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Showing posts from January, 2021

बिहार के बच्चों से ज्यादा कुपोषित हो रहे गुजराती बच्चे, गोवा और महाराष्ट्र जैसे अमीर राज्य भी पीछे

साल 2012 में तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि कुपोषण की समस्या राष्ट्रीय शर्म है। इतने सारे कुपोषित बच्चों के साथ हम एक सेहतमंद भविष्य की उम्मीद नहीं कर सकते। उनकी कही बात को आठ साल बीत चुके हैं। देश में सरकार बदल गई लेकिन 'राष्ट्रीय शर्म' नहीं बदली। 2015 से 2019 के बीच कुपोषण के हालात सुधरने के बजाए कई राज्यों में और ज्यादा बिगड़ गए या बहुत धीमी रफ्तार से सुधर रहे हैं। उल्टी दिशा में बढ़ने वाले राज्यों में गोवा, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे अमीर राज्य भी शामिल हैं। इस ट्रेंड का खुलासा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे यानी NFHS-5 के आंकड़ों का एनालिसिस करने पर हुआ है। गुजरात बनाम बिहारः आर्थिक मोर्चे पर अलग, कुपोषण पर साथ गुजरात और बिहार की तुलना करना थोड़ी अजीब लग सकती है, लेकिन ट्रेंड को समझने के लिए जरूरी है। 2019 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय 40,982 रुपए थी। गुजरात की इससे करीब पांच गुना ज्यादा 1,95,845 रुपये। आर्थिक मोर्चे पर दोनों राज्य एक-दूसरे से विपरीत छोर पर हैं, लेकिन बच्चों के कुपोषण और महिलाओं की स्थिति जैसे पैमानों में गुजरात भी बिहार के साथ ह...

पंत को पांच नंबर पर भेजना मास्टर स्ट्रोक; कितनी स्लो थी विहारी की पारी? भारत को इस मैच से क्या मिला?

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सिडनी में खेला गया तीसरा टेस्ट मैच ड्रॉ हो गया। जीत के लिए 407 रन का पीछा कर रहे भारत ने पांचवें दिन दो विकेट के नुकसान पर 96 रन से आगे पारी शुरू की। रहाणे जल्दी आउट हो गए। लेकिन, उसके बाद पुजारा और पंत ने 148 रन की साझेदारी करके स्कोर 250 पहुंचाया। इसी स्कोर पर पंत 97 रन बनाकर आउट हो गए। 272 के स्कोर पर पुजारा के आउट होते ही लगा भारत के लिए अब मैच बचाना मुश्किल होगा। लेकिन, इसके बाद हनुमा विहारी और आर अश्विन ने 256 गेंद पर 62 रन की साझेदारी करके मैच बचा लिया। अपनी पारी के दौरान विहारी हैम-स्ट्रिंग की चोट से जूझ रहे थे। वहीं, अश्विन ने भी ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाजों की कई गेंदें शरीर पर झेलीं। पहली पारी में बैटिंग के दौरान चोटिल हुए ऋषभ पंत ऑस्ट्रेलिया की दूसरी पारी में विकेट कीपिंग नहीं कर सके। लेकिन चोट के बावजूद आज उन्होंने अपनी बैटिंग से एक समय ऑस्ट्रेलिया को हार की ओर धकेल दिया था। रहाणे की कप्तानी कितनी कारगर? कप्तान के तौर पर ये रहाणे का चौथा मैच था। इससे पहले के तीनों मैच वो जीते थे। पहली बार उनकी कप्तानी में टीम इंडिया ने मैच ड्रॉ कराया। टीम में...

