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Showing posts from September, 2020

हाथरस गैंगरेप के आरोपियों के परिवार वाले बोले,‘हम इनके साथ बैठना-बोलना तक पसंद नहीं करते, हमारे बच्चे इनकी बेटी को छूएंगे?'

दिल्ली से करीब 160 किलोमीटर दूर हाथरस गैंगरेप पीड़िता का गांव जाति की बेड़ियों में जकड़ा नजर आता है। मैं जिस युवा की बाइक पर बैठकर मुख्य मार्ग से गांव तक पहुंची थी, उसने बात-बात में कहा, 'यहां के लोग मरना पसंद करेंगे, गैर बिरादरी में उठना-बैठना नहीं।' वो ठाकुर था। लेकिन घटना पर उसे गहरा अफसोस था। वो कहता है, उस दलित बच्ची के साथ बहुत गलत हुआ। दिल्ली में जब सफदरजंग अस्पताल में मैं पीड़िता के परिजनों से बात कर रही थी तब उसके भाई और पिता बार-बार जाति का जिक्र कर रहे थे। तब मेरे मन में ये सवाल कौंध रहा था कि क्या 2020 के भारत में भी इतना गहरा जातिवाद है? गांव पहुंचते ही इस सवाल का जवाब मिल गया। गिरफ्तार अभियुक्तों के परिवार के लोगों ने बार-बार कहा, 'हम इनके साथ बैठना तक पसंद नहीं करते, हमारे बच्चे इनकी बेटी को छूएंगे?' इस ठाकुर और ब्राह्मण बहुल गांव में दलितों के गिने-चुने घर हैं और उनकी दुनिया अलग है। यहां जातिवाद की जड़ें बेहद मजबूत हैं। लोग बात-बात में जाति की बात करते हैं। तथाकथित उच्च जाति के लोगों का तो यही कहना था कि ये दलित परिवार बहुत सज्जन है, किसी से कोई मतलब ...

ट्रम्प का कहना है- पर्यावरण बचाना लोगों को बेरोजगार करना है, जबकि बाइडेन नौकरियों के साथ पर्यावरण बचाने के पक्षधर हैं

जब भी मैं शक्की लोगों के साथ कोविड-19 या जलवायु परिवर्तन पर बात करता हूं तो मैं एक उपमान का इस्तेमाल करता हूं: कल्पना करें कि आपका बच्चा बीमार है और आप उसे 100 डॉक्टरों को दिखाने ले जाते हैं। इनमें से 99 डॉक्टर एक ही बात कहते हैं और इलाज की सलाह देते हैं। जबकि एक अन्य कहता है कि चिंता की कोई बात नहीं है, बच्चे की बीमारी जादू जैसे गायब हो जाएगी। क्या माता-पिता सौ में से इस एक डॉक्टर की सलाह मानेंगे? इसे आप मनगढ़ंत न मानें। असल में अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटर के सामने यही सबसे बड़ा सवाल है। क्या आप अपने बच्चे या देश की सेहत को उस व्यक्ति के हाथों में देंगे, जो कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन पर 100 में से एक डॉक्टर की सलाह मानता हो। वह ट्रम्प यूनिवर्सिटी के डॉ. डोनाल्ड ट्रम्प हैं, जहां से उन्होंने बीएस की डिग्री ली है। यह मेरे लिए चौंकाने वाला है कि कितने परंपरावादी सौ में से ऐसे एक डॉक्टर की सलाह को मानेंगे। हो सकता है कि ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के लोग प्रकृति में रुचि न रखते हों, लेकिन प्रकृति की उनमें रुचि है। जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 दोनों ने ही पिछले एक साल में हमारी जिंदगी...

