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Showing posts from April, 2020

Maharashtra Day 2020: इन Wishes, Images, WhatsApp Status, Quotes से दें शुभकामनाएं

Maharashtra Day पर मराठी में इन Wishes, Messages, Quotes से अपनों को दें शुभकामनाएं। from Nai Dunia Hindi News - technology : tech https://ift.tt/35iRnYI

Gujarat Day 2020: गुजरात स्थापना दिवस पर गुजराती में इन Message, Shayari, WhatsApp Status से करें विश

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Labour Day 2020: आज मजदूर दिवस पर इन Wishes, Message, Quotes, WhatsApp Status से दें शुभकामनाएं

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Facebook, WhatsApp और Messenger हर महीने यूजर्स की संख्या 3 अरब के पार पहुंची

Faceboo, Instagram, WhatsApp और Messenger यूजर्स की संख्या 3 अरब तक पहुंच गई है। from Nai Dunia Hindi News - technology : tech https://ift.tt/3d7E7ce

भारत में हर 10 कैंसर मरीजों में से 7 की मौत हो जाती है, यहां एक डॉक्टर पर 2000 मरीजों का बोझ होता है

पिछले दो दिनों में बॉलीवुड ने अपने दो बेहतरीन कलाकार खो दिए। दोनों को वह बीमारी थी, जो दुनिया की हर छठीमौत का कारण बनती है।ऋषि कपूर को ब्लड कैंसर था और इरफान खान को ब्रेन कैंसर। दोनों का इलाज देश में भी चला और विदेश में भी, लेकिन इलाज के 2 साल के अंदर ही दोनों की मौत हो गई। हर साल देश और दुनिया में कैंसर से लाखों मौत होती हैं। डबल्यूएचओ के एक अनुमान के मुताबिक, 2018 में कैंसर से कुल 96 लाख मौतें हुईं थीं। इनमें से 70% मौतें गरीब देश या भारत जैसे मिडिल इंकम देशों में हुईं। इसी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कैंसर से 7.84 लाख मौतें हुईं। यानी कैंसर से हुईं कुल मौतों की 8% मौतें अकेले भारत में हुईं। जर्नल ऑफ ग्लोबल एंकोलॉजी में 2017 पब्लिश हुईएक स्टडी के मुताबिक, भारत में कैंसर से मरने वालों की दर विकसित देशों से लगभग दोगुनी है। इसके मुताबिक भारत में हर 10 कैंसर मरीजों में से 7 की मौत हो जाती है जबकि विकसित देशों में यह संख्या 3 या 4 है। रिपोर्ट में इसका कारण कैंसर का इलाज करने वाले डॉक्टरों की कमी बताया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2000 कैंसर मरीजों पर महज एक डॉक्टर है। अमेरिका...

शाम के सात बजते ही मस्जिद की मीनारों से अजान तो हमेशा की तरह हुई लेकिन सजदे में झुकने वाले सर नदारद रहे

शाम के सात बजने को हैं। रमजान का महीना है और दिल्ली के जामा मस्जिद में मगरिब की अजान होने में बस कुछ ही मिनट बाकी हैं। आम तौर पर रमजान के दिनों में जामा मस्जिद के इस इलाके में पैर रखने की भी जगह नहीं होती। करीब 15 से 20 हजार लोग हर शाम यहां रोजा खोलने और नमाज के लिए पहुंचते हैं। लेकिन इन दिनों कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन में यह पूरा इलाका सन्नाटे में डूबा हुआ है। जामा मस्जिद के गेट नंबर 1 के बाहर दिल्ली पुलिस के कुछ जवान तैनात हैं। उनके साथ ही अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी भी यहां मौजूद है। इन लोगों के अलावा सड़क पर दूर-दूर तक कोई इंसान नजर नहीं आ रहा। मुख्य सड़क पर एक-एक दुकान बंद है और एक-एक गली खाली। दिल्ली पुलिस की एक गाड़ी अभी-अभी लगभग 40-50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से 1 नंबर गेट से तीन नंबर गेट की तरफ गई है। दशकों में शायद पहली बार ऐसा हुआ है जब इस इलाके में कोई गाड़ी इस रफ्तार से चली है। पुरानी दिल्ली का यह इलाका जिसने भी देखा है, वह समझ सकता है कि यहां किसी गाड़ी का ऐसे गुजरना कितनी गैर-मामूली घटना है। जिसने यह इलाका नहीं देखा वह इस तथ्य से अंदाजा लगा सकता है कि ये देश ही ...