हर दिन 13 लाख लोगों को लगेगी वैक्सीन तब अगस्त तक हो सकेंगे 30 करोड़ वैक्सीनेट

भारत में कोरोनावायरस को रोकने के लिए 16 जनवरी से वैक्सीनेशन शुरू हो रहा है। फेज-1 में 3 करोड़ हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स को वैक्सीन लगेगी। उसके बाद 50 वर्ष से ज्यादा उम्र वालों और 50 वर्ष से कम उम्र वाले हाई-रिस्क में आने वाले 27 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई जाएगी। यानी अगस्त 2021 तक 30 करोड़ लोगों की प्रायोरिटी लिस्ट को वैक्सीन लगाने की तैयारी है। एसबीआई रिसर्च की नई रिपोर्ट के मुताबिक सरकार को अपना टारगेट पूरा करना है तो हर दिन 13 लाख लोगों को वैक्सीनेट करना होगा। यह एक बड़ी चुनौती होगी क्योंकि चीन को छोड़कर और किसी देश में इतने ज्यादा लोगों को एक दिन वैक्सीनेट नहीं किया गया है। चीन का भी दो ही दिन का डेटा उपलब्ध है, जिसमें उसने 22.5 लाख लोगों को एक दिन में वैक्सीनेट किया और दो दिन में करीब 45 लाख लोगों को वैक्सीन लगाई। अन्य देशों की बात करें तो अमेरिका में हर दिन 5.37 लाख और यूके में 4.72 लाख लोगों को वैक्सीनेट किया जा रहा है। इस चुनौती का सामना कैसे करेगा भारत? वैक्सीनेशन की पूरी प्रक्रिया में वैक्सीनेटर की भूमिका प्रमुख रहने वाली है। नेशनल लेवल पर ट्रेनर्स को ट्रेनिंग दी ...

इस साल इंतजार से नहीं, इंतजाम से जीवन बदलें

हम बड़े दिनों से इंतजार कर रहे थे कि 2020 कब खत्म होगा। क्योंकि हमने कहा 2020 साल ही अच्छा नहीं था। हम इंतजार कर रहे थे 2021 आएगा तो जीवन बदल जाएगा, परिस्थितियां बदल जाएंगी, मन की स्थिति बदल जाएगी। हमने सोचा हमारी मन की स्थिति, हमारी खुशी, हमारे मन की शक्ति और शांति, परिस्थितियों पर, लोगों पर निर्भर है। जैसे एक बच्चा पूछता है आपको क्या लगता है मेरा परीक्षा में क्या होगा? तो हम उससे कहते हैं, जैसी तैयारी होगी, वैसा ही तो होगा। हम यह नहीं कहते कि अगर एक्जाम आसान होगा तो अच्छा होगा और मुश्किल होगा तो कैसे अच्छा होगा। हम परीक्षा पर ध्यान केंद्रित नहीं करते, हम तैयारी पर फोकस करते हैं। 2020 में हमारी परीक्षा मुश्किल हो गई थी, लेकिन हमारी तैयारी कैसी थी? 2021 शुरू हो गया, पर हमें क्या पता है कि इस साल कौन-सी परीक्षा आएगी। चाहे वो विश्व में हो, देश, शहर, मोहल्ले, परिवार या व्यक्तिगत जीवन में हो, मेरे शरीर पर हो, क्या मुझे पता है कि 2021 मेरे लिए कौन-सी बातें लेकर आ रहा है। इस साल की परीक्षा कैसी होगी। अब फोकस करते हैं अपनी तैयारी पर, परीक्षा पर नहीं। ये नहीं सोचना 2021 कैसा होगा। महत्वपूर्...

किसानों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई: क्या मसला सुलझेगा? कोर्ट कानून निरस्त कर सकता है?

किसान आंदोलन और कृषि कानूनों से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में आज होगी। दरअसल, किसान आंदोलन से जुड़ी कई याचिकाएं कोर्ट में दायर हुई थीं। कुछ याचिकाओं में आंदोलन को खत्म करने की मांग की गई है, तो कई याचिकाओं में तीनों कानूनों को रद्द करने की। इन्हीं सब याचिकाओं पर अब चीफ जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की बेंच सुनवाई करेगी। इस मामले की आखिरी सुनवाई 17 दिसंबर को हुई थी। सवाल ये है कि क्या सुप्रीम कोर्ट से मसला सुलझ सकता है? आइए एक-एक करके इस मामले को पूरी तरह समझते हैं। सबसे पहले बात खेती से जुड़े उन 3 कानूनों की... 1. फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) एक्टः किसान सरकारी मंडियों (एपीएमसी) से बाहर फसल बेच सकते हैं। ऐसी खरीद-फरोख्त पर टैक्स नहीं लगेगा। 2. फार्मर्स (एम्पॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस एक्टः किसान कॉन्ट्रैक्ट करके पहले से तय एक दाम पर अपनी फसल बेच सकते हैं। 3. एसेंशियल कमोडिटीज (अमेंडमेंट) एक्टः अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, आलू और प्याज को आवश्यक वस्तुओं...

