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हम अपने वृद्धों को इसी तरह से याद करें कि जिस दिन वो याद न आएं, वो दिन, दिन ही न रहे

परिश्रम फलदायी होता जाए तो ऐसी स्थिति को सफलता कहेंगे। जिंदगी आनंदमयी बनती चली जाए, ऐसा जीवन सुफलता कहलाएगा। सफलता है तो जरूरी नहीं कि शांति होगी ही, लेकिन यदि सुफलता है तो तय है कि शांति भी होगी। आज विश्व वृद्ध दिवस है। बहुत सारे वृद्ध इन दिनों आपस में ये ही बातें कर रहे हैं कि लगता है भगवान ने आनंद को क्वारेंटाइन कर दिया है।

सचमुच आज भारत ही नहीं, विश्वभर का बुढ़ापा ज्यादा ही उदास हो चला है। हमें प्रयास करना चाहिए घर में, हमारे आसपास जो भी वृद्ध हों, उनका मान करें, उनकी सेवा करें। घर परिवार के बड़े-बूढ़ों को देखने के दो तरीके हैं, स्मृतियों में और साक्षात। यदि साक्षात सेवा का अवसर मिल रहा हो तो सौभाग्य है, वरना स्मृति में चौबीस घंटे में कम से कम एक बार अपने बड़े-बूढ़ों को अवश्य लाइएगा।

तुलसी ने एक जगह लिखा है, ‘जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें। ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें।। तुमको देखे बिना जो दिन बीते हैं, ब्रह्मा उनको गिनती में ही न लाकर हमारी उम्र में शामिल न करें। यह बात माताओं ने राम से कही थी। हम अपने वृद्धों को इसी तरह से याद करें कि जिस दिन वो याद न आएं, वो दिन, दिन ही न रहे। बुढ़ापा सभी को आना है। जवानी जाकर नहीं आती और बुढ़ापा आकर नहीं जाता।



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पं. विजयशंकर मेहता


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