पहले 310 दिन का होता था एक साल, फिर 25 मार्च को न्यू इयर की शुरुआत होने लगी; जानिए कैलेंडर की पूरी कहानी
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2020 खत्म हो चुका है और दुनियाभर में पहली जनवरी को नए साल का जश्न मनाया जा रहा है। लेकिन क्या कभी सोचा है कि आखिर जनवरी को ही पहला महीना क्यों माना जाता है? और एक जनवरी से ही नए साल की शुरुआत क्यों होती है? दरअसल, रोमन कैलेंडर के मुताबिक जनवरी साल का पहला महीना है। इस कैलेंडर को रोमन सम्राट जूलियस सीजर ने 2 हजार साल पहले शुरू किया था। लेकिन, इसका श्रेय सिर्फ जूलियस सीजर को देना सही नहीं होगा, क्योंकि इसके पीछे हजारों साल पुरानी कहानी है। आइए जानते हैं...
45 ईसा पूर्व रोमन सम्राट ने शुरू किया नया कैलेंडर
रोमन साम्राज्य में कैलेंडर का चलन था। जूलियस सीजर से पहले रोम के सम्राट थे नूमा पोंपिलुस। नूमा के समय जो कैलेंडर था, वो 10 महीने का था, क्योंकि उस वक्त एक साल को लगभग 310 दिन का माना जाता था। तब एक हफ्ता भी 8 दिनों का माना जाता था। नूमा ने ही मार्च की बजाए जनवरी को पहला महीना माना।
जनवरी नाम रोमन देवता जेनस के नाम पर रखा गया। मान्यता है कि जेनस के दो मुंह हुआ करते थे। आगे वाला मुंह शुरुआत और पीछे वाला मुंह अंत माना जाता था। जबकि, मार्च महीने का नाम रोमन देवता मार्स के नाम पर रखा गया था। लेकिन मार्स को युद्ध का देवता माना जाता है। इसलिए नूमा ने युद्ध की जगह शुरुआत के देवता के महीने से साल की शुरुआत करने की योजना बनाई। इस तरह जनवरी साल का पहला महीना हो गया।
46 ईसा पूर्व यानी ईसा के जन्म से 46 साल पहले रोमन के राजा जूलियस सीजर ने नई गणनाओं के आधार पर नया कैलेंडर जारी किया। इस कैलेंडर में 12 महीने थे। जूलियस ने जो गणनाएं कराईं थीं, उसमें सामने आया पृथ्वी को सूर्य का चक्कर लगाने में 365 दिन और 6 घंटे लगते हैं। इसलिए जूलियस ने रोमन कैलेंडर को 310 से बढ़ाकर 365 दिन कर दिया।
45 ईसा पूर्व की शुरुआत 1 जनवरी से की गई। 44 ईसा पूर्व में जूलियस की हत्या हो गई। उनके सम्मान में साल के 7वें महीने का नाम जुलाई कर दिया गया। पहले जुलाई का नाम क्विंटिलिस हुआ करता था। रोमन साम्राज्य जहां तक फैला था, वहां नया साल 1 जनवरी से मनाया जाने लगा। इस कैलेंडर को जूलियन कैलेंडर नाम दिया गया।
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फिर शुरू हुई ईसाईयत बनाम रोमन की लड़ाई
5वीं सदी आते-आते रोमन साम्राज्य का पतन शुरू हो गया। दुनियाभर में ईसाई धर्म तेजी से बढ़ने लगा। ईसाइयों के बढ़ते ही नए साल की शुरुआत को लेकर भी लड़ाई शुरू हो गई। ईसाई धर्म के लोग 25 मार्च या 25 दिसंबर से अपना नया साल मनाना चाहते थे। ऐसा इसलिए, क्योंकि ईसाइयों का मानना था कि 25 मार्च को विशेष दूत गेब्रियल ने ईसा मसीह की मां मैरी को संदेश दिया था कि उन्हें ईश्वर के अवतार ईसा को जन्म देना है।
25 दिसंबर को ईसा का जन्म हुआ। इसलिए ईसाई इन दोनों तारीखों में से किसी एक से नया साल शुरू करना चाहते थे। इसमें भी ज्यादातर का मानना था कि 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है, इसलिए नया साल 25 मार्च से मनाया जाए। इसके बाद ईसाइयों ने 25 मार्च से नया साल मनाना शुरू कर दिया।
फिर आया एक और नया कैलेंडर
बाद में जब फिर गणना की गई तो पाया गया कि जूलियन कैलेंडर में जो समय की गणना की गई थी, उसमें कुछ खामी थी। जूलियन कैलेंडर के हिसाब से एक साल 365 दिन और 6 घंटे का था। लेकिन जब गणना हुई तो पता चला कि एक साल 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 46 सेकंड का होता है। इससे हर 400 साल में समय 3 दिन पीछे हो रहा था। ऐसे में 16वीं सदी आते-आते समय 10 दिन पीछे हो चुका था।
1580 के दशक में रोमन चर्च के पोप ग्रेगोरी 13वीं ने इस पर काम शुरू किया। उन्होंने 10 दिन को एडजस्ट करने के लिए 1582 के कैलेंडर में 10 दिन बढ़ा दिए। 1582 में 5 अक्टूबर के बाद सीधे 15 अक्टूबर की तारीख रखी गई। इस कैलेंडर को नाम दिया गया ग्रेगोरियन कैलेंडर। इसमें भी नया साल 1 जनवरी से ही शुरू होता था।
ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाने में भी समय लगा
ब्रिटेन के पोप ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को मानने से इनकार कर दिया। ग्रेगोरियन कैलेंडर को सबसे पहले 1582 में इटली, फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल ने अपनाया। 1583 में जर्मनी, स्विट्जरलैंड, हॉलैंड ने, 1586 में पौलेंड और 1587 में हंगरी ने अपनाया। चीन ने 1912, रूस ने 1917 और जापान ने 1972 में इस कैलेंडर को अपनाया।
1752 तक ब्रिटेन में 25 मार्च से ही नए साल की शुरुआत होती थी। 1752 में इंग्लैंड की संसद में इस बात पर सहमति बनी कि ब्रिटेन को भी नए साल की शुरुआत के मामले में बाकी यूरोपीय देशों के साथ चलना होगा। इसके बाद ब्रिटेन में भी इस कैलेंडर को अपना लिया गया। क्योंकि 1752 में भारत पर ब्रिटेन का राज था। इसलिए भारत ने भी इस कैलेंडर को 1752 में अपना लिया।
भारत में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दिन से शुरू होता है नया साल
आज लगभग सभी देशों में 1 जनवरी से ही नए साल की शुरुआत होती है। लेकिन कुछ देशों में आज भी 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत नहीं मानी जाती। भारत में भी अलग-अलग राज्य में अलग-अलग दिन नए साल की शुरुआत होती है। मराठी गुड़ी पड़वा पर, तो गुजराती दीवाली पर नया साल मनाते हैं। हिंदू कैलेंडर में चैत्र महीने की पहली तारीख से नया साल मनाया जाता है।
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