हर मोहल्ले में एक टोली होगी, 65 करोड़ लोगों तक पहुंचने का टारगेट; कूपन और रसीद के जरिए ही लिया जाएगा चंदा

अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के लिए धन संग्रह का काम 15 जनवरी यानी मकर संक्रांति से शुरू हो रहा है। यह कार्यक्रम 42 दिनों का होगा। 27 फरवरी यानी माघ पूर्णिमा को इसकी समाप्ति होगी। श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इसे ‘राम मंदिर निधि समर्पण अभियान’ नाम दिया है। इस अभियान को लेकर हमने विश्व हिन्दू परिषद के इंटरनेशनल वर्किंग प्रेसिडेंट और इस अभियान के प्रमुख आलोक कुमार, मध्य प्रदेश के लिए अभियान प्रमुख राजेश तिवारी और बिहार के सह अभियान प्रमुख परशुराम कुमार से बात की। बातचीत के प्रमुख अंश... धन संग्रह अभियान की रूपरेखा क्या होगी हम सभी राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र के सदस्य के रूप में काम कर रहे हैं। पूरे देश में 5.25 लाख गांवों में 13 करोड़ परिवारों के 65 करोड़ लोगों तक पहुंचने का टारगेट है। आंकड़ा बढ़ भी सकता है। इसके लिए हर राज्य में टीमें भी बन गई हैं। मध्य प्रदेश में 6.5 करोड़ और बिहार में 7.5 करोड़ लोगों तक पहुंचने का लक्ष्य है। इसी तरह बाकी राज्यों ने भी अपने टारगेट सेट कर रखे हैं। राम मंदिर के लिए चंदा किस मोड में स्वीकार किया जाएगा अभी धन तीन तरह से लिए जा रहा है। पहला कूपन ...

किसान नेता बोले- हमेें पता है होना कुछ नहीं, पर सरकार को बेनकाब करने के लिए बैठक में जाएंगे

बीते शुक्रवार किसानों की सरकार के साथ बातचीत एक बार फिर से विफल रही। अब 15 जनवरी को किसान नेता 9वीं बार केंद्रीय मंत्रियों से मिलेंगे। लेकिन इस बैठक को लेकर भी किसान नेताओं में कोई उत्साह नहीं है और करीब सभी किसान नेता ये मान रहे हैं कि अगली बैठक भी बेनतीजा ही रहने वाली है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब किसान नेताओं को इन बैठकों से समाधान की कोई उम्मीद ही नहीं है तो वे बैठक में शामिल ही क्यों हो रहे हैं? किसान नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां इस सवाल पर कहते हैं, ‘शहीद भगत सिंह से भी ऐसे ही सवाल पूछे जाते थे कि जब आपको न्यायालय से न्याय मिलने को कोई उम्मीद नहीं है तो आप हर तारीख पर अदालत क्यों जा रहे हैं। तब भगत सिंह का जवाब होता था कि हम अदालत इसलिए जा रहे हैं ताकि पूरे देश की अवाम को अपनी आवाज पहुंचा सके। हम भी इन बैठकों में सिर्फ इसीलिए जा रहे हैं।’ इन बैठकों के बेनतीजा रह जाने के लिए सरकार को जिम्मेदार बताते हुए उग्राहां कहते हैं, ‘बातचीत हमारे कारण नहीं, बल्कि सरकार के कारण विफल हो रही हैं। हमारी मांग तो बहुत सीधी है कि तीनों कानूनों को रद्द किया जाए, उसके बिना हम वापस नहीं...