बाबरी मस्जिद का फैसला अगर उल्टा आता तो भारतीय लोकतंत्र और हिंदुत्व की राजनीति में जो स्वस्थ प्रवृत्तियां उभर रही हैं, वे शिथिल पड़ जातीं

बाबरी मस्जिद को गिराने के बारे में अब जो फैसला आया है, उस पर तीखा विवाद छिड़ गया है। इस फैसले में सभी कारसेवकों को दोषमुक्त कर दिया गया है। कुछ मुस्लिम संगठनों के नेता कह रहे हैं कि यदि मस्जिद गिराने के लिए कोई भी दोषी नहीं है तो फिर वह गिरी कैसे? सरकार और अदालत ने अभी तक उन लोगों को पकड़ा क्यों नहीं, जो मस्जिद ढहाने के दोषी थे? जो सवाल हमारे कुछ मुस्लिम नेता पूछ रहे हैं, उनसे भी ज्यादा तीखे सवाल अब पाकिस्तान के नेता, अखबार और चैनल पूछेंगे। इस फैसले को लेकर देश में सांप्रदायिक असंतोष और तनाव फैलाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। मान लें कि सीबीआई की अदालत श्री लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरलीमनोहर जोशी और उमा भारती जैसे सभी आरोपियों को सजा देकर जेल भेज देती तो क्या होता? पहली बात तो यह कि इन नेताओं ने बाबरी मस्जिद के उस ढांचे को गिराया है, इसका कोई भी ठोस या खोखला-सा प्रमाण भी उपलब्ध नहीं है। यह ठीक है कि ये लोग उस प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे लेकिन इनमें से किसी ने उस ढांचे की एक ईंट भी तोड़ी हो, ऐसा किसी फोटो या वीडियो में नहीं देखा गया। इसके विपरीत इन नेताओं ने उस वक्त भीड़ को काबू करने क...

लोगों की नजरों से बचने को मैं मर्द बन गई, बाल काटे, पगड़ी बांधी, रात-बेरात खेतों में पानी देने जो जाना पड़ता था

सफेद कुर्ता पाजामा, सर पर बंधा सफेद साफा, कंधे पर रखा फावड़ा। कमला को कोई दूर से क्या, पास से भी देखे तो धोखा खा जाए कि कोई पुरुष खेत में काम कर रहा है। दिल्ली से करीब 120 किलोमीटर दूर मुजफ्फरनगर के मीरापुर दलपत गांव की रहने वाली 63 साल की कमला ने अपनी जिंदगी के चार दशक मर्द बनकर खेतों में काम करते हुए गुजार दिए। एक महिला के लिए मर्द बनकर काम करना आसान नहीं था। लेकिन, जिंदगी के सामने ऐसे मुश्किल हालात थे कि उन्होंने घूंघट उतारकर सर के बाल काट लिए और पगड़ी बांध ली। किसान परिवार में पैदा हुई कमला होश संभालते ही खेतों में काम करने लगी थीं। शादी हुई तो 17 महीने बाद ही पति की दुखद मौत हो गई। बाद में देवर के साथ उन्हें 'बिठा दिया' गया। इस रिश्ते से उन्हें एक बेटी हुई लेकिन, ये रिश्ता ज्यादा नहीं चल सका और वो अपने भाइयों के घर लौट आईं। कमला के छोटे भाई को कैंसर हो गया। दम तोड़न से पहले उन्होंने कमला से वादा लिया कि वो उनके बच्चों को पालेंगी और पत्नी का ध्यान रखेंगी। कमला कहती हैं, भाई के दोनों बच्चे छोटे थे। कोई सहारा नहीं था। मैंने उनकी जिम्मेदारी संभाल ली और खेती का काम अपने हाथ ...

लाखों की नौकरी छोड़ ऑर्गेनिक अमरूद की बागवानी शुरू की, एक सीजन में 12 लाख रु. की कमाई, 5 लोगों को रोजगार भी दिया

महाराष्ट्र के सांगली जिले के अंकलखोप गांव के रहने वाले शीतल सूर्यवंशी एमबीए करने के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते थे। लाखों की सैलरी थी, 6 साल तक उन्होंने अलग-अलग पोस्ट पर काम किया। लेकिन, 2015 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और ऑर्गेनिक अमरूद की बागवानी का बिजनेस शुरू किया। आज हर दिन 4 टन अमरूद उनके बगीचे से निकलता है। मुंबई, पुणे, सांगली सहित कई शहरों में वे अमरूद भेजते हैं। एक सीजन में 12 लाख रुपए की कमाई हो रही है। 34 साल के शीतल के पिता किसान हैं। दो भाई जॉब करते हैं, एक डॉक्टर है और दूसरा आर्किटेक्ट। शीतल कहते हैं, ' जब नौकरी छोड़कर खेती करने का फैसला लिया तो परिवार ने विरोध किया। उनका कहना था कि अच्छी खासी नौकरी छोड़कर खेती क्यों करना चाहते हो, खेती में मुनाफा ही कितना है..? वो कहते हैं कि हम जहां रहते हैं वहां के ज्यादातर किसान गन्ने की खेती करते हैं। मेरे पिता भी गन्ने की खेती करते थे लेकिन इसमें ज्यादा मुनाफा नहीं होता था। ऊपर से समय भी ज्यादा लगता था। एक फसल तैयार होने में 15-16 महीने लग जाते थे। साथ ही फैक्ट्री में बेचने के बाद पैसे देर से अकाउंट में आते थे। 2015 मे...

