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बाइडेन के आते ही अमेरिका-ईरान के रिश्ते बेहतर होने की उम्मीद बेकार, यह बहुत मुश्किल राह है

ईरान के शीर्ष न्यूक्लियर हथियार डिजाइनर की इजरायल द्वारा हत्या के कारण जो बाइडेन के लिए मध्य पूर्व का काम पहले दिन से ही मुश्किल हो जाएगा। बाइडेन इस क्षेत्र को अच्छे से जानते हैं, लेकिन अब यह चार साल पहले का मध्य पूर्व नहीं रहा। बाइडेन अगर नए मध्य पूर्व को समझना चाहते हैं तो उन्हें 14 सितंबर 2019 की घटना का अध्ययन करना चाहिए, जब ईरानी वायु सेना ने सऊदी अरब के महत्वपूर्ण ऑइल फील्ड्स में से एक एबाक़ाइक पर 20 ड्रोन व निर्देशित क्रूज मिसाइल से हमला कर दिया था। हमले की भनक न सऊदी को, न ही अमेरिकी रडार को लगी। इस ईरानी हमले, उसपर राष्ट्रपति ट्रम्प की प्रतिक्रिया और ट्रम्प की प्रतिक्रिया पर इजरायल, सऊदी अरब व यूएई की प्रतिक्रिया से मध्य पूर्व की तस्वीर पूरी तरह बदल गई। लोगों ने इसपर ध्यान नहीं दिया, इसलिए इसे फिर देखें।

पहला, राष्ट्रपति ट्रम्प की प्रतिक्रिया क्या रही? उन्होंने कुछ नहीं किया। उन्होंने सऊदी अरब की ओर से कोई जवाबी हमला शुरू नहीं किया। हालांकि कुछ सप्ताह बाद ट्रम्प ने 3000 अमेरिकी सैनिक और कुछ एंटी-मिसाइल बैटरी सऊदी भेजीं। लेकिन साथ में संदेश भी दिया, ‘हम सऊदी की मदद के लिए सेना और अन्य चीजें भेज रहे हैं। लेकिन, हम जो भी कर रहे हैं, सऊदी मेरे निवेदन पर उसकी कीमत चुकाने को तैयार है। यह जरूरी है।’

वे अमेरिकी मानस में आया बदलाव दर्शा रहे थे। उनके संदेश का मतलब था : प्रिय सऊदी, अमेरिका अब दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक बन गया है और हम मध्य पूर्व से बाहर निकल रहे हैं। हां, अगर पैसा दोगे तो तुम्हें हथियार बेचने में हमें खुशी होगी, लेकिन युद्ध लड़ने के लिए हमारे भरोसे मत रहना।’

इससे बाइडेन को नए मध्य पूर्व में एक नए तत्व का सामना करना पड़ेगा। इजरायल के यूएई और बहरीन से हो रहे शांति समझौतों और सऊदी व इजरायल के बीच हो रहे गुप्त सुरक्षा सहयोग, ये सभी संबंध जल्द फलेंगे-फूलेंगे। वास्तव में, ट्रम्प ने इजरायल और मुख्य सुन्नी अरब देशों पर दबाव बनाया कि वे अमेरिका पर कम निर्भर रहें और ईरान जैसे नए खतरों से लड़ने के लिए आपसी सहयोग बढ़ाएं। इससे अमेरिका को क्षेत्र में बिना हिंसा के अपने हित सुरक्षित करने में मदद मिल सकती है। यह ट्रम्प की विदेश नीति में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि हो सकती है।

लेकिन इसका नतीजा यह भी है कि बाइडेन ईरान परमाणु समझौता पर फिर बात करना चाहते हैं, तो उन्हें इजरायल, सऊदी, बहरीन और यूएई का ईरान-विरोधी गठबंधन देखने मिल सकता है। इससे बाइडेन के लिए चीजें जटिल हो जाएंगी। ट्रम्प ने जब परमाणु समझौता रद्द किया था, तब ईरान भी यूरेनियम के परमाणु बम में इस्तेमाल न करने की प्रतिबद्धता से पीछे हट गया था। लेकिन बाइडेन के चुनाव के बाद से ईरान ने कहा है कि वह ‘स्वत:’ पुरानी परमाणु प्रतिबद्धताओं पर आ जाएगा, अगर बाइडेन ट्रम्प द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को हटाते हैं। इसके बाद ही ईरान क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा करेगा।

यहीं से बाइडेन की मुश्किलें शुरू होंगी। इजरायल और सुन्नी अरब देश इस बात से नहीं डरे हुए हैं कि ईरान परमाणु हथियार इस्तेमाल कर सकता है, क्योंकि ईरान के नेता आत्मघाती नहीं हैं। हालांकि वे मनुष्यघाती यानी हत्यारे हैं। और हत्या के लिए ईरान का नया पसंदीदा हथियार सटीक-निर्देशित (प्रिसिजन-गाइडेड) मिसाइल हैं, जिसका इस्तेमाल उसने सऊदी में किया और जिसे वह अपने आस-पास, लेबनान, यमन, सीरिया और इराक को भेजता रहा है। इससे इजरायल, सऊदी, यूएई और क्षेत्र में मौजूद अमेरिकी सेना को सीधा खतरा है।

अगर बाइडेन सीधे ईरान परमाणु समझौते को ज्यों का त्यों जारी रखने की कोशिश करेंगे, तो मुझे शंका है कि उन्हें इजरायल, यूएई व सऊदी का विरोध झेलना होगा। क्यों? इसका जवाब ‘सटीक’ शब्द में है। लेबनान में 2006 युद्ध में ईरान के सहयोगी हिजबुल्लाह को इजरायल के ठिकाने नष्ट करने की उम्मीद में बेकार, अनिर्देशित, जमीन से जमीन पर वार करने वाले, सीमित पहुंच के 20 रॉकेट दागने पड़े थे। लेकिन सटीक-निर्देशित मिसाइल से ईरान 20 ठिकानों को एक मिसाइल से उड़ा सकता है।

इसीलिए इजरायल पिछले पांच साल से ईरान के साथ छद्म युद्ध लड़ रहा है, ताकि ईरान, लेबनान, सीरिया, इराक और गाज़ा में अपने सहयोगियों के साथ इजरायल को आभासी रूप से घेरने का लक्ष्य हासिल न कर पाए। सऊदी भी यही कोशिश ईरान के करीबी यमन के मामले में कर रहा है, जिसने हवाई अड्डों पर हमला किया था।

कार्नेगी एंडोमेंट में सीनियर फेलो करीम सदजादपुर कहते हैं, ‘पिछले दो दशकों से हम ईरान के बड़े हथियारों को रोकने में लगे हैं, लेकिन उसके हजारों छोटे स्मार्ट हथियार उसके पड़ोसियों के लिए ज्यादा बड़ा खतरा बन चुके हैं।’ इसीलिए इजरायल और उसके खाड़ी अरब सहयोगी नहीं चाहते कि परमाणु कार्यक्रम को रोकने और मिसाइल निर्यात करने पर रोक लगाने के मामले में अमेरिका की ईरान पर पकड़ कमजोर हो। और इसीलिए यह बातचीत बहुत, बहुत मुश्किल साबित होगी।

तो अगर आप बाइडेन के आते ही ईरान-अमेरिका परमाणु समझौते के फिर होने की खुशी मनाने की तैयारी कर रहे हैं तो अभी उत्साहित न हों। यह बहुत जटिल है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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थाॅमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार


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