बचपन में पिता का एक्सीडेंट हो गया, घर चलाने के लिए अखबार बांटा; आज पांच दुकानों के मालिक

आज हम आपको अजमेर के भरत ताराचंदानी की कहानी बताने जा रहे हैं। भरत जब छठवीं क्लास में थे, तब उनके पिता का एक्सीडेंट हो गया था और वो बेड रेस्ट पर चले गए थे। तभी से भरत और उनके परिवार का संघर्ष शुरू हो गया था। आज वो पुष्कर में पांच दुकानों के मालिक हैं और टर्नओवर करोड़ों में है। ये सब वो कैसे कर पाए, उन्हीं से जानिए। भरत कहते हैं, 'पिता अकेले कमाने वाले थे और अचानक उनका एक्सीडेंट हो जाने से कमाई बंद हो गई। हम सब भाई-बहन छोटे थे। मां समझ नहीं पा रही थीं कि अब परिवार का भरण-पोषण आखिर होगा कैसे? दिनोंदिन हालात बिगड़ते ही गए। मां ने सिलाई-बुनाई का काम शुरू किया। बड़े भाई ने मेडिकल स्टोर पर जाना शुरू कर दिया। मैं किराने की दुकान पर जाने लगा। सुबह अखबार भी बांटता था। एसटीडी पीसीओ पर काम किया। हम लोग हर छोटा-बड़ा वो काम कर रहे थे, जिससे घर में चार पैसे आ सकें। कुछ सालों तक जिंदगी की गाड़ी ऐसे ही चलती रही।' उन्होंने बताया कि हम सिंधी कम्युनिटी से आते हैं। हमारी कम्युनिटी के लोग या तो बिजनेस करते हैं या पैसा कमाने विदेश जाते हैं। पहले तो ऐसा ही होता था। मेरे बड़े भाई को किसी लिंक के जरिए पश्च...

फिल्म निर्देशकों की अभिनय प्रतिभा दवा भी हो सकती है और कभी-कभी ये रोग भी हो जाता है

फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप ने सोनाक्षी सिन्हा अभिनीत ‘अकीरा’ में नकारात्मक भूमिका प्रभावोत्पादक ढंग से प्रस्तुत की थी। प्रकाश झा ने फिल्म ‘सांड की आंख’ में नकारात्मक भूमिका, चरित्र के गंवारपन पर अभिमान करने वाले पात्र को अभिनीत किया। निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में नकारात्मक भूमिका को यादगार बना दिया। इस तरह तीन निर्देशकों ने अपनी अभिनय प्रवीणता को प्रस्तुत किया। कुछ निर्देशक कलाकार को सीन समझा देने के बाद उसे यह स्वतंत्रता देते हैं कि वे इसे अपने ढंग से प्रस्तुत करें। कुछ निर्देशक सीन अभिनीत करके दिखाते हैं और यह चाहते हैं कि कलाकार इसी ढंग से अभिनय करे। इस शैली में यह खतरा निहित है कि सारे कलाकार एक सा अभिनय करते हुए लग सकते हैं। दोनों ही शैलियों में अभिनय करते समय कलाकार अपने स्वयं के तरीके से अभिनय कर सकता है। अभिनय में इसे इंप्रोवाइजेशन कहते हैं। मनोज कुमार अपनी फिल्म ‘क्रांति’ में दिलीप कुमार को सीन सुना कर यह स्वतंत्रता देते थे कि वे उसे अपने ढंग से प्रस्तुत करें। इसी फिल्म में मनोज कुमार भी अभिनय कर रहे थे मनोज हू-ब-हू दिलीप की तरह करने लगे। इस तरह...

हमारे देश पर ‘एजिज़्म’ को हावी न होने दें, संकट में बुजुर्गों की बद्धिमत्ता और अनुभव ही काम आते हैं