संस्थानों के विध्वंस के दौर में पूना फिल्म संस्थान का पुनरोद्धार हो जाए तो फिल्म विधा का सुर ठीक से लगेगा

शेखर कपूर को पूना फिल्म संस्थान प्रमुख बनाए जाने की घोषणा हुई। ज्ञातव्य है कि देवआनंद की बहन के पुत्र शेखर कपूर लंदन की एक चार्टर अकाउंट फर्म में उच्च पद पर नियुक्त थे। उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दिया और भारत लौट आए। एरिक सेगल के उपन्यास ‘मैन-वीमन एंड चाइल्ड’ से प्रेरित फिल्म ‘मासूम’ निर्देशित की। नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी अभिनीत इस फिल्म में जुगल हंसराज और उर्मिला मातोंडकर ने बाल भूमिकाएं की थीं। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1961 में पूना फिल्म संस्थान की स्थापना उस स्थान पर की जहां कभी शांताराम का प्रभात स्टूडियो हुआ करता था। इसी संस्थान से प्रशिक्षित हुए नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, शबाना आजमी, जया भादुड़ी इत्यादि कलाकार। कुछ समय पूर्व इस संस्थान का प्रधान उस व्यक्ति को बनाया गया जिसने महाभारत सीरियल में युधिष्ठिर की भूमिका अभिनीत की थी। योग्यता का यह अजीबोगरीब पैमाना है। यह इस तरह है मानो पतंग उड़ाने में प्रवीण व्यक्ति को वायु सेवा का अध्यक्ष बना दिया जाए। बोनी कपूर ने शेखर कपूर को भव्य बजट की फिल्म ‘मि.इंडिया’ का निर्देशन सौंपा। फिल्म की सफलता के बाद शेखर ने दस्यु फूलन देवी का बॉयोपिक...

सम्मान हमेशा मिलता नहीं है, कई बार इसे लेना भी पड़ता है और खुद को पेश करने का तरीका इसका एक रास्ता है

रवि पाटिल साइकिल लाइब्रेरियन हैं। वे दान में किताबें लेकर उन लोगों को मुफ्त में देते हैं जो पढ़ना चाहते हैं। लोग उनकी वेबसाइट/एप पर किताबें ऑर्डर करते हैं और रवि पूरे अहमदाबाद में कहीं भी साइकिल से किताब डिलिवर कर देते हैं। ज्यादातर वे टीशर्ट और बरमुडा पहनते हैं। हाल ही में वे सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की जमालपुर-एस्टोडिया ब्रांच में कुछ कैश जमा करने गए। गार्ड ने उन्हें रोक दिया क्योंकि वे ‘उचित कपड़े’ नहीं पहने थे। गार्ड और रवि की बहस सुन मैनेजर बाहर आए और उन्होंने कहा, ‘आप शॉर्ट्स पहनकर अंदर नहीं जा सकते।’ जब मैनेजर उसके तर्क से संतुष्ट नहीं हुए तो रवि, जो थियेटर आर्टिस्ट भी हैं, ने बैंक में अपना खाता बंद करने का फैसला लिया। उसे मनाने की बजाय मैनेजर ने रवि को क्लोजर फॉर्म दे दिए। रवि ने बाहर ही खड़े होकर फॉर्म भरे और सिक्योरिटी गार्ड ने अंदर जाकर उन्हें जमा कर दिया। फिर वे साइकिल से घर गए और खाता बंद करने के लिए जरूरी चेकबुक और अन्य दस्तावेज लाकर जमा किए। दो हफ्ते पहले ही मैं मुंबई में पवई लेक पर शाम की सैर के लिए निकला था। तभी मेरी पत्नी ने फोन पर कुछ पैसे निकालते हुए आने को कहा। सैर ख...