लॉकडाउन में घर को निकले मजदूरों की कहानी, कोई 25 दिन में 2800 किमी सफर कर घर पहुंचा, तो किसी ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया

देश में कोरोना के चलते अचानक लगाया लॉकडाउन प्रवासी मजदूरों पर सबसे ज्यादा भारी पड़ा है। उन्हें जब ये पता चला की जिन फैक्ट्रियों और काम धंधे से उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ होता था, वह न जाने कितने दिनों के लिए बंद हो गया है, तो वे घर लौटने को छटपटाने लगे। ट्रेन-बस सब बंद थीं। घर का राशन भी इक्का-दुक्का दिन का बाकी था। जिन ठिकानों में रहते थे उसका किराया भरना नामुमकिन लगा। हाथ में न के बराबर पैसा था। और जिम्मेदारी के नाम पर बीवी बच्चों वाला भरापूरा परिवार था। तो फैसला किया पैदल ही निकल चलते हैं। चलते-चलते पहुंच ही जाएंगे। यहां रहे तो भूखे मरेंगे। कुछ पैदल, कुछ साइकिल पर तो कुछ तीन पहियों वाले उस साइकिल रिक्शे पर जो उनकी कमाई का साधन था। लेकिन जो फासला तय करना था वह कोई 20-50 किमी नहीं बल्कि 100-200 और 3000 किमी लंबा था। 1886 की बात है। तारीख 1 मई थी। अमेरिका के शिकागो के हेमोर्केट मार्केट में मजदूर आंदोलन कर रहे थे। आंदोलन दबाने को पुलिस ने फायरिंग की, जिसमें कुछ मजदूर मारे भी गए। प्रदर्शन बढ़ता गया रुका नहीं। और तभी से 1 मई को मारे गए मजदूरों की याद में मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाने ल...

झूठ बोलने पर हमेशा कौआ नहीं काटता

उन्होंने अपनी मां से झूठ बोला कि उन्हें दिल्ली में टीचर की नौकरी मिल गई है, जबकि उनका चयन दिल्ली में ही नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के एक्टिंग कोर्स में हो गया था। क्या आप जानते हैं, उन्होंने झूठ क्यों बोला? क्योंकि वे मां को दु:ख नहीं पहुंचाना चाहते थे कि उन्होंने ऐसा कॅरिअर चुना जो शायद मां को पसंद न आए। ये व्यक्ति थे बॉलीवुड एक्टर इरफान खान, जिनका 29 अप्रैल को देहांत हो गया। जब इरफान जैसे लोग पसंद के कॅरिअर में सफल होते हैं, तो वे अच्छाई फैलाना जारी रखते हैं। वे अपने दोस्तों को परेशान नहीं देख सकते। फिल्म क़िस्सा की शूटिंग के दौरान जेनेवा के फिल्ममेकर, डायरेक्टर अनूप सिंह सेट से चले गए, क्योंकि एक निर्माता के साथ उन्हें कोई समस्या हो गई थी। उस रात इरफान उनके कमरे में अपने म्यूजिक सिस्टम के साथ गए। उन्होंने इसे खुद जमाया और अनूप के लिए नुसरत फतेह अली खान के गाने बजाए। गाने कई घंटे चले। जब सुबह-सुबह उन्होंने अनूप को मुस्कुराते देखा, तभी वे वहां से गए। मुझे कुछ ऐसा ही चेन्नई के एम्बुलेंस ड्राइवर एस चिन्नाथंबी के मामले में दिखा। उसने पूरे परिवार से झूठ बोला कि वह तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिल...