सा गर, मध्य प्रदेश की अर्चना दुबे ने बतौर प्राइमरी टीचर 38 साल, दो महीने और 25 दिन नौकरी की और 31 मार्च 2020 को रिटायर हुईं। वे किसी और ऊंचे स्तर पर जा सकती थीं लेकिन वे हमारे पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की बात पर विश्वास करती थीं। डॉ कलाम ने यह बात मुझसे एक संवाद में भी दोहराई थी कि एक बच्चे के चरित्र निर्माण में तीन लोगों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, जिसमें शामिल हैं मां, पिता और प्राइमरी शिक्षक। अर्चना भी इस पर विश्वास करती थीं। वे एक साथ दो चीजों में योगदान दे रही थीं। वे जिन बच्चों के संपर्क में आती थीं, उन्हें ज्ञान देने के साथ उनके चरित्र का आधार भी तैयार कर रही थीं। अपने कॅरिअर की शुरुआत 150 रुपए प्रतिमाह वेतन से करने वाली अर्चना का ट्रांसफर कई छोटे-छोटे गांवों में हुआ। उन्होंने वहां जाकर बच्चों का पढ़ाया जहां आमतौर पर उन जैसे अच्छे शिक्षक जाना नहीं चाहते। वे रोजाना उन छोटे-छोटे गांवों का सफर करती थीं और मौसम की मार झेलते हुए भी जनगणना तथा सर्वे जैसे हर सरकारी काम में शामिल होती थीं। अब आते हैं 31 मार्च 2020 पर। कम से कम इस दिन तक तो उन्हें जानकारी नहीं द...

2015 में 26 हजार में मिलता था 10 ग्राम सोना, 2020 में 56 हजार पार हुआ; जानें अगले 3 साल में कहां पहुंचेगा?

भारत में सोने की खानें न के बराबर हैं। 2019 में 96% सोना विदेशों से खरीदा गया। इसके आयात पर सरकार को 12.5% इंपोर्ट ड्यूटी भी चुकानी होती है। फिर भी पिछले साल 2,295 अरब का सोना विदेशों से खरीदा गया था। हमारे यहां सोना खरीदना रईसी की निशानी है। इसके बावजूद 2020 में इसकी मांग में 300 अरब रुपए की गिरावट आई और सिर्फ 1,992 अरब रुपए का ही सोना आयात हुआ। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, ज्वेलरी की खरीदारी में 2020 की पहली तिमाही में 41%, दूसरी में 48% और तीसरी में 48% की गिरावट आई। 2009 के बाद 10 सालों में ऐसा पहली बार हआ, जब इतना कम सोना खरीदा गया। फिर भी अगस्त 2020 में 1 तोला यानी 10 ग्राम सोने का भाव पहली बार 56 हजार के पार चला गया। जब मांग घट रही थी, लोग सोना खरीद नहीं रहे थे, तो रेट में बढ़ोतरी क्यों? चौथी तिमाही की रिपोर्ट अभी नहीं आई है। लेकिन लॉकडाउन खुलने के बाद धनतेरस और दिवाली पर करीब 30 टन सोना बिका था, जो 2019 के 40 टन से 25% ही कम है। यानी सोने की खरीदारी में फिर से तेजी आ रही है। इधर सोना 56 हजार से कम होकर 50 हजार के आसपास आ गया है। जब-जब दुनिया में संकट आएगा, लोग...

प्रशासन ने सेब के हजारों पेड़ों को अतिक्रमण मानकर काट दिया, 15 लाख लोगों की रोजी पर संकट

जम्मू-कश्मीर में जंगलों में रहने वाले लोग परेशान हैं। इनमें गुर्जर समुदाय भी है। पिछले साल नवंबर महीने से ही प्रशासन ने जंगलों और पहाड़ों पर अस्थाई शेड और मिट्टी के घरों में रहने वालों को निकालना शुरू कर दिया है। अतिक्रमण के नाम पर उनके ठिकानों को तोड़ा जा रहा है, बाग-बगीचे ध्वस्त किए जा रहे हैं। इससे इन लोगों में हड़कंप मच गया है। जम्मू-कश्मीर में कुल 15 लाख लोग जंगलों में रहते हैं। कश्मीर के बडगाम जिले के कनीदाजन गांव के रहने वाले 62 साल के अहसान वागे सदमे में हैं। पिछले साल दिसंबर में वन विभाग ने उन्हें जगह खाली करने का नोटिस दिया था और अगले ही दिन उनके 200 सेब के पेड़ काट दिए। वो कहते हैं कि इस बाग को बनाने में कई साल लग गए। उनके परिवार के लिए दशकों से जीविका का एक मात्र यही सहारा था। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि प्रशासन ने आखिर ऐसा क्यों किया। बिना किसी चेतावनी के उनके बगीचों को तहस-नहस क्यों किया। वो कहते हैं कि मुझे लगता है कि मैंने अपने परिवार के एक सदस्य को खो दिया है, मैं बीमार हो गया हूं, चलने -फिरने की हिम्मत भी नहीं बची। इस गांव में 400 परिवारों के 1200 लोग रहते हैं, जो दशक...