हम अपने वृद्धों को इसी तरह से याद करें कि जिस दिन वो याद न आएं, वो दिन, दिन ही न रहे

परिश्रम फलदायी होता जाए तो ऐसी स्थिति को सफलता कहेंगे। जिंदगी आनंदमयी बनती चली जाए, ऐसा जीवन सुफलता कहलाएगा। सफलता है तो जरूरी नहीं कि शांति होगी ही, लेकिन यदि सुफलता है तो तय है कि शांति भी होगी। आज विश्व वृद्ध दिवस है। बहुत सारे वृद्ध इन दिनों आपस में ये ही बातें कर रहे हैं कि लगता है भगवान ने आनंद को क्वारेंटाइन कर दिया है। सचमुच आज भारत ही नहीं, विश्वभर का बुढ़ापा ज्यादा ही उदास हो चला है। हमें प्रयास करना चाहिए घर में, हमारे आसपास जो भी वृद्ध हों, उनका मान करें, उनकी सेवा करें। घर परिवार के बड़े-बूढ़ों को देखने के दो तरीके हैं, स्मृतियों में और साक्षात। यदि साक्षात सेवा का अवसर मिल रहा हो तो सौभाग्य है, वरना स्मृति में चौबीस घंटे में कम से कम एक बार अपने बड़े-बूढ़ों को अवश्य लाइएगा। तुलसी ने एक जगह लिखा है, ‘जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें। ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें।। तुमको देखे बिना जो दिन बीते हैं, ब्रह्मा उनको गिनती में ही न लाकर हमारी उम्र में शामिल न करें। यह बात माताओं ने राम से कही थी। हम अपने वृद्धों को इसी तरह से याद करें कि जिस दिन वो याद न आएं, वो दिन, दिन ही न रहे। बु...

गिलास आधा खाली या आधा भरा होने की कहानी पुरानी हुई, अब हाथ में गिलास होना ही काफी है

कोरोना ने हमें सिखाया है कि अब पांच साल के प्लान न बनाए जाएं। जिन्होंने भी ऐसा पिछले साल किया था, वे अब सब नए सिरे से कर रहे हैं। वास्तव में गिलास आधा खाली और आधा भरा की पुरानी कहानी अब मान्य नहीं रही। मेरे हिसाब से अब हाथ में गिलास होना ही काफी है। आपको उसे अब अपने तरीके से फिर भरना होगा। इसके लिए सरकार और नागरिकों को मेरे कुछ सुझाव हैं... 1. संवाद सबसे जरूरी है: भले ही इसका मतलब एक ही बात को बार-बार दोहराना क्यों न हो। हमें वह जापानी मॉडल अपनाना चाहिए, जिसके मुताबिक हम जो चाहते हैं, वह जब तक अनुसरण करने वाले की आदत न बन जाए, उसे दोहराते रहो। कभी कोई मिश्रित संदेश नहीं होना चाहिए। इसका ताजा उदाहरण कृषि विधेयक हैं। किसान भ्रमित हैं कि ये उनके हित में हैं या खिलाफ। बिचौलियों को हटाकर किसानों को फसल सबसे अच्छी कीमत पर कहीं भी बेचने की आजादी का फैसला सराहनीय है। साथ ही मंडियों की मौजूदा व्यवस्था के साथ किसानों को सुनिश्चित कीमतों पर निजी व्यापार करने का समानांतर विकल्प भी अच्छा है। लेकिन सही संवाद न होने के कारण बहुत से भ्रम पैदा हो रहे हैं। इसपर भी ध्यान देना चाहिए कि बेहतर उत्पादकता ...