हम न रहेंगे, तुम न रहोगे, फिर भी रहेंगी निशानियां

तीन वर्ष की आयु में ऋषि कपूर ने अपने पिता राज कपूर की फिल्म ‘श्री 420’ के गीतांकन में हिस्सा लिया। गीत की पंक्ति है- ‘हम न रहेंगे, तुम न रहोगे, फिर भी रहेंगी निशानियां..’। कुछ वर्ष पूर्व उनकी आत्मकथा ‘खुल्लम-खुल्ला’ का प्रकाशन हुआ। किताब का नाम ही उसकी विचार शैली का परिचय देता है। उसने कभी कुछ छिपाकर नहीं किया। बहरहाल, खुल्लम-खुल्ला के प्रकाशन से उन्होंने कहा कि किताब का हिंदी अनुवाद श्रीमती ऊषा जयप्रकाश चौकसे से ही कराया जाए। वे मेरी बहन ऋतु नंदा की तीन किताबों का अनुवाद कर चुकी हैं। सन 2008 में खाकसार, ऋषि कपूर के कक्ष में बैठकर फिल्म से जुड़े लेखकों को हरिकृष्ण प्रेमी जन्मशती समारोह में आने के लिए निमंत्रण दे रहा था। ऋषि कपूर ने कहा कि वे स्वयं इंदौर आएंगे। हरिकृष्ण प्रेमी की लिखी फिल्म में राज कपूर ने अभिनय किया था। उन्होंने समारोह में कहा कि पिता कभी मरता नहीं, वह अपनी संतानों की श्वास में जीवित रहता है। उन्होंने लगभग 30 मिनट भाषण दिया। वह ऋषि कपूर की दूसरी इंदौर यात्रा थी। सन् 1986 में इंदौर के नेहरू स्टेडियम में ‘राम तेरी गंगा मैली’ का रजत जयंती समारोह मनाया गया। उस उत्सव में ...

स्वास्थ्य सेवाओं को स्वच्छता की तरह आंदोलन बनाएं मोदी

मैंने जब 2013 में नरेंद्र मोदी के पक्ष में लिखना शुरू किया तो यह मेरे सेकुलर दोस्तों को बर्दाश्त नहीं हुआ। वे कहते थे आप कैसे किसी ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा कर सकती हो, जिसके राज में 2002 के दंगे हुए थे। वो प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो देशभर में दंगे हो सकते हैं। मेरा जवाब होता था कि मैंने कई सेकुलर प्रधानमंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के दौर में कई बार दंगे देखे हैं। लेकिन, उनको हमने कभी इतना बदनाम नहीं किया, जितना मोदी को बदनाम किया है। क्या 1984 में राजीव गांधी के कार्यकाल के शुरू होते ही 3000 सिख दिल्ली के नरसंहार में नहीं मारे गए थे? क्या यह सच नहीं है कि राजीव इसके बावजूद बोफ़ोर्स घोटाला होने तक हमारे लिए एक चमकता सितारा नहीं थे। राजीव को कभी अमेरिका ने वीजा देने से इनकार नहीं किया, क्योंकि हम पत्रकारों ने उनकी छवि कलंकित होने से बचाकर रखी थी। मैं उस समय यह भी कहती थी कि कांग्रेस ने अपने दशकों लंबे राज में कभी गरीबी हटाने की कोशिश ईमानदारी से नहीं की है। ईमानदारी से की होती तो गरीबों के हाथ में वह औजार दिए होते जिससे गरीबी दूर हुई है, अन्य देशों में जैसे- बेहतरीन शिक्षा और स्वास्थ्य से...

अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बने राष्ट्रीय योजना

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से बाहर निकलने पर देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जरूरी है कि सभी सरकारें, सभी पार्टियां मिलकर एक राष्ट्रीय नवनिर्माण योजना पर सहमत हों। यहां मैं इस योजना के एक हिस्से का प्रस्ताव रख रहा हूं जिसमें एक पंथ दो काज हो जाएंगे। रोजगार सृजन भी होगा और देश को भविष्य की सबसे बड़ी आपदा से बचाने में मदद भी मिलेगी। देश में बेरोजगारी के आंकड़े नियमित रूप से इकट्ठे करने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनाॅमी के अनुसार कोरोना का कुछ भी असर होने से पहले फरवरी के महीने तक देश में कुल 40.4 करोड़ लोग किसी न किसी तरह के रोजगार में थे। अप्रैल के अंतिम सप्ताह में इनकी संख्या घटकर 28.1 करोड़ हो गई। यानी कि 12 करोड़ रोजगार खत्म हो गए। लॉकडाउन खुलने के बाद भी शहरों में फैक्ट्री या उद्योग खोलने की बंदिश धीरे-धीरे ही हटेगी। इसके बावजूद मंदी के चलते सभी पुराने रोजगार वापस नहीं आएंगे। उधर, गांवों में अधिकांश जगह पर फसल की कटाई का काम पूरा हो चुका है। फसल की रोपाई से पहले कोई खास काम नहीं है। मानसून के दौरान भवन निर्माण का काम भी बहुत घट जाता है। इसलिए, आने वाले तीन ...

अभाव में भी आनंद उठाया जा सकता है

रुपया संरक्षण मांग रहा है। हमारी संपत्ति हमारे सामने कंपकंपा रही है। हमारा वैभव मुरझा गया है, प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। अपने मनुष्य होने पर भय लगने लगा है। जान और जीविका दोनों एक-दूसरे के सामने खड़े हो गए। जान पर काम करो तो जीविका सवाल उठाती है, जीविका की सोचो तो जान साथ छोड़ने की बात करती है। ऐसे में क्या किया जाए? चलिए, अभी सिर्फ जीविका की बात करते हैं। सबको फिक्र है और शुरुआत हो चुकी है। नुकसान नौकरी का हो या व्यापार का, होगा जरूर। आज हम जिन परिस्थितियों से गुजर रहें हैं, ये केवल स्थितियां नहीं, घाव बन गई हैं और यह घाव किसी सर्जरी से ठीक नहीं होगा। इसमें अध्यात्म का मरहम लगाना होगा। एक प्रतिष्ठित व्यवसायी ने मुझे सुझाव दिया था कि हम यह मान लेंगे कि महीने कम हो गए और साल 12 की जगह 10 महीने का रह गया। नुकसान की भरपाई हम इस सोच से कर लेंगे। लेकिन, अब तो यह भी नहीं पता कि साल में कितने महीने कम करना हैं। हिंदू कैलेंडर में होते तो 12 महीने हैं, लेकिन यदि आपको रुपए की रक्षा करना हो तो एक विचार अपनाया जा सकता है कि यह वर्ष छह माह का था और इन छह माह को ऋतु से जोड़ लें। हिंदुओं ने एक ऋतु म...

ऋषि 1990 में पाकिस्तान में पेशावर वाले पुश्तैनी घर गए थे, लौटते वक्त आंगन की मिट्‌टी साथ ले आए, ताकि विरासत याद रख सकें

