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प्रशासन ने सेब के हजारों पेड़ों को अतिक्रमण मानकर काट दिया, 15 लाख लोगों की रोजी पर संकट

जम्मू-कश्मीर में जंगलों में रहने वाले लोग परेशान हैं। इनमें गुर्जर समुदाय भी है। पिछले साल नवंबर महीने से ही प्रशासन ने जंगलों और पहाड़ों पर अस्थाई शेड और मिट्टी के घरों में रहने वालों को निकालना शुरू कर दिया है। अतिक्रमण के नाम पर उनके ठिकानों को तोड़ा जा रहा है, बाग-बगीचे ध्वस्त किए जा रहे हैं। इससे इन लोगों में हड़कंप मच गया है। जम्मू-कश्मीर में कुल 15 लाख लोग जंगलों में रहते हैं।

कश्मीर के बडगाम जिले के कनीदाजन गांव के रहने वाले 62 साल के अहसान वागे सदमे में हैं। पिछले साल दिसंबर में वन विभाग ने उन्हें जगह खाली करने का नोटिस दिया था और अगले ही दिन उनके 200 सेब के पेड़ काट दिए। वो कहते हैं कि इस बाग को बनाने में कई साल लग गए। उनके परिवार के लिए दशकों से जीविका का एक मात्र यही सहारा था। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि प्रशासन ने आखिर ऐसा क्यों किया। बिना किसी चेतावनी के उनके बगीचों को तहस-नहस क्यों किया। वो कहते हैं कि मुझे लगता है कि मैंने अपने परिवार के एक सदस्य को खो दिया है, मैं बीमार हो गया हूं, चलने -फिरने की हिम्मत भी नहीं बची।

इस गांव में 400 परिवारों के 1200 लोग रहते हैं, जो दशकों से जंगली जमीन पर खेती कर रहे हैं। वागे कहते हैं कि यहां 35 बगीचों में करीब 10 हजार सेब के पेड़ काट दिए गए हैं। हम लोग 100 साल से भी ज्यादा समय से यहां खेती कर रहे हैं और अब अचानक इन लोगों ने हमारे गांव पर कुल्हाड़ी चला दी और हमारे बगीचों को उजाड़ दिया। इसी गांव में बशीर अहमद के भी 30 पेड़ काटे गए हैं। वो कहते हैं कि प्रशासन को आखिर इतनी जल्दी क्यों हैं। जब सरकार ने हमारे लिए एरिया डेवलप किया, बिजली-पानी की सुविधा उपलब्ध कराई तो फिर इसे उजाड़ क्यों रही है, यह समझ से परे है।

कश्मीर के बडगाम जिले के रहने वाले 62 साल के अहसान वागे सरकारी नोटिस दिखाते हुए। प्रशासन ने अतिक्रमण के नाम पर उनके सेब के पेड़ों को काट दिया है। फोटो- बसीत जरगर।

हाल ही में पहलगाम में गुर्जरों के ठिकानों को गिराने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पहलगाम जाकर उनसे मुलाकात की थी। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था, ‘आज पहलगाम के लिद्दरू में गुर्जर परिवारों से मिली। प्रशासन ने उन्हें बेघर कर दिया है। वह भी इस कड़ाके की सर्दी में। पूरे जम्मू-कश्मीर में खानाबदोशों को टारगेट किया जा रहा है। जिसे अवैध कब्जे की आड़ में जायज ठहराया जा रहा है।’

इससे पहले 8 दिसंबर को मुफ्ती को बडगाम जाने से रोका दिया गया था और उन्हें नजरबंद कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था, ‘किसी भी प्रकार के विरोध को रोकने के लिए गैरकानूनी ढंग से हिरासत में लेना भारत सरकार का पसंदीदा तरीका बन गया है। मुझे एक बार फिर से हिरासत में लिया गया है, क्योंकि मैं बडगाम का दौरा करना चाहती थी। जहां सैकड़ों परिवारों को उनके घरों से निकाला गया है।’

कश्मीर में जंगलों में रहने वालों का मुख्य पेशा खेती है। कनीदाजन के ही रहने वाले शरीफुद्दीन के 50 पेड़ों का बाग काट दिया गया है। वे अपने परिवार के साथ 7 किलोमीटर दूर एक गांव में शिफ्ट हो गए हैं। वो कहते हैं कि बहुत बड़ा नुकसान हो गया। सरकार को अगर अतिक्रमण हटाना ही था तो उसे हमारे लिए कोई अल्टरनेट प्लान लेकर आना चाहिए। इसी तरह बडगाम के रहने वाले 108 साल के जूना बेगम को इस कड़ाके की सर्दी और कोरोना महामारी के बीच बेघर होने का डर सता रहा है। वो कहते हैं, ‘हम कहीं नहीं जाने वाले। हम यहां सदियों से रह रहे हैं, इस मौसम में कहां जाएंगे।’