आंगन में भीड़ है, भीतर बर्तन बिखरे पड़े है, दाल और कच्चे चावल रखे हैं, वहीं दूर बाजरे के खेत के बीच चिता से अभी भी धुआं उठ रहा है

पीड़िता के गांव से पंद्रह किलोमीटर पहले मेरी गाड़ी को पुलिसकर्मियों ने रोका और पूछा कहां जा रही है। मैंने कहा हाथरस जा रही हूं, वहीं रहती हूं। कुछ तांकझांक के बाद उन्होंने मुझे जाने दिया।पुलिसकर्मी पीड़िता के गांव जाने वालों को रोक रहे हैं। गांव के बाहर भारी पुलिसबल तैनात हैं। वहीं समाजवादी पार्टी, कांग्रेस पार्टी, आजाद समाज पार्टी के कार्यकर्ता यूपी सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। वाल्मिकी समाज से जुड़े संगठनों के लोग दूर-दूर से यहां पहुंच रहे हैं लेकिन उन्हें पीड़िता के गांव जाने नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने सोशल मीडिया पर पीड़िता के बारे में पढ़ा है और उनका खून उबल रहा है। मुख्य मार्ग से एक पतली पक्की घुमावदार सड़क गांव की ओर जाती है। रास्ते में बाजरे के खेत हैं। कहीं कहीं धान लगे हैं। इन्हीं बाजरे के खेतों में 14 सितंबर को कथित तौर पर पीड़िता के साथ गैंगरेप हुआ। अब यहां पत्रकारों की भीड़ है। कुछ तस्वीरें ले रहे हैं, कुछ पीस टू कैमरा रिकॉर्ड कर रहे हैं। पत्रकार बार-बार दोहरा रहे हैं कि इस घटना ने देश को हिला कर रख दिया है। थोड़ा और आगे चलने पर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का एक ...

सिर्फ 500 शब्दों में समझिए बाबरी मस्जिद विध्वंस से लेकर सीबीआई की विशेष कोर्ट के फैसले तक की 28 साल की कहानी

आज से 28 साल पहले 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों की भीड़ ने बाबरी मस्जिद गिराई। उनका दावा था कि यह राम जन्मभूमि पर बनी है। इस जगह पर राम का मंदिर ही बनना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नवंबर में जमीन के मालिकाना हक से जुड़े केस में इस दावे पर मुहर लगाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर बनाने के लिए 5 अगस्त को भूमिपूजन भी कर दिया है। यानी राम मंदिर बनाने का काम शुरू हो चुका है। पर, बाबरी मस्जिद को गिराया गैरकानूनी था, इस वजह से यह मामला अदालत में था। 6 दिसंबर 1992 को पुलिस ने बाबरी ढांचे को गिराने के मामले में 49 एफआईआर दर्ज की थी। एक एफआईआर हजारों कारसेवकों के खिलाफ थी, जिन्होंने बाबरी मस्जिद गिराई। दूसरी एफआईआर में भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार के साथ-साथ विश्व हिंदू परिषद के नेता आरोपी थे। उन पर भीड़ को उकसाने का आरोप था। 47 एफआईआर पत्रकारों और अन्य लोगों से मारपीट की थी। यूपी सरकार ने दोनों प्रमुख एफआईआर की जांच 27 अगस्त 1993 को सीबीआई को सौंप दी। 5 अक्टूबर 1993 को सीबीआई ने 48 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट भी पेश कर दी थी। इसमें शिवसेना प्र...

पुलिस ने रात को जबरदस्ती अंतिम संस्कार कर दिया, आखिरी बार चेहरा तक नहीं देखने दिया, हमें नहीं पता पुलिस ने किसे जलाया है

हाथरस में कथित गैंगरेप पीड़िता का बीती रात पुलिस ने अंतिम संस्कार कर दिया। परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने ज़बरदस्ती अंतिम संस्कार किया और उन्हें आखिरी बार चेहरा तक नहीं देखने दिया गया। पीड़िता के भाई ने भास्कर से बात करते हुए कहा, 'पुलिस ने हमें उसका चेहरा तक नहीं देखने दिया। हमें नहीं पता पुलिस ने किसे जलाया है। उन्होंने पुलिस पर अपने रिश्तेदारों के साथ मारपीट करने और उन्हें गांव पहुंचने से रोकने का आरोप भी लगाया है। पीड़िता के बड़े भाई ने कहा, 'महिला पुलिसकर्मियों ने हमारे घर की महिलाओं के साथ मारपीट की। रिश्तेदारों को गांव तक नहीं आने दिया। जबरदस्ती रात में ही अंतिम संस्कार कर दिया। हम उनसे कहते रहे कि कम से कम सूर्योदय होने के इंतजार करें लेकिन, हमारी एक नहीं सुनी उन्होंने हमारे धार्मिक रीति-रिवाजों तक का ख्याल नहीं रखा। पीड़िता का परिवार अब पुलिस पर मामला को किसी भी तरह निपटाने का आरोप लगा रहा है। उनका कहना है, 'पुलिस अब कह रही है कि उसकी जीभ नहीं कटी थी, रीढ़ की हड्डी नहीं टूटी थी। पुलिस किसी भी तरह इस मामले को निपटा देना चाहती है। मीडिया को भी गांव में नहीं आने दि...

