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Showing posts from December, 2020

पहले 310 दिन का होता था एक साल, फिर 25 मार्च को न्यू इयर की शुरुआत होने लगी; जानिए कैलेंडर की पूरी कहानी

2020 खत्म हो चुका है और दुनियाभर में पहली जनवरी को नए साल का जश्न मनाया जा रहा है। लेकिन क्या कभी सोचा है कि आखिर जनवरी को ही पहला महीना क्यों माना जाता है? और एक जनवरी से ही नए साल की शुरुआत क्यों होती है? दरअसल, रोमन कैलेंडर के मुताबिक जनवरी साल का पहला महीना है। इस कैलेंडर को रोमन सम्राट जूलियस सीजर ने 2 हजार साल पहले शुरू किया था। लेकिन, इसका श्रेय सिर्फ जूलियस सीजर को देना सही नहीं होगा, क्योंकि इसके पीछे हजारों साल पुरानी कहानी है। आइए जानते हैं... 45 ईसा पूर्व रोमन सम्राट ने शुरू किया नया कैलेंडर रोमन साम्राज्य में कैलेंडर का चलन था। जूलियस सीजर से पहले रोम के सम्राट थे नूमा पोंपिलुस। नूमा के समय जो कैलेंडर था, वो 10 महीने का था, क्योंकि उस वक्त एक साल को लगभग 310 दिन का माना जाता था। तब एक हफ्ता भी 8 दिनों का माना जाता था। नूमा ने ही मार्च की बजाए जनवरी को पहला महीना माना। जनवरी नाम रोमन देवता जेनस के नाम पर रखा गया। मान्यता है कि जेनस के दो मुंह हुआ करते थे। आगे वाला मुंह शुरुआत और पीछे वाला मुंह अंत माना जाता था। जबकि, मार्च महीने का नाम रोमन देवता मार्स के नाम पर रखा गया...

लाइमलाइट से दूर रहकर भी लोगों के दिलों पर राज करती थीं कृष्णा, उनकी सहजता की कायल थीं नरगिस

कोरोना से बचते-बचाते दैनिक भास्कर के लिए काम करने वालों को नववर्ष की बधाई। लिखते समय मुझे आभास होता है मानो पाठक मुझ पर निगाह रखे बैठा है कि सदैव जागरुक रहते हुए अपना काम करें। आज कृष्णा राज कपूर 91 वर्ष की होतीं। अगर हम फिल्म उद्योग के 10 व्यक्तियों से राज कपूर के बारे में बात करें तो संभव है कुछ लोग उनकी बुराई करें परंतु कृष्णा कपूर को सभी आदर करते हैं। उन्होंने अपने जीवन में मीडिया को कोई साक्षात्कार नहीं दिया। लाइमलाइट से बचती रहीं। उनके ससुर, पति, भाई और पुत्र और पोते, पोतियां सभी कलाकार रहे हैं। उन्होंने कभी किसी की ख्याति पर धूप सेंकने का प्रयास नहीं किया। सीरियल और कैलेंडर में देवी-देवता पात्रों का एक आभामंडल दिखाया जाता है। संभव है कि कृष्णा जी के गिर्द भी आभामंडल था जो हम देख नहीं पाए। कृष्णा जी की मृत्यु के 13 दिन बाद शांति पाठ हुआ और पूजा के पश्चात सभी मेहमानों को भोजन कराया गया। वापसी के समय मेरे ड्राइवर अख्तर ने कहा कि आज पहली बार ड्राइवरों को भोजन नहीं कराया गया। कृष्णा जी हर दावत में मेहमानों के पहले मेहमानों के ड्राइवर और सेवकों को अपनी निगरानी में भोजन कराती थीं। ...

अवसर और चुनौतियों का गठजोड़ रहेगा नया वर्ष, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से लोगों के पंखों को मिल सकती है उड़ान

