साल 2012 में तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि कुपोषण की समस्या राष्ट्रीय शर्म है। इतने सारे कुपोषित बच्चों के साथ हम एक सेहतमंद भविष्य की उम्मीद नहीं कर सकते। उनकी कही बात को आठ साल बीत चुके हैं। देश में सरकार बदल गई लेकिन 'राष्ट्रीय शर्म' नहीं बदली। 2015 से 2019 के बीच कुपोषण के हालात सुधरने के बजाए कई राज्यों में और ज्यादा बिगड़ गए या बहुत धीमी रफ्तार से सुधर रहे हैं। उल्टी दिशा में बढ़ने वाले राज्यों में गोवा, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे अमीर राज्य भी शामिल हैं। इस ट्रेंड का खुलासा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे यानी NFHS-5 के आंकड़ों का एनालिसिस करने पर हुआ है। गुजरात बनाम बिहारः आर्थिक मोर्चे पर अलग, कुपोषण पर साथ गुजरात और बिहार की तुलना करना थोड़ी अजीब लग सकती है, लेकिन ट्रेंड को समझने के लिए जरूरी है। 2019 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय 40,982 रुपए थी। गुजरात की इससे करीब पांच गुना ज्यादा 1,95,845 रुपये। आर्थिक मोर्चे पर दोनों राज्य एक-दूसरे से विपरीत छोर पर हैं, लेकिन बच्चों के कुपोषण और महिलाओं की स्थिति जैसे पैमानों में गुजरात भी बिहार के साथ ह...
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