इस मामले पर वन अधिकारियों का कहना है कि अतिक्रमण हटाने के लिए कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी। कोर्ट के आदेश के मुताबिक ही कार्रवाई की जा रही है। अदालत ने हाल ही में उस एक्ट को अवैध और असंवैधानिक घोषित किया है, जिसके तहत कुछ लोगों द्वारा कब्जा की गई सरकारी जमीन पर मालिकाना हक की अनुमति दी जाती थी।

5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटा लिया गया। इसके तहत जम्मू-कश्मीर को स्पेशल स्टेटस का दर्जा मिला था। पहले यहां बाहरी लोग जमीन नहीं खरीद सकते थे। सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन नहीं कर सकते थे।

हालांकि, अब नए डोमिसाइल लॉ के आने के बाद बाहरी लोगों के लिए जम्मू-कश्मीर के दरवाजे बहुत हद तक खुल गए हैं। इसके तहत कोई भी जो 15 साल से यहां रह रहा है या वह हाई स्कूल की परीक्षा में शामिल हुआ है और 7 साल से जम्मू-कश्मीर में रह रहा है, वो यहां जमीन खरीद सकता है। इसके तहत 30 लाख गैर मुस्लिम वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी जो जम्मू में रह रहे हैं, उन्हें डोमिसाइल स्टेटस मिल गया।

जम्मू-कश्मीर में कुल 15 लाख लोग जंगलों में रहते हैं। उन्होंने वहां अपने अस्थाई ठिकाने बनाए हैं और बगीचे लगाए हैं। फोटो- आबिद भट्ट

आर्टिकल 370 के हटने के बाद यहां कई केंद्रीय कानून लागू हुए हैं। लेकिन, विश्लेषकों का मानना है कि यहां देश के दूसरे राज्यों की तरह आदिवासियों के अधिकारों के लिए फॉरेस्ट राइट्स एक्ट (FRA) को लागू करने में सरकार धीमी रही है।

राजा मुजफ्फर एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वो कहते हैं, 'जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन एक्ट के तहत फॉरेस्ट एक्ट यहां भी तत्काल प्रभाव से लागू होना चाहिए था। लेकिन, एक साल से ज्यादा वक्त के बाद भी इसे लागू करने की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। यहां के ट्राइबल्स को जानबूझकर कर टारगेट करने की कोशिश की जा रही है।'

वो कहते हैं कि यह विडंबना है कि एक तरफ प्रशासन कश्मीर में इंडस्ट्री लगाने और होटल खोलने के लिए फॉरेस्ट लैंड ट्रांसफर कर रहा है तो दूसरी तरफ आदिवासियों को जंगलों से बेदखल किया जा रहा है। पेड़ों को काटना गैर कानूनी है। सिर्फ फल लगे पेड़ ही नहीं, जिन पेड़ों पर फल नहीं लगा है, उन्हें भी काटा गया है। जंगलों में रहने वालों की मांगें जायज हैं। जो कानून लोगों की भलाई के लिए हैं, उनपर अमल नहीं किया जा रहा है और जो गलत हैं, उन्हें लागू किया जा रहा है।

जंगलों में रहने वालों का कहना है कि जम्मू और कश्मीर में FRA के लागू नहीं होने से उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। वो बेरोजगार हो गए हैं। बशीर अहमद कहते हैं कि बिना देरी के यहां FRA लागू किया जाना चाहिए। इस बीच वन अधिकारियों का कहना है कि कोरोना महामारी की वजह से FRA को लागू करने में देरी हुई है। कई जगहों पर ओरिएंटेशन प्रोग्राम शुरू किए गए हैं, जिससे ट्राइबल्स के अधिकारों और FRA के बारे में अधिकारियों को जानकारी मिल सके।



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जम्मू कश्मीर में प्रशासन ने अतिक्रमण के नाम पर जंगलों और पहाड़ों पर अस्थाई शेड और मिट्टी के घरों में रहने वालों को निकालना शुरू कर दिया है। उनके बाग-बगीचे नष्ट किए जा रहे हैं। फोटो-आबिद भट्ट


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