आप सभी को नए साल की शुभकामनाएं। पिछले 10 महीनों में टीवी के सामने बैठकर रियलिटी शो देखते हुए कई लोगों ने सोचा होगा कि वे भी इनका हिस्सा बन सकते हैं। लेकिन हम जानते हैं कि इतना बड़ा देश होने के कारण शोज में जगह कम है। कुछ लोगों ने सोचा होगा कि क्या हर शहर में ऐसी जगहें हो सकती हैं, जहां बड़ी संख्या में दर्शक आ सकें। यही कारण था कि शैक्षणिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए उभरते हुए स्टार्ट-अप फंडा फैक्टरी, जिसका नाम इस कॉलम की तरह लगता है, द्वारा कैचअप और फ्राइज खाते हुए हर उम्र वर्ग से सवाल पूछने ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। क्विज चैंपियन से क्विज मास्टर बने अभिजीत श्याम, मोथी विक्रम, डी सुंदरनाथन, दीनू अरविंद, टी सुरेश, निवास सुधन और कौशिक एस साथ आए और उन्होंने ‘गॉबल डॉबल’ शुरू किया, जो मदुरई का पहला 42 सीटर गेमिंग कैफे है। इनमें से कुछ विभिन्न शहरों में रहते हैं। लॉकडाउन के महीनों ने उन्हें क्विजिंग में नया कॉन्सेप्ट लाने के लिए प्रोत्साहित किया। क्रिसमस से पहले शुरू हुए इस कैफे में प्रवेश शुल्क 200 रुपए प्रति टीम है और विजेता व रनर अप को उपहार तथा शहर के रेस्त्रां, ब्यूटी सैलॉन आदि क...

एक VIP की सुरक्षा पर 3 पुलिसवाले, लेकिन 135 करोड़ की आबादी वाले देश में 640 लोगों पर सिर्फ एक

हमारे देश में कई बार VIP कल्चर खत्म होने की बातें होती हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है। गृह मंत्रालय के अधीन एक विंग काम करती है। नाम है ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट यानी BPRD। इसका एक डेटा आया है। ये बताता है कि देश में 19 हजार 467 VIP हैं, जिनकी सुरक्षा में 66 हजार 43 पुलिसवाले तैनात हैं। यानी एक VIP की सुरक्षा पर तीन से ज्यादा पुलिसवाले। जबकि, 135 करोड़ आबादी वाले देश में आम आदमी की सुरक्षा की बात करें तो देश में 20.91 लाख पुलिसवाले हैं। यानी 642 लोगों पर एक जवान। ये आंकड़े 2019 के हैं। 2018 में 632 लोगों पर एक जवान था। देश में इतनी आबादी पर एक पुलिस जवान की संख्या शायद थोड़ी कम होती, अगर पद खाली न पड़े होते। BPRD के मुताबिक देश में 26.23 लाख पद हैं, जिनमें से 20.91 लाख पद ही भरे हैं। मतलब, 5.31 लाख से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। जितने पद हैं, अगर वो सब भरे होते तो हमारे यहां 512 लोगों पर एक पुलिस जवान होता। बिहार में सबसे ज्यादा 1312 लोगों पर एक पुलिस जवान बिहार की आबादी 12 करोड़ से ज्यादा है। यहां 91 हजार 862 पुलिसवाले हैं। इस हिसाब से यहां के 1 हजार 312 लोगों पर एक पुलिसवाल...

देश-विदेश में बच्चों को ऑनलाइन कहानियां सुनाती हैं सरला नानी, 350 से ज्यादा स्टोरीज रिकॉर्ड कर चुकी हैं

आज हम आपको 10 हजार बच्चों की नानी यानी 65 साल की सरला मिन्नी से मिलवाने जा रहे हैं। चौंकिए मत... दरअसल, उन्होंने बच्चों से अपना यह रिश्ता कहानियां सुनाकर कायम किया है। उनके कहने का मतलब है कि उनकी कहानियां बहुत से बच्चे सुनते हैं और वे उन्हें अपनी नानी मानते हैं। आज के दौर में न्यूक्लियर फैमिली का ट्रेंड हैं, ऐसे में कहानियां सुनने-सुनाने की रिवायत लगभग खत्म सी हो गई है। लेकिन, सरला आज भी इस परम्परा को बखूबी निभा रही हैं। वे मूलत: राजस्थान से हैं और इन दिनों बेंगलुरु में रह रही हैं। अपने 10 हजार से ज्यादा सब्सक्राइबर्स को अपनी कहानियों की 8 से 10 मिनट की क्लिप भेजती हैं। वो मजेदार लहजे में हिंदी और अंग्रेजी में कहानियां सुनाती हैं। 2021 इस सदी के लिए उम्मीदों का सबसे बड़ा साल है। वजह- जिस कोरोना ने देश के एक करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में लिया, उसी से बचाने वाली वैक्सीन से नए साल की शुरुआत होगी। इसलिए 2021 के माथे पर यह उम्मीदों का टीका है। 4 साल पहले भतीजी ने कहानी रिकॉर्ड कर भेजने को कहा सरला ने बताया, ‘मैं अपने नाती-पोतो को लंबे अरसे से कहानियां सुना रही हूं। लेकिन, 21 म...