Google Play Billing System: गूगल ने मांगा शुल्क, स्टार्ट-अप्स बिफरे, जानिए क्या है पूरा मामला

Google Play Billing System: गूगल के मुताबिक हर डेवलपर को अगले वर्ष सितंबर से गूगल बिलिंग प्रणाली का इस्तेमाल करना होगा। from Nai Dunia Hindi News - technology : tech https://ift.tt/3jfvK1r

हमारा सवाल है कि क्या सुधारों को हमारी राजनीति के केंद्र में लाया जा सकता है? या, इन्हें किस्तों में और चोरी से लागू करने का सिलसिला जारी रहेगा

कई बार राजनीतिक टिप्पणीकारों पर बुद्धिजीवी जिमनास्ट कहकर व्यंग्य कसा जाता है। तो हम इसी छवि के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय विवाद ट्रिब्यूनल द्वारा 20,000 करोड़ के टैक्स मामले में वोडाफोन के पक्ष में दिए गए फैसले और बिहार में होने वाले चुनावों के बीच संबंध स्थापित कर रहे हैं। ये दोनों ही मामले पुरानी के मुकाबले नई अर्थव्यवस्था और नई राजनीति के लिए एक चुनौती और अवसर उपलब्ध कराते हैं। वोडाफोन का यह फैसला ऐसे समय पर आया है, जब पिछले तीन दशकों से अर्थव्यवस्था और राजनीति के पुराने तरीकों के सबसे बड़े पक्षकार प्रणब मुखर्जी का निधन हुआ है। उनके साथ कई दशकों में हुई बातचीत के आधार पर मैं कह सकता हूं कि ट्रिब्यूनल के फैसले पर भी उनकी प्रतिक्रिया काफी गुस्से भरी होती और वे यह कहते कि हम एक संप्रभु राष्ट्र है और यह फैसला देने वाले वे कौन होते हैं। वह तत्काल ही इस फैसले को चुनौती देते और पूरे गणराज्य की ताकत इसके पीछे लगा देते। फिर बिहार चुनाव मोदी सरकार के उन सुधारों के बाद हो रहे पहले चुनाव हैं, जिनपर गर्व करते हुए वह अपने विरोधियों पर तंज कसती है: आप कहते थे कि हमने कोई बड़ा सुधार नहीं किया? आप इनके ब...

मोदी और उनके रणनीतिकारों को लगता है कि यह किसान आंदोलन न बहुत दूर तक जाएगा और ना ही दूर तक फैलेगा

नरेंद्र मोदी के साढ़े छह साल के कार्यकाल में उनके खिलाफ दूसरा किसान आंदोलन शुरू हो गया है। पहला आंदोलन तब हुआ था जब 2014 में सत्ता में आने के फौरन बाद मोदी ने अध्यादेश लाकर कॉर्पोरेट इस्तेमाल के लिए उनकी ज़मीनों के अधिग्रहण की कोशिश करनी चाही थी। इस बार भी किसानों को वही अंदेशा है कि उनकी पैदावार की खरीद का लंबे अरसे से चला आ रहा बंदोबस्त बदलने का आखिरी नतीजा उनसे उनकी ज़मीन छिनने में निकलेगा। किसानों की नाराज़गी के पीछे समझ यह है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर अनाज की सरकारी खरीद बंद हो जाने से उन्हें बाज़ार और बड़ी पूंजी के रहमो-करम पर रह जाना पड़ेगा। खेती से होने वाली आमदनी उत्तरोत्तर अनिश्चित होती चली जाएगी। अंत में होगा यह कि वे कांट्रेक्ट फार्मिंग और कॉर्पोरेट फार्मिंग के चंगुल में फंस जाएंगे। यह नई स्थिति किसानों के तौर पर उनकी पहचान को हमेशा के लिए संकटग्रस्त कर देगी और कुल मिलाकर खेती पर आधारित अर्थव्यवस्था का चेहरा पूरी तरह से बदल जाएगा। सवाल यह है कि कृषि मंत्री और प्रधानमंत्री के आश्वासनों के बावजूद पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तप्रदेश, कर्नाटक, मप्र और छत्तीसगढ़ के कि...