टेस्ला से सैलरी भी नहीं मिली, फिर भी सालभर में 7 गुना कैसे बढ़ गई एलन मस्क की संपत्ति?

टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क दुनिया के सबसे अमीर इंसान बन गए हैं। ब्लूमबर्ग के मुताबिक, गुरुवार को टेस्ला के शेयरों की प्राइस में 4.8% का इजाफा हुआ और मस्क की नेटवर्थ 188.5 अरब डॉलर (13.80 लाख करोड़ रुपए) हो गई। अमेजन के मालिक जेफ बेजोस की नेटवर्थ 187 अरब डॉलर (13.69 लाख करोड़ रुपए) है। मस्क भले ही दुनिया में सबसे अमीर हैं, लेकिन वे तब तक खुश नहीं होंगे, जब तक इंसान को मंगल तक न पहुंचा दें। ऐसा उन्होंने खुद 2016 में कहा था। उनका कहना था, हमें तब तक खुशी नहीं मनानी चाहिए, जब तक हम मंगल पर अपनी कॉलोनियां न बसा लें। एलन मस्क सालभर पहले यानी जनवरी 2020 में ब्लूमबर्ग बिलेनियर इंडेक्स की सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में 35वें नंबर पर थे। लेकिन, 10 महीनों में उन्होंने पहले बिल गेट्स को पछाड़ा और अब जेफ बेजोस को पीछे छोड़कर पहले नंबर पर आ गए। 10 साल की उम्र में बना दिया था वीडियो गेम एलन मस्क का जन्म 28 जून 1971 को दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया में हुआ। उनकी मां माये मस्क कनाडाई मॉडल हैं। उनके पिता एरोल मस्क दक्षिण अफ्रीका के थे और वहां इलेक्ट्रो मैकेनिकल इंजीनियर थे। एलन जब 9 साल के थ...

अक्षरज्ञान के बाद ही लड़कियों को सिखाया जाता है कि बचो, बाहर दुनिया खूंखार है; बचो, कि तुम औरत हो

गैंगरेप के मामले में उत्तर प्रदेश एक बार फिर चर्चा में है। बदायूं के इस वाकये में कुछ नया नहीं। चना-मुर्रा की भी उतनी खपत नहीं, जितने रोजाना रेप होते होंगे। तो खबर की तफसील छोड़कर सीधे मुद्दे पर आते हैं। हुआ यूं कि मृतका के परिवार को ढांढस देने राष्‍ट्रीय महिला आयोग की एक सदस्य पहुंची। तसल्ली देते हुए उनकी जबान फिसल गई और फिर जो सुनाई पड़ा, वो औरतों का अपने ही मुंह पर तमाचा है। सदस्य ने औरतों को ही सलाह दे डाली कि उन्हें शाम के वक्त घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए, या निकलना ही पड़े तो लड़का-बच्चा साथ लेकर जाना चाहिए। महिला आयोग की हरेक सदस्य पूरे मुल्क की महिलाओं का चेहरा होती है। ऐसे में ये बयान एक डरी और हार मान चुकी मां की समझाइश जैसा है। 'अंधेरा होने से पहले घर लौट आना'। इसके पीछे सब-स्क्रिप्ट चलती है- 'अगर देर हुई तो रेप तय है'। दिल्ली मेट्रो की सीट की तरह ही औरत-मर्द का समय भी बंट गया है। कोच की दो-चार सीटों पर औरतों का तख्त लगाकर पक्का कर दिया गया कि बाकी तमाम सीटों पर मर्दों का कब्जा रहे। अगर सारी सीटें खाली हों और कोई औरत मन मुताबिक जगह पर बैठ जाए तो बगल वाला ...