हम तो युद्ध लड़ रहे हैं; जब तक सबको कोरोना वैक्सीन नहीं मिलती, आराम कहांः सुचित्रा ऐल्ला

भारत की पहली स्वदेशी वैक्सीन-कोवैक्सिन बना रही हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक को सरकारी रेगुलेटर से मंजूरी का इंतजार है। करीब 6 से 7 मिलियन डोज तैयार हैं। सैंपल टेस्टिंग के लिए कसौली भेजे हैं। जैसे ही ड्रग रेगुलेटर से इमरजेंसी यूज की मंजूरी मिलेगी, राज्यों को जरूरत के मुताबिक वैक्सीन सप्लाई होने लगेगी। (2021 इस सदी के लिए उम्मीदों का सबसे बड़ा साल है। वजह- जिस कोरोना ने देश के एक करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में लिया, उसी से बचाने वाली वैक्सीन से नए साल की शुरुआत होगी। इसलिए 2021 के माथे पर यह उम्मीदों का टीका है।) भारत बायोटेक की जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर सुचित्रा ऐल्ला ने भास्कर को दिए स्पेशल इंटरव्यू में बताया कि हैदराबाद में हमारी दो फेसिलिटी में काम शुरू हो गया है। तीसरी फेसिलिटी मार्च तक बनकर तैयार होगी। इससे हम 2021 के अंत तक सालाना 20 करोड़ से ज्यादा डोज बनाने लगेंगे। हम तो युद्ध लड़ रहे हैं। जब तक सबको वैक्सीन नहीं मिलेगी, तब तक आराम नहीं करने वाले। आप भी पढ़िए सुचित्रा ऐल्ला से इस खास बातचीत के मुख्य अंश... आपकी वैक्सीन को कब तक इमरजेंसी अप्रूवल मिल सकता है? इस समय ह...

65 साल के साइंटिस्ट 16 घंटे लैब में बिताते हैं, पत्नी पूरी टीम के खाने-पीने, रहने का इंतजाम देखती हैं

ये बातचीत है आज के दौर के सबसे जरूरी और अहम व्यक्तियों में एक से। आप हैं डॉ. कृष्णा एम. ऐल्ला। डॉ. ऐल्ला भारत बायोटेक कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। ये कंपनी हैदराबाद के जीनोम वैली में है। यह कंपनी कोराेना की वैक्सीन बना रही है। डॉ. ऐल्ला और उनकी टीम पिछले 9 महीने से इस पर काम कर रही है। काम का आलम ये है कि 65 साल के डॉ. ऐल्ला रोज लैब में 16 घंटे बिता रहे हैं। उनकी पत्नी सुचित्रा ऐल्ला यूं तो कंपनी में ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, लेकिन इन दिनों कंपनी के लैब में काम कर रहे साइंटिस्ट के खाने-पीने से लेकर रहने तक का इंतजाम देख रही हैं। कहें तो मां जैसा रोल निभा रही हैं। कोवैक्सिन के क्लीनिकल ट्रायल के बीच डॉ. ऐल्ला ने पहली बार किसी मीडिया हाउस से बातचीत की है। इस दौरान उन्होंने वैक्सीन के साथ-साथ अपनी जिंदगी से जुड़े उन तमाम पहलुओं पर भी बात की, जिन्हें कभी-कभार या ना के बराबर साझा किया है। तो पढ़िए पूरी बातचीत... आपने कोवैक्सिन बनाने के बारे में कब सोचा और इस बारे में पहली बात किनसे हुई थी? पिछले साल जनवरी में चीन में कोरोना की वैक्सीन बनने का काम शुरू हो गया था। मा...