6 दिसंबर को अयोध्या में मौजूद पत्रकारों की आंखों-देखी; विहिप नेता कह रहे थे कि सिर्फ साफ-सफाई, पूजा-पाठ होगा, कारसेवक बोल रहे थे, बाबरी गिराएंगे

अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराए जाने के करीब 28 साल हो गए हैं। इस मामले के क्रिमिनल केस की सुनवाई लखनऊ में सीबीआई की विशेष कोर्ट कर रही थी, जो आज अपना फैसला सुनाएगी। ढांचा गिराने के मामले में 32 आरोपी हैं। इनमें पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार आदि। इस पूरे मामले की जांच सीबीआई कर रही थी। पूरे मामले में सबसे ज्यादा गवाही पत्रकारों की हुई। पत्रकारों ने ही सबसे ज्यादा एफआईआर भी दर्ज करवाई थी। दरअसल, विवादित ढांचा गिराए जाने के दिन बड़ी संख्या में पत्रकारों के साथ अयोध्या में मारपीट हुई थी। भीड़ ने उनके कैमरे तोड़ दिए थे या छीन लिए थे। इसलिए आज फैसले के दिन 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कवरेज के लिए मौजूद 4 पत्रकारों की आंखों-देखी जानते हैं। उन्होंने उस दिन क्या देखा था और बाद में सीबीआई ने उनसे गवाही में क्या पूछा। एक दिन पहले ही लिख दिया था- विवादित ढांचे का राम ही मालिक राजेंद्र सोनी, 30 साल से अयोध्या में पत्रकार हैं। फिलहाल आकाशवाणी और दूरदर्शन में काम करते ...

छोटी-छोटी गलियों में ड्रैनेज लाइन के बीच चल रहीं हजारों फैक्ट्रियां, साबुन से लेकर कपड़े-जूते तक सब बनता है यहां

ये बात साल 1971 की है। तब प्रतापगढ़ जिले का एक लड़का वहाज खान सौ रुपए लेकर मुंबई आया था। वहाज ने अपने वालिद के साथ कानपुर में चमड़े की फैक्ट्री में काम किया था, इसलिए मुंबई आकर भी यही काम करने लगा। चार-पांच साल तक यहां-वहां काम करने के बाद कुछ पैसा जोड़ लिया और उसी से धारावी में 1200 रुपए में एक झोपड़ी खरीद ली। उस समय धारावी में चमड़े का काम करने वाले गिने-चुने ही थे। वहाज ने सोचा जब मुझे काम आता है और थोड़े पैसे भी जुड़ गए हैं तो दूसरे की नौकरी करने के बजाए क्यों न खुद का काम शुरू करूं? फिर उन्होंने 35 हजार रुपए में जमीन खरीदकर खुद की फैक्ट्री शुरू की, जहां चमड़े के प्रोडक्ट्स बनाने का काम होता था। शुरूआत में काम थोड़ा बहुत ही था, लेकिन धीरे-धीरे बढ़ते गया। आज कंपनी का सालाना टर्नओवर 15 करोड़ रुपए से ज्यादा है और दुनियाभर में उनकी कंपनी के लेदर प्रोडक्ट्स की डिमांड है। वो कहते हैं, मुझे बनाने में धारावी का बहुत बड़ा रोल है। लोग आज मेरे प्रोडक्ट्स को धारावी ब्रांड कहकर बुलाते हैं। धारावी लाखों लोगों को रोजगार देता है। इसमें अधिकतर वर्कर यूपी, बिहार, गुजरात जैसे राज्यों से होते हैं...