लगातार दूसरा दिन है जब किसी बॉलीवुड सितारे की मौत हुई है। सिसकियां सरहद के इस ओर से भी सुनाई दी हैं। एक दिन पहले इरफान खान और आज ऋषि कपूर की मौत का गम पाकिस्तान में भी है। जहां एक ओर दिलों पर राज करने वाले ऋषि कपूर की इबारत भारतीय सिनेमा में हमेशा के लिए जिंदा रहेगी वहीं उनके खानदान की विरासत सरहद के इस पार पाकिस्तान में भी खड़ी है। पाकिस्तान में ऋषि कपूर को उनकी अदाकारी के अलावा खैबर पख्तून की राजधानी पेशावर में मौजूद उनके खानदान की जड़ों के लिए भी पहचाना जाता है। भारतीय सिनेमा के कपूर खानदान की यह मशहूर कपूर हवेली पेशावर के रिहायशी इलाके में हैं और यह कपूर परिवार की कई पुश्तों का घर रहा है। बंटवारे से पहले बनी यह हवेली पृथ्वीराज कपूर के पिता और ऋषि कपूर के परदादा दीवान बशेशवरनाथ कपूर ने 1918-1922 के बीच बनवाई थी। पृथ्वीराज कपूर फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री लेनेवाले कपूर खानदान के पहले व्यक्ति थे। इसी हवेली में पृथ्वीराज कपूर के छोटे भाई त्रिलोकी कपूर और बेटे राजकपूर का जन्म हुआ था। हवेली के बाहर लगी लकड़ी की प्लेट के मुताबिक बिल्डिंग का बनना 1918 में शुरू हुआ और 1921 में पूरा। इस हव...

जल्द ही स्मार्टफोन्स में Pre-Installed मिलेगा Aarogya Setu App, जरूरी होगा Registration

Aarogya Setu App आने वाले दिनों में स्मार्टफोन्स में Pre-Installed होगा और यूजर को रजिस्टर करना भी जरूरी किया जाएगा। from Nai Dunia Hindi News - technology : tech https://ift.tt/2KPYWwk

BSNL, Airtel, Reliance Jio और Vodafone दे रही लॉकडाउन में कमाई का मौका, जानें कैसे

BSNL, Airtel, Reliance Jio और Vodafone Idea आपको लॉकडाउन के बीच पैसे कमाने का मौका दे रहे हैं। from Nai Dunia Hindi News - technology : tech https://ift.tt/3d3Nk4W

15 फिल्में कश्मीर में शूट करने वाले ऋषि कहते थे, ये गुलमर्ग, यही कश्मीर है, वह जगह जिसने मुझे बनाया, जो कुछ भी मैं आज हूं, हमारे खानदान का कश्मीर की मिट्‌टी से रिश्ता है

ये गुलमर्ग, यही कश्मीर है, वह जगह जिसने मुझे बनाया, जो कुछ भी मैं आज हूं। हमारे खानदान का कश्मीर की मिट्‌टी से रिश्ता है। मैं ताउम्र कश्मीर से प्यार करता रहूंगा और इसका कर्जदार भी रहूंगा। 2011 में 23 साल बाद जब ऋषि कश्मीर गए तो उन्होंने यही बात कही थी। ऋषि का कहना था - ‘मैंने फैसला किया है कश्मीर की उन सब जगहों पर जाने का जहां मेरे पिता ने मेरी पहली फिल्म की शूटिंग की थी। यूं तो मैं नॉस्टैल्जिक ट्रिप से नफरत करता हूं, क्योंकि पीछे देखने का वक्त कहां मिलता है? लेकिन ये यात्रा खास है।' ऋषि कपूर की मौत की खबर आई तो सोशल मीडिया जिस बात से पट गया वह ये थी कि लोगों के बचपन की पहली फिल्म बॉबी है और ऋषि कपूर रोमांस का पहला एहसास दिलानेवाले हीरो। इनमें 1970-80 के दशक में पैदा हुए लोग ज्यादा थे। ऐसा कहनेवालों में जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी शामिल हैं। ऋषि को याद करते बॉबी सबसे पहले याद आती है। उनकी इस पहली फिल्म जिसकी शूटिंग कश्मीर में हुई थी। पिता राज कपूर उसके डायरेक्टर थे। इस फिल्म के नाम पर गुलमर्ग और पहलगाम में एक हट आज भी है। उनकी यह फिल्म कश्मीर के इकलौत...

