अभाव और सिस्टम पर अविश्वास के कारण लाखों की संख्या में गांव का रुख करना, अशिक्षा के कारण सफाई की अनदेखी करना या कोरोना बीमारी के लक्षण में भी देसी इलाज कराना क्षम्य हो सकता है, लेकिन जब तथाकथित पढ़े-लिखे युवा अपने साथियों के साथ बगैर मास्क लगाए सड़कों पर सिगरेट पीते हुआ निकलते हैं या एक आईएएस अधिकारी अपनी विदेश यात्रा के बाद क्वारंटाइन से भाग जाता है तो यह वर्तमान स्थितियों में देशद्रोह से कम नहीं है। सरकार को इन्हें ऐसी दफाओं में निरुद्ध करना चाहिए, जिससे अन्य लोग हिम्मत न कर सकें। कुछ ऐसा ही है इबादतगाह और पूजा स्थलों पर इकट्ठा होना। तेलंगाना में जो छह लोग कोरोना से मरे हैं वे दिल्ली में एक धार्मिक संस्थान के मरकज (केंद्रीय कार्यालय) में विगत 13-15 मार्च को इकठ्ठा हुए थे। उनमें से कई अब देश के अनेक भागों में पहुंचकर लोगों के जीवन के लिए संकट का कारण बन रहे हैं। इन्हें यह संक्रमण विदेश से आने वाले संस्था के प्रतिनिधियों के साथ उठने-बैठने से हुआ। क्या धर्म के इन ठेकेदारों को इतनी समझ नहीं थी कि विदेश से जो लोग शिरकत करने आ रहे हैं, उनके बारे में पहले सरकार को सूचित करें और फिर जांच के...
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