पानी’ नामक फिल्म बनाने का प्रयास किया। अनुमान है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी पर अधिपत्य के लिए हो सकता है। कुछ लोगों को संदेह है कि शेखर के पास ‘पानी’ की पूरी पटकथा नहीं है। कभी-कभी उन्होंने कुछ लोगों को कुछ बेतरतीब दृश्य सुनाए हैं। ज्ञातव्य है कि शेखर के मामा चेतन आनंद ने ‘नीचा नगर’ फिल्म बनाई थी। पूंजी निवेशक को वितरक नहीं मिले तो उसने फिल्म का सारा सामान अपने कपड़ा गोडाउन में फेंक दिया।
चेतन आनंद की पत्नी उमा आनंद ने किताब लिखी ‘पोएटिक्स ऑफ चेतन आनंद फिल्म’। इस किताब में पूरा विवरण दिया गया है कि किस तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने ‘नीचा नगर’ को देखा और किसी तरह पूंजी निवेशक को भुगतान करके फिल्म प्रदर्शन के लिए साधन जुटाए। नेहरू के मित्र अलेक्जेंडर कोरबा ने भी फिल्म देखी और लंदन में प्रदर्शन कराया।
क्या शेखर कपूर की ‘पानी’ उनके मामा चेतन आनंद की ‘नीचा नगर’ से प्रेरित है। ज्ञातव्य है कि ‘नीचा नगर’ रूस के लेखक फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की की रचना ‘लोअर डेप्थ’ से प्रेरित है। साधन संपन्न लोगों की कोठियां ऊंचे स्थान पर बनीं। पानी की टंकी भी पहाड़ पर बनी है। साधनहीन व्यक्ति नीचा नगर में रहते हैं। मेहनतकश मजदूर अपने अधिकार के लिए आंदोलन करते हैं। आंदोलन तोड़ने के लिए साधन संपन्न लोग नीचा नगर में पानी नहीं जाने देते। हर काल खंड में न्याय के लिए आंदोलन हुए हैं और व्यवस्था ने आंदोलन तोड़ने के प्रयास किए हैं। वर्तमान में किसान नए कानून के विरोध में सड़क पर प्रदर्शन कर रहे हैं। साधनहीन परिवार के बालकों के पास ऐसे मोबाइल नहीं हैं कि वे मोबाइल पर शिक्षा ग्रहण करें।
इस दौर में बिना गुरु ज्ञान दिए जाने का प्रहसन चल रहा है। छात्र गुनगुना रहे हैं, सुर ना सधे क्या गाऊं मैं, सुर के बिना जीवन सूना। पूना फिल्म संस्थान यशस्वी संस्था रही है। उसका वाचनालय फिल्म शास्त्र की किताबों से भरा पड़ा है। सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्म से हटाए गए दृश्य भी पूना संस्थान भेजे जाते थे। खाकसार इन हटाए दृश्यों को देखकर सेंसर प्रणाली पर किताब लिखने के उद्देश्य से संस्थान गया। तब तक क्यूरेटर पीेके नायर सेवा निवृत्त हो चुके थे। ज्ञातव्य है कि क्यूरेटर नायर पर शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाला वृत्त चित्र ‘द सेल्यूलाइड मैन’ बनाया था।
हम आशा कर सकते हैं कि शेखर कपूर पूना संस्थान का पुनरोद्धार करेंगे उसकी गरिमा लौटाएंगे। संस्थानों के विध्वंस के दौर में ऐसा कुछ हो जाए तो फिल्म विधा का सुर ठीक से लगेगा।
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