Amazon ने शुरू की नई सर्विस Pay Later, अभी सामान खरीदो, अगले महीने चुकाओ पैसे

Amazon Pay Later का फायदा लेने वाले ग्राहक अपनी जरूरत की चीजें मंगवाने वालों को मिलेगा। from Nai Dunia Hindi News - technology : tech https://ift.tt/2xjXSxK

Pakistan ने बनाई फर्जी Aarogya Setu App, झांसे में न आएं, ऐसे पहचाने कौन सी है असली

पाकिस्तान ने Fake Aarogya Setu App बना ली है जिसकी मदद से वो आपका पर्सनल डेटा चुरा सकता है। from Nai Dunia Hindi News - technology : tech https://ift.tt/3aOpY1O

उम्दा इफ्तार इस बार नहीं होंगे, मस्जिदों से बमुश्किल अजानें आएंगी, वहां इबादत नहीं होगी

कहते हैं कश्मीर में एक मौसम रमजान का होता है, और वह सारे मौसमों से ज्यादा खूबसूरत है। कुबूल हो चुकी दुआओं जैसा रमजान। यूं तो कश्मीर में रमजान के आने की आहट वहां के लोकगीतों से पता चलती है, लेकिन इस बार धुन गुमसुम हैं। सालभर सुरक्षा हालात भले कितने ही खराब रहें, लेकिन रमजान आने तक माकूल होने लगते हैं। कोरोना की वजह से इस बार परेशानी दूसरी है। तय आलीशान इफ्तार अब नहीं होंगे, मस्जिदों से बमुश्किल अजानें आएंगी वहां इबादत नहीं होगी। होंगे तो बस रोजे और घर में बैठे रोजेदार। घाटी में हर दिन इफ्तार की तैयारियां दोपहर से ही कंडूर यानी स्थानीय कश्मीरी रोटी बनानेवाले की दुकान के सामने जमा होती भीड़ से होती थी। कंडूर स्पेशल ऑर्डर लेता था और लोगों को अपनी कस्टमाइज ब्रेड मिलती थी, गिरदा, ज्यादा घी और बहुत सारी खस-खस या तिल वाली। लेकिन इस साल ऐसा माहौल ही नदारद है। रमजान के महीने में दान का भी बड़ा महत्व है। इसमें दान के दो रूप होते हैं। पहला- जकात, जिसमें कुल कमाई का तय हिस्सा दान में देना होता है। और दूसरा- सदका, इसमें मुसलमान अपनी मर्जी से जितना दान देना चाहें, उतना दे सकते हैं। (फोटो क्रेडि...

ट्रैवल इंडस्ट्री की मुर्दानगी ऐसी कि पर्यटन को उकसाने वाले ही अब लोगों को स्टे-होम का पाठ पढ़ाने को मजबूर हैं

कोरोनावायरस पैंडेमिक से ज़माने भर में सफरबाज़ों की दुनिया उलट-पुलट हो गई है। ट्रैवल इंडस्‍ट्री में हड़कंप है, सफर बिखर गए हैं और मंज़िलों पर सन्‍नाटा है। सीज़न में फुल की तख्‍़ती लगाए एयरबीएनबी, होटल-होमस्‍टे वीरान हैं; वॉटर-पार्क, एंटरटेनमेंट पार्क, थियेटर, म्‍युज़‍ियम, गैलरियां, कैथेड्रल, मंदिर-मस्जिद, मकबरे, कैफे, बार, रेस्‍टॉरेंटों में मुर्दानगी छायी है। डिज्‍़नीलैंड ने कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया है, पर्यटन को उकसाने वाले ही अब लोगों को #स्‍टेहोम #ट्रैवलटुमौरो का पाठ पढ़ाने की मजबूरी से गुजर रहे हैं। वर्ल्‍ड ट्रैवल एंड ट‍ूरिज्‍़म काउंसिल ने आखिरकार वो बम गिरा ही दिया जिसका अंदेशा था। डब्ल्यूटीटीसी के मुताबिक, कोरोनावायरस पैंडेमिक के चलते दुनियाभर में ट्रैवल इंडस्‍ट्री से जुड़ी करीब 10 करोड़ नौकरियां जा सकती हैं और इनमें साढ़े सात करोड़ तो जी20 देशों में होंगी। यानी भारत के पर्यटन उद्योग पर भी भारी खतरा है। डब्‍ल्‍यूटीटीसी की अध्‍यक्ष एवं मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी ग्‍लोरिया ग्‍वेवारा ने कहा, ‘हालात बहुत कम समय में और तेजी से बिगड़े हैं। हमारे आंकड़ों के मुताबिक, ट्रैवल एं...