कोरोना वैक्सीन बनाने वाले साइंटिस्ट्स ने पहली बार बयां की अपनी कहानी, बताया लैब में कैसे करते हैं काम

पूरे देश को जिस कोरोना वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार है, आज उसे बनाने वालों की कहानी। उन साइंटिस्ट की कहानी, जिनका पूरा लॉकडाउन लैब में रिसर्च करते हुए बीता। उन साइंटिस्ट की कहानी, जिन्हें हमारी तरह ही पिछले साल जनवरी में ये पता चला था कि कोरोना महामारी दुनिया में फैल रही है और इसकी कोई वैक्सीन नहीं है। इन कोरोना वॉरियर्स ने पहली बार भास्कर के साथ अपना अब तक का अनुभव साझा किया। पढ़िए हैदराबाद स्थित दो कंपनियों 'भारत बायोटेक' और 'बायोलॉजिकल ई' के एक-एक साइंटिस्ट की कहानी, उन्हीं की जुबानी। एमडी ने पूछा था, रिस्क कितना है जानते हो? इस पर विजय ने कहा था- रिस्क है क्या सर यह बात अप्रैल की है, जब भारत बायोटेक में कोरोना वैक्सीन के लिए टीम मेम्बर्स को चुना जा रहा था। जिस टीम को वैक्सीन के काम में जुटना था, उन्हें बायो सेफ्टी लेवल-3 (बीएसएल-3) लैब में काम करना था। कई महीनों तक घर छोड़कर फैक्ट्री के गेस्ट हाउस में ही रहना था। कंपनी के एमडी डॉ. कृष्णा ऐल्ला ने जब साथियों से पूछा कि कौन-कौन वैक्सीन डेवलपमेंट के काम में जुटना चाहता है तो सभी ने हाथ उठा दिए। इन्हीं में से एक थे वि...

हम तो युद्ध लड़ रहे हैं; जब तक सबको कोरोना वैक्सीन नहीं मिलती, आराम कहांः सुचित्रा ऐल्ला

भारत की पहली स्वदेशी वैक्सीन-कोवैक्सिन बना रही हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक को सरकारी रेगुलेटर से मंजूरी का इंतजार है। करीब 6 से 7 मिलियन डोज तैयार हैं। सैंपल टेस्टिंग के लिए कसौली भेजे हैं। जैसे ही ड्रग रेगुलेटर से इमरजेंसी यूज की मंजूरी मिलेगी, राज्यों को जरूरत के मुताबिक वैक्सीन सप्लाई होने लगेगी। (2021 इस सदी के लिए उम्मीदों का सबसे बड़ा साल है। वजह- जिस कोरोना ने देश के एक करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में लिया, उसी से बचाने वाली वैक्सीन से नए साल की शुरुआत होगी। इसलिए 2021 के माथे पर यह उम्मीदों का टीका है।) भारत बायोटेक की जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर सुचित्रा ऐल्ला ने भास्कर को दिए स्पेशल इंटरव्यू में बताया कि हैदराबाद में हमारी दो फेसिलिटी में काम शुरू हो गया है। तीसरी फेसिलिटी मार्च तक बनकर तैयार होगी। इससे हम 2021 के अंत तक सालाना 20 करोड़ से ज्यादा डोज बनाने लगेंगे। हम तो युद्ध लड़ रहे हैं। जब तक सबको वैक्सीन नहीं मिलेगी, तब तक आराम नहीं करने वाले। आप भी पढ़िए सुचित्रा ऐल्ला से इस खास बातचीत के मुख्य अंश... आपकी वैक्सीन को कब तक इमरजेंसी अप्रूवल मिल सकता है? इस समय ह...

1951 के बाद सबसे बुरे दौर में रेलवे; डगमगा रहे फ्यूचर प्रोजेक्ट, फ्रीज हो गईं 50% नौकरियां

1910 के दशक में इंडियन रेलवे पर प्रकाशित ‘कूच परवा नय पुर रेलवे’ नाम की स्केच बुक खूब मशहूर हुई। वजह, जबर्दस्त व्यंग से भरे स्केच; जैसे- 'रेलवे कर्मी काम पर हैं' कैप्शन वाले स्केच में चीफ इंजीनियर ऑफिस में नाच का लुत्फ ले रहे हैं, एक कर्मचारी मैनेजर को पंखा हांक रहा है और ट्रेन की पटरी पर हाथी सोया है। ये सब इशारे थे कि रेल सेवा की बागडोर ऐसे हाथों में है, जिन्होंने इसे मतवाला हाथी बना दिया है। 1910 में गुमनाम तरीके से प्रकाशित स्केच बुक का 22वां पन्ना- रेलवे कर्मी काम पर हैं। ग्रेट इंडियन पेनिनसुलर रेलवे की पत्रिका में छपने के बाद ये स्केच बुक बहुत मशहूर हुई थी। स्केच बुक गुमनाम आर्टिस्ट ने बनाई थी, लेकिन हर स्केच पर उसका सिग्नेचर था- जो हुक्म। 110 साल बाद भी ये स्केच बुक प्रासंगिक है। अंग्रेजी लहजे में बोले गए तीन शब्द 'कूच, परवा, नय यानी कुछ परवाह नहीं' नाम की ये व्यंग से भरी स्केच बुक आज के रेलवे संचालन के तौर-तरीकों से एकदम मेल खाती है। आइए कुछ नए स्केच खींचते हैं; व्यंग के लिए नहीं, असलियत में भारतीय रेल को जानने के लिए। 2 साल पहले ही 1951 के बाद सबसे...

बॉर्डर सील होने से मैन्युफैक्चरिंग 30% घटी, कारोबारियों को 14 हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान

सिंघु बॉर्डर पर प्रिंटिंग प्रेस चलाने वाले एक कारोबारी किसानों के आंदोलन से इतना डरे हुए हैं कि अपना नाम जाहिर करके बात करने को तैयार नहीं होते। उनकी प्रिंटिंग यूनिट के सामने बीते 35 दिन से किसानों ने डेरा डाला हुआ है। जैसे-तैसे उनकी यूनिट तक पहुंचे एक ट्रक में कतरन और वेस्ट मटेरियल भरा जा रहा है। बीते एक महीने में पहली बार है, जब कोई बड़ा वाहन उनकी यूनिट तक पहुंचा। उनका महीने का टर्नओवर करीब आठ लाख का है, जो अब आधा रह गया है। उनकी यूनिट में 12 कर्मचारी काम करते हैं, जिन्हें समय पर वेतन देने के लिए उन्हें अब लोन लेना होगा। तनाव उनके चेहरे पर साफ दिखता है। वो कहते हैं, ‘हम कोरोना से उबर ही रहे थे कि ये आफत आ गई।’ वे कहते हैं, ‘आधी लेबर को घर बैठाना पड़ा है, लेकिन तनख्वाह तो उन्हें भी देनी है, क्योंकि उनका परिवार भूखे तो रहेगा नहीं।’ दिल्ली को उत्तर प्रदेश, हरियाणा और आगे पंजाब व दूसरे राज्यों से जोड़ने वाले अहम नेशनल हाईवे इस समय किसानों के कब्जे में हैं। भारी वाहनों के लिए रास्ते बंद हैं। ट्रांसपोर्ट प्रभावित होने का सीधा असर उन हजारों मेन्यूफेक्चरिंग यूनिटों पर पड़ा है जो दिल्ली के...

2021 में हर भारतीय को मिले 5000 रुपए का प्रोत्साहन, इससे अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी

कोरोना की वजह से हमने 2020 का ज्यादातर समय अर्थव्यवस्था के बारे में निराशा के साथ बिताया। हालांकि, अब आशावादी होने का समय है। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 2021 बड़ी तेजी का साल हो सकता है। भारत अपना वैक्सीनेशन प्रोग्राम जल्द शुरू करेगा। सौभाग्य से भारत में कोरोना के नए मामलों की संख्या में स्थिरता आई है। इस बीच, भारतीय अर्थव्यवस्था खुल चुकी है। इसीलिए, यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि 2021 बेहतर होगा। हालांकि, अर्थव्यवस्था में सही मायनों में तेजी के लिए हमें अब भी और प्रोत्साहन की जरूरत है। हमारी सबसे बड़ी संपत्ति हमारे लोग और घरेलू अर्थव्यवस्था है। अगर हम चाहते हैं कि अर्थव्यवस्था वापसी करे, तो बड़े पैमाने पर तुरंत खपत पैदा करनी होगी। यह रहा ‘प्रोत्साहन’ नाम की योजना का प्रस्ताव, जिसमें प्रत्येक भारतीय को 5000 रुपए दिए जाएं, जिसे अगले 12 महीनों में खर्च करना होगा। यह 20 हजार रुपए प्रति परिवार तक हो सकता है। यह राशि न सिर्फ लोगों की इस मुश्किल वक्त में मदद करेगी, बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था में तेजी लाएगी। लेकिन कुछ लोग कह सकते हैं कि हमारे पास इतना पैसा कहां है? राजकोषीय घाटे का क्या होगा...