लॉकडाउन का फैसला किसे बचाएं, किसे नहीं पर निर्भर

लॉकडाउन के बीच टेलीविजन पर एक गरीब प्रवासी श्रमिक को यह कहते सुना- ‘अगर कोरोना मुझे नहीं मारता है तो बेरोजगारी और भूख मार डालेगी’। असल में उसने सरकार के सामने उपलब्ध कठिन विकल्पों को अभिव्यक्त किया था कि ‘किसे जीना चाहिए और किसे मर जाना चाहिए?’ इस दुविधा का हल ही 4 मई को लॉकडाउन खत्म होना तय करेगा। क्या हमें आज कोविड-19 से एक जिंदगी बचानी चाहिए, लेकिन इससे कहीं अधिक जिंदगियों को लॉकडाउन मंें व्यापक बेरोजगारी, भूख और कुपोषण से जोखिम में डाल देना चाहिए? यह एक गंभीर धर्मसंकट है। अगर भारत लॉकडाउन के जरिये मौतें रोकने में सफल हो भी जाता है तो भी जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती, कोरोना वायरस फैलता रहेगा। इसमें कई महीने या साल भी लग सकते हैं। लॉकडाउन भारी बेरोजगारी और मंदी को पैदा करेगा। इससे सर्वाधिक प्रभावित 40 करोड़ दैनिक वेतनभोगी होंगे अौर उनमें से कई की भूख से मौत हो सकती है। लॉकडाउन में कल्याण पैकेज की वजह से सरकार का खजाना नष्ट हो जाएगा, जो मंदी की वजह से पहले ही बहुत कमजोर है। यह महामारी भारत को कई दशक पीछे ले जाएगी। भारत एक बहुत ही गरीब देश बन सकता है। इसी वजह से अमेरिका के कुछ राज्यों औ...

देश जानना चाहता है कि स्वदेशी विकल्प इस्तेमाल क्यों नहीं किया

चीन से टेस्टिंग किट खरीदने पर व्यर्थ हुए समय आैर धन को लेकर मचे बवाल ने सरकार और उसकी प्रिय एजंेसी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के स्तर पर नीति और निर्णय लेने में गंभीर विफलता की ओर इशारा किया है। इन किटों की सफलता दर महज पांच फीसदी है। इसी सप्ताह देश की इस सर्वोच्च बायोमेडिकल रिसर्च एजेंसी ने टेस्ट के परिणामों में व्यापक अंतर होने की बात स्वीकारते हुए इससे कोविड-19 की टेस्टिंग पर रोक लगा दी है। इस पूरे प्रकरण ने कोविड-19 के प्रबंधन में सरकार की गंभीर लापरवाही को उजागर किया है। मुझ जैसे जिन विपक्षी नेताओं ने इस मामले को उठाया, उन्हेें सरकार के समर्थकों के गुस्से से दो-चार होना पड़ा। उनका कहना है कि ‘मोदी सरकार इसके बारे में क्या कर सकती थी? कई अन्य देशों का भी ऐसा ही अनुभव है।’ उनकी दूसरी प्रतिक्रिया है- ‘सरकार के पास और विकल्प ही क्या थे? कांग्रेस रैपिड टेस्ट की मांग कर रही थी, लोग और विशेषज्ञ भी इसी पर जोर दे रहे थे।’ इस सभी आपत्तियों को पलटने का मुझे मौका दें। पहली आपत्ति का जवाब है कि यह बात सही है। लेकिन, कोई सरकार दूसरों की गलती से नहीं सीखती तो वह कितनी होशियार है? ...

इरफान: हिंदी मीडियम, अंग्रेजी मीडियम और फिल्म मीडियम

जयपुर में जन्मे इरफान खान ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा नई दिल्ली में प्रशिक्षण लिया और मुंबई में लंबे समय तक संघर्ष किया। उन्होंने उतने रोजे नहीं किए जितने फांके (अभाव के कारण भूखा रहना) किए। मुंबई में संघर्ष करते हुए स्टूडियो दर स्टूडियो भटके। उनका चेहरा-मोहरा पारंपरिक सितारे की तरह नहीं था। उन्हें हम ओमपुरी और नसीरुद्दीन शाह की स्वाभाविक अभिनय की परंपरा का कलाकार मान सकते हैं। इरफान खान को टेलीविजन के लिए चाणक्य, चंद्रकांता और अनुगूंज में कंजूस के दिल के समान छोटी भूमिकाएं करनी पड़ी। दूरदर्शन के लिए ‘लाल घास’ नामक कार्यक्रम में उन्हें दो-चार कदम चलने का अवसर मिला। संघर्ष के समय पैरों से अधिक जख्म हृदय में लगे। उन्हें पहली सफलता फिल्म ‘पानसिंह तोमर’ में मिली। पीकू, तलवार और जज्बा में उन्हें सराहा गया। सनी देओल अभिनीत फिल्म ‘राइट और राॅन्ग’ में अपराधी के खिलाफ यथेष्ट प्रमाण नहीं जुटा पाने की वेदना से उनका शरीर ऐसा दिखा मानो किसी ने पलीता (बम) लगा दिया हो। विशाल भारद्वाज की ‘मकबूल’ में नकारात्मक भूमिका में उन्होंने जबर्दस्त प्रभाव पैदा किया। पंकज कपूर जैसे निष्णात अभिनेता के साथ अभिनय करते ...

पुलिस को पत्थरदिल समझने वालों, एक ट्वीट करके तो देखो

इस हफ्ते की शुरुआत में कई वीडियो वायरल हुए। इनमें हाल ही में आया 69 वर्षीय करन पुरी का एक वीडियो भी था। वे चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय में किताबों की दुकान चलाते हैं और पंचकूला के सेक्टर 7 में अकेले रहते हैं। वीडियो में वे घर पर अकेले टहल रहे हैं, क्योंकि उनके पास करने को कुछ नहीं है। अचानक वे देखते हैं कि पुलिस की गाड़ी बाहर रुकती है और उसमें से यूनिफॉर्म में कुछ महिलाएं ‘अंकल-अंकल’ आवाज देते हुए बाहर निकलती हैं। एसएचओ इंस्पेक्टर नेहा और उनकी सहकर्मियों को देखकर करन यह सोचकर अंदर भागे कि वे उन्हें डांटेंगी। हालांकि, उन्होंने बताया कि वे बस मिलना चाहती हैं। फिर करण गेट की तरफ बढ़े और बोले, ‘हैलो, मैं सीनियर सिटीजन हूं और अकेला रहता हूं।’ जैसे ही वे गेट पर पहुंचे, तीनों महिलाएं और एक पुरुष पुलिसकर्मी एक साथ गाने लगे, ‘हैप्पी बर्थडे टू यू…।’ और करन की आंखों से आंसू बहने लगे। वे कई कदम पीछे जाते हुए पुलिसकर्मियों से अपने आंसू छिपाने की असफल कोशिश कर रहे थे। पुलिसवालों ने एक बर्थडे कैप और एक बड़ा क्रीम केक निकाला फिर उनसे बोले, ‘हम भी आपके बच्चे हैं।’ करन लगातार रो रहे थे। उन्